सपा के दंगल को मंगल समझ रही बसपा

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लखनऊ।समाजवादी पार्टी में वर्चस्व को लेकर बाप-बेटे की सियासी जंग में बहुजन समाज पार्टी खुद का लाभ देख रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती को पूरा भरोसा है कि मुस्लिम मतों में फैलते भ्रम का सर्वाधिक फायदा उसे ही मिलेगा। पांचवी बार सूबे की सत्ता में काबिज होने की कोशिश में लगी बसपा दलित-मुस्लिम गठजोड़ को पुख्ता करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। वर्ष 2012 में सपा के हाथों राज्य की सत्ता गंवाने वाली बसपा का मानना है कि यदि मुस्लिम उसके साथ आ जाएं तो दलित-मुस्लिम गठजोड़ से सरकार बनना तय है।
सपा सरकार द्वारा मुस्लिम समाज के लिए किए गए कार्यो और मुलायम सिंह के प्रति मुस्लिमों के लगाव के चलते मुस्लिम समाज को सपा से अलग करना बसपा के लिए बड़ी चुनौती माना जाता है। इस बात को बसपा भी समझ रही थी कि राज्य में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं है इसलिए विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतों के कांग्रेस के बजाय सपा में धुव्रीकरण से उसका ही नुकसान होगा। चार माह पहले सितंबर से समाजवादी परिवार में शुरू हुई कलह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अब जिस तरह से बाप-बेटे के बीच जंग में तब्दील होती दिख रही है उसमें बसपा को खुद का फायदा दिखाई दे रहा है।
सियासी जंग पर बसपा के वरिष्ठ नेता खुल कर तो कुछ नहीं बोल रहे हैं लेकिन उनका कहना है कि भले ही यह पारिवारिक ड्रामा हो लेकिन इससे मुस्लिम समाज में सपा को लेकर भ्रम ही पैदा हो रहा है। भ्रम के चलते मुस्लिम मतों में बटवारे से भाजपा को होने वाले फायदे का डर दिखाकर बसपा प्रमुख मायावती भी मुस्लिम समाज को यही समझाने में लगी हैं कि वह अपना मत सपा को न देकर बसपा को ही दें। बहुजन समाज पार्टी अपनी पूरी ताकत मुस्लिमों को यह समझाने में लगी है कि भाजपा को हराना है तो दलित मुस्लिमों को एकजुट रहना होगा। 19 फीसद मुस्लिम व 21 प्रतिशत दलितों की आबादी का गणित भी भाईचारा समितियों की बैठकों में समझाया जा रहा है। बसपा शासन में मुस्लिम हित में किए कार्यों की एक पुस्तिका प्रकाशित कराकर वितरित की जा रही है।
समाजवादी पार्टी में आर-पार की लड़ाई ने मुस्लिमों को सबसे ज्यादा बेचैन किया है। वह मुलायम सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने के फैसले को जोखिम भरा मान रहे हैं। मुख्यमंत्री से जुड़ा मामला होने के कारण वह जुबान नहीं खोल रहे हैं, मगर इशारे कहते हैं कि ‘रहनुमा’ (मुलायम) को हटाने का यह अंदाज उन्हें रास नहीं आया है। रविवार को जनेश्वर मिश्र पार्क के विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लेने आए पूर्वी उप्र के एक मुस्लिम नेता का कहना है कि मुसलमान अब तक मुलायम सिंह को ही अपना हमदर्द मानता है, जबकि प्रो.राम गोपाल को लेकर उसकी ‘अरुचि’ है। ऐसे में मुलायम को जिस तरह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाया गया, उससे उनके लाखों प्रशंसकों के दिल पर चोट लगी है। विधानसभा चुनाव से पहले हालात नहीं सुधारे गए तो मुश्किलें बढ़ने से इन्कार नहीं किया जा सकता। 1बुलंदशहर की सिकंदराबाद सीट से टिकट मांग रहे एक नेता का कहना है कि मुलायम को आगे किए बिना मुस्लिमों को लुभाना आसान नहीं होगा। पश्चिम उप्र में वैसे भी बसपा का दलित-मुस्लिम गणित समाजवादी पार्टी पर भारी पड़ता रहा है। सोमवार को मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचने वालों में भी मुस्लिम नेताओं की संख्या कम रहीं जबकि दिल्ली पहुंचे मुलायम से सबसे अधिक मुस्लिम ही मिले। (दिव्य सन्देश)

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