अच्छा तो यूं हैं आशा पारेख फिट और गडकरी फैट !

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नवल कान्त सिन्हा

(NRP) 05.01.2016
लो भैया एक और राज़ खुल गया…. कभी जुबिली गर्ल और टॉम बॉय कहलाने वाली सुपर हिट हसीन अभिनेत्री आशा पारेख 73 साल की इस उम्र में पद्म भूषण के जुगाड़ में 12 मंजिल सीढ़ियों से चढ़ गयीं !! अब बताइये इसमें हल्ला मचाने वाली कौन सी बात हैं ? ऐसे ही तो मिलता है न पद्म पुरस्कार… लेकिन हमसे क्या लेना-देना… हमारी नज़र तो इस बात पर गयी कि कि जब 73 साल की आशा पारेख 12 मंजिल चढ़कर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से मिलने आयीं थीं तो 58 साल के गडकरी उनको छोड़ने के लिए 12 मंजिल नीचे उतरे थे कि नहीं ? सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं कि आशा पारेख अपनी छरहरी काया के लिए जानी जाती हैं तो नितिन बाबू अपने भीमकाय शरीर के लिए.
आशा पारेख की काया तो किसी से छुपी नहीं है… केवल एक्टिंग ही नहीं बल्कि लोग उनकी ख़ूबसूरती और फिगर के भी दीवाने थे. साजन-साजन पुकारूं गलियों में, ओ मेरे सोना रे, सोना रे… जैसे गाने आज भी नज़र आ जाते हैं तो निगाहें उनकी फिटनेस पर टिक जाती है. जबकि नितिन गडकरी अपने भरे-पुरे देह के लिए जाने जाते हैं. ऐसा नहीं है कि उन्होंने अपने शरीर को दुबला बनाने के लिए कोशिश नहीं की. एक दौर में उनका वज़न एक सैकड़े से कहीं ज़्यादा था लेकिन मुंबई में 2011 में डॉ. लकड़ावाला ने उनका ऑपरेशन किया था और खबरें छपी कि उनका वज़न 30 किलो से ज्यादा कम हो गया है. वरना पहले तो उनका यह हाल था कि मुझे 2010 की गर्मी याद आ रही है. तब भाजपा को दिल्ली में महंगाई के खिलाफ आयोजित महारैली खत्म करनी पड़ गयी थी. वजह यह था कि गडकरी बाबू जुलूस में बेहोश हो गए थे. यही वजह है कि जब नितिन गडकरी ने कहा कि आशा पारेख पद्मभूषण पाने की चाह में मुंबई में मेरे घर का लिफ्ट खराब होने के बावजूद 12 मंज़िलें चढ़कर पहुंची थीं. तो मुझे ख्याल आया कि गडकरी जी ने आशा पारेख जी कुछ सीखा कि नहीं ? वैसे सवाल तो यही है कि क्या यह पहली शख्सियत हैं, जो एवार्ड के लाबिंग कर रही थीं ?
आपको तो यह याद होगा कि 2013 में पद्म पुरस्‍कार के ऐलान के वक्त पहलवान सुशील कुमार ने पद्म भूषण ना मिलने पर नाराजगी दिखाई थी तो वहीं दक्षिण भारत की जानी-मानी गायिका एस. जानकी ने पुरस्‍कार लेने से इंकार कर दिया था. दक्षिण भारत की लता मंगेश्‍कर कही जाने वाली एस जानकी इस बात से नाराज थीं कि उन्‍हें उनके कद के हिसाब से पुरस्‍कार नहीं मिला. उन्होंने कहा था कि मै पद्म भूषण मिलने से खुश नहीं हूं. एक समय भारत के मशहूर बिलियर्ड्स खिलाड़ी माइकल फेरेरा ने 1981 में पद्म श्री लेने से यह कहते हुए इंकार कर दिया था कि वह पद्म भूषण के हकदार हैं, जिसे सुनील गावस्कर को दिया गया. 2010 में जब सैफ अली खान को पद्म श्री दिया गया था तो बहुत हंगामा हुआ था. मशहूर स्नूकर चैम्पियन यासीन मर्चेंट ने राहुल गाँधी को चिट्ठी लिखकर सवाल पूछा था कि सैफ किन मानदंडों में फिट थे. यासीन ने सवाल खड़ा किया था कि जो व्यक्ति पत्नी को तलाक दे चुका है और दूसरी युवती के साथ लिव-इन रिलेशन में रह रहा है, वह भारत के लिए किस तरह से रोल मॉडल है ?? उस समय कहा गया था कि कांग्रेस से निकटता सैफ को पुरस्कार मिलने की वजह थी. इसी तरह मनमोहन सिंह सरकार ने एनआरआई व्यवसायी संतसिंह चटवाल को पद्म पुरस्कार दे दिया. इन्हीं चटवाल को अमेरिकी अदालत ने धोखाधड़ी के आरोप में पांच साल की सजा सुनाई थी. फिल्म इंडस्ट्री को 55 साल देने के बाद पद्मश्री दिए जाने से नाराज सलमान खान के पिता और मशहूर पटकथा लेखक सलीम खान ने सम्मान लेने से ही इनकार कर दिया था.
बाबा रामदेव जनवरी 2010 में कह चुके हैं कि पद्म पुरस्कारों के लिए लॉबिंग किसी से छिपी हुई नहीं है और जिन लोगों की राजनेताओं से सांठ-गांठ हैं, उन्हें ये पुरस्कार मिल जाते हैं. मरहूम भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे ने एक बार कहा था कि इस पुरस्कार के चयन से नेताओं को बाहर रखना चाहिए. पिछले साल जदयू प्रमुख शरद यादव पद्म पुरस्कार का चलन बंद करने की मांग कर चुके हैं. उन्होंने कहा था कि इन पुरस्कारों के चयन की प्रक्रिया बेईमान है. उन्होंने कहा था कि 1977 में सत्ता में आयी जनता पार्टी की सरकार और बाद में बनी संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान ये सम्मान नहीं दिए गए थे. सच भी है कि 1977 से 1980, 1993 से 1997 तक पद्म पुरस्कार नहीं दिये गये थे. एक ज़माने में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने सम्मानों में अनियमितताओं के बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को एक नोट भेजा था. तो भैया इतनी बातों को सुनकर तो आपको लग गया होगा कि पद्म पुरस्कार मतलब जुगाड़. दरअसल यह पुरस्कार आपकी योग्यता को ही नहीं दर्शाता है बल्कि सरकार में आपकी हनक को भी बताता है. अब जैसे 2013 में लता मंगेशकर ने पद्म पुरस्कारों के लिए गायक सुरेश वाडेकर के साथ-साथ अपनी छोटी बहन उषा मंगेशकर का नाम भेज दिया था. जिस पर हंगामा हुआ था. लता दीदी नाराज़ भी हो गयीं थीं. उन्हें ट्वीट किया था- ‘हर साल पद्म पुरस्कारों की समिति का ख़त मेरे पास आता है, जिसमें वो मेरी पसंद पूछते हैं. मैं अब तक कई लोगों का नाम भेज चुकी हूं.’ मतलब समझ गए न ! कि ये भाई-भतीजा वाद नहीं था. केवल योग्यता आधार था. समझिये न, एक तो उन सब के लिए दर्द का सबब कि कोशिशों के बावजूद एवार्ड नहीं मिला और दूसरा यह कि एक तो एवार्ड नहीं दिया और फिर पब्लिक को नाम भी बता रहे हैं… भला यह भी कोई बात हुए !!! मान लिया कि आशा पारेख को गडकरी की बिल्डिंग में चढ़ने से कुछ फायदा नहीं हुआ लेकिन मुझे लगता है कि गडकरी अपनी सीढ़ी रोज़ चढ़े उतरें तो उन्हें फायदा होगा।

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