HIT **** (News Rating Point) 16.07.2016
पूर्व सांसद डॉ राजेश मिश्र उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष के रूप में चुने जाने की वजह से चर्चा में रहे. राजेश मिश्रा के राजनीतिक जीवन की शुरुआत दशकों पहले हुई थी. काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उन्होंने राजनीतिक विज्ञान मे एमए किया है. राजनीति के प्रति लगन का आलम यह था कि उन्हें विश्वविद्यालय ने गोल्ड मेडल से भी सम्मानित किया है. पढ़ाई लिखाई मे बैचलर पत्रकारिता की भी डिग्री इन्होंने हासिल की है. भाषा मे हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत के अलावा भोजपुरी की अच्छा जानकारी है. राजनीतिक जीवन की शुरुआत में ही यह बीएचयू छात्र संघ मे सक्रिय नेता रहे. कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के चुनाव 2004 मे सांसद के रूप मे चुने गए और 2009 तक प्रतिनिधी के रूप मे बनारस में पार्टी के लिए काम किया. डॉ राजेश मिश्रा प्रखरवक्ता के रूप में जाने जाते हैं. वे दो बार एमएलसी और एक बार सांसद भी रह चुके है. अखबारों ने लिखा कि डॉ राजेश मिश्र और जुझारूपन एक दूसरे के पर्याय हैं. कभी हार न मानने वाला नाम है राजेश मिश्र. ये वो शख्स है जिन्हें जब 1999 में पार्टी ने भाजपा प्रत्याशी शंकर प्रसाद जायसवाल के विरुद्ध टिकट दिया तो पहली बार में ही अपनी छाप छोड़ी. यह दीगर है कि वह चुनाव हार गए. लेकिन हार फिर भी नहीं मानी अपने मतदाताओं के बीच घूमते रहे. अपना वोट बैंक तैयार करते रहे. फिर इन्हें मौका मिला एमएलसी चुनाव में लेकिन तब भी वह भाजपा के ज्ञानचंद द्विवेदी से चुनाव हार गए. लेकिन तभी भाग्य ने करवट बदला और ज्ञानचंद द्विवेदी का निधन हुआ और डॉ मिश्र ने उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल की. फिर एमएलसी के आम चुनाव में भी वह चुने गए. एमएलसी रहते ही इन्होंने 2004 में पुनः शंकर प्रसाद जायसवाल के विरुद्ध लोकसभा का चुनाव लड़ा और पिछली हार का हिसाब चुक्ता करते हुए पार्टी को भाजपा के गढ़ में लोकसभा सीट दिलाई. लेकिन 2009 के लोक सभा चुनाव में इन्हें हार का सामना करना पड़ा. 2009 का चुनाव इनके लिए भारी पड़ा, नतीजा 2014 में इनकी जगह कांग्रेस में शामिल हुए अजय राय को नरेंद्र मोदी के खिलाफ टिकट मिला. डॉ राजेश मिश्र ने राजनीति का ककहरा बीएचयू से सीखा. पहली बार मनोज सिन्हा की अध्यक्षता वाले छात्रसंघ में उपाध्यक्ष बने जबकि कांग्रेस नेता अनिल श्रीवास्तव महामंत्री. राजेश मिश्र ने 1984 में अनिल श्रीवास्तव के विरुद्ध अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा पर बाजी अनिल के हाथ लगी. उसके बाद वीरेंद्र सिंह, ओम प्रकाश सिंह के विरुद्ध भी चुनाव मैदान में आए पर तब बीएचयू का माहौल बिगड़ा. विश्वविद्यालय अनिश्चित काल के लिए बंद हुआ. फिर छात्र राजनीति के उस दौर का अंत ही हो गया. लेकिन युवाओं के बीच डॉ राजेश मिश्र का क्रेज शुरू से रहा. लड़ने वाले नेता के रूप में यह विख्यात रहे.
(अखबारों, चैनलों और अन्य स्रोतों के आधार पर)