संसद में साड़ी- क्या समझेंगे अनाड़ी !

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नवल कान्त सिन्हा
(NRP) 08.01.2016
हेमा, रेखा, जया और सुषमा सबकी पसंद निरमा… अरे निरमा न सही साड़ी ही सही… इसमें हर्ज़ ही क्या है… अरे सांसद हो गयीं तो क्या महिला नहीं रहीं.. और अगर महिला सांसद साड़ियों पर बात नहीं करेंगी तो क्या पुरुष सांसद करेंगे… भई वाह, सुप्रिया सूले ने ज़रा सा ये क्या कह दिया कि राज्यसभा में हम साड़ियों पर बात करते हैं तो लोगों ने हंगामा खड़ा करके रख दिया. जिधर देखो चर्चा है कि शरद पवार की बेटी ने नासिक में महिला सांसदों पर साड़ियों की गॉसिप पर बयान दिया है. सुप्रिया ने सिर्फ इत्ता सा कहा- “जब हम महिला सांसद बोर हो जाते हैं तो साड़ी वगैरह की चर्चा कर लेते हैं. मैं तो दक्षिण भारत की महिला सांसदों से फैशन के बारे में बात करती हूं औऱ आप लोगों को लगता है कि हम लोग देशहित से जुड़ी कोई गंभीर चर्चा में मशगूल हैं.” अब इस बात में कौन सी बुराई है…
बरस 2012 में जब 27 अप्रैल को अभिनेत्री रेखा को राष्ट्रपति ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया था तो टीवी चैनलों पर उनकी समाजसेवा की कोशिशों से ज़्यादा चर्चा उनकी कांजीवरम साड़ियों की ही हुई थी. और हो भी क्यों न, क्योंकि जब मनोनयन हुआ तो उस समय वह अपनी फिल्मों की वजह से नहीं बल्कि अपनी स्टाइल और साड़ियों के लिए ज़्यादा पहचान बना चुकी थीं. जया बच्चन वहां पहले से ही थीं, जो कि अपनी साड़ियों के पहनने के अंदाज़ की वजह से जानी जाती रही हैं. अब जया और रेखा के संबंध कैसे हैं, मुझे नहीं पता… लेकिन लोगों के जेहन में तो वही संबंध होंगे न, जो फिल्म सिलसिला में दिखाए गए थे. ऐसे में दोनों के बीच कम्पटीशन भी तो हो सकता है !!! स्मृति ईरानी की साड़ियों को क्या फालो नहीं किया जाता !! और राज्यसभा क्यों, लोकसभा किसी से कमज़ोर है ! हेमा मालिनी क्या केवल नेता हैं ? वह महिला नहीं हैं क्या ? फैशन आइकॉन नहीं हैं क्या ? उनकी साड़ियाँ क्या किसी कमज़ोर होती हैं.
क्या कहा- मैं सिर्फ हिरोइनों पे चर्चा कर रहा हूं !!! लीजिये उससे गंभीर चर्चा कर लेते हैं. लोकसभा की वरिष्ठ सांसद, अपने देश की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बात कर लेते हैं. अभी हाल में उन्होंने लोकसभा में ये स्वीकारोक्ति की कि वह हर बुधवार को हरी साड़ी पहनती हैं. बाकी दिनों का भी सुन लीजिये… मैंने कहीं सुना है कि वह सोमवार को सफ़ेद, मंगल को लाल, गुरुवार को पीला, शुक्रवार को ग्रे और शनिवार को ब्लैक पहनती हैं. दिल्ली की ऑड-इवन कवायद की तरह वह सन्डे को रंगों की छूट रखती हैं. कपड़ा ही क्यों वह खाना भी इन्ही रंगों का खाना पसंद करती हैं. मसलन सोमवार को सफ़ेद चना और गोभी, मंगल को राजमा-गाजर, बुधवार को शिमला मिर्च-पालक, गुरूवार को कढ़ी-बेसन चीला, शुक्रवार को मूंग और उड़द की मिक्स दाल और शनिवार को काला चना…. भगवान जाने ये बात सच है या झूठ… ये फैशन है या आध्यात्म…. लेकिन इसमें हर्ज ही क्या है !
अब आप ये कह सकते हैं कि ये जिक्र तो उन महिला सांसदों का है, जो अपेक्षाकृत बड़े घरों और बड़े स्टेटस की हैं. तो आपके सामने उस सांसद का जिक्र करता हूं, जो दलित की बेटी और बसपा प्रमुख हैं यानी आदरणीय बहनजी कुमारी मायावती जी. इन्होंने भले ही अपने जीवन के शुरूआती दिन अभावों और भेदभाव में काटे. बहुजन से राजनीति शुरू कर भले ही अब वह सर्वजन की राजनीति तक पहुँच गयीं हों लेकिन उनकी राजनीति बदली ड्रेस का गुलाबी कलर नहीं. यहाँ तक हज़ारों करोड़ रूपये खर्च कर उनके जमाने में बनी इमारतों को ही देख लीजिये… उनका रंग गुलाबी ही मिलेगा.
और पत्रकार कौन सा हरदम गंभीर बात करते हैं. याद होगा आपको प्रियंका गांधी का रायबरेली-अमेठी का वह दौरा, जब चैनलों ने दुनिया का सबसे बड़ी ब्रेकिंग खबर दी थी. दिनभर डिबेट हुई थी… खबर थी कि प्रियंका गाँधी अपनी दादी इंदिरा गांधी की साड़ियों को पहनना पसंद करती हैं. रिपोर्टरों ने एक्सक्लूसिव बात कर प्रियंका से इस बात की जानकारी ली थी. चैनलों ने इस खबर पर डेढ़ दिन निकाल दिए थे.
फिर महिला सांसदों की ही बात क्यों, पुरुष सांसद क्या किसी से कम हैं ! टीवी चैनलों की महिमा से नेताओं का फेवरिट सफ़ेद कुर्ता पीछे हो गया है और उसके ऊपर आ गयी हैं रंग-बिरंगी सदरियाँ… पुरुष नेताओं के फैशन की हद तो यहाँ तक है कि आपको याद होगा कि मुंबई विस्फोट के बाद जब उस समय के गृहमंत्री शिवराज पाटिल वहां गए थे. इस तनाव और मौत के मंजर में भी वह एक दिन में कई बार अपनी ड्रेस बदलना नहीं भूले थे. अपने वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को ही देख लीजिये… आज के दौर में उनकी ड्रेस के चर्चे पूरी दुनिया में होते हैं. यहाँ तक कि उनके कपड़ों के दाम और स्टाइल को लेकर विवाद तक हो जाता है.
लेकिन ये सब बात छोड़िये सवाल ये है कि सांसद अपने कपड़ों को लेकर चर्चा क्यों न करें !!! और फिर महिला सांसदों की इस बात को लेकर आलोचना करना तो मेरी नज़र में पाप है… कभी सांसदों के घोषणापत्र पर नज़र डाल लीजिएगा ज़्यादातर करोड़ों की संपत्तियों और हीरे-जवाहरात के मालिक हैं… लेकिन इतना पैसा होने के बावजूद कार तक नहीं खरीदते हैं… राजाओं का ज़माना तो है नहीं कि हीरे-जवाहरात लाद कर निकलें… अब इस पैसे का क्या करें… तो एक शौक बचा न… कपड़े का !! और उस भी रोक, उसकी चर्चा पर भी रोक….. तौबा-तौबा.

 

[box type=”info” head=”नोट”]सिर्फ हास्य-व्यंग्य है, दिल पर न लें… किसी का कलेजा दुखाना कभी किसी हास्य-व्यंग्य का मकसद नहीं हो सकता, सचमुच… फिर भी बुरा लगा तो- हमसे भूल हो गयी हमका माफी दई दो… नहीं तो फोन कर दो, मेल कर दो- आइंदा आपसे बचकर चलेंगे भैया…[/box]

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