ज़रा याद करो रविन्द्र पाटिल !

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कांस्टेबल रविन्द्र पाटिल को मैं नहीं जानता​… उसकी नौकरी क्यों गयी, मै नहीं जानता… उसे टीबी की बीमारी कैसे हुई और वह क्यों मर गया, मैं नहीं जानता… लेकिन बार-बार मन में सवाल आया कि सलमान खान को हुई सज़ा के पीछे क्या सबसे अहम था और हर बार जवाब मिला- कांस्टेबल रवींद्र पाटिल… अब सवाल यह है कि जिस सलमान खान लिए उसका ड्राइवर झूठी गवाही देकर जेल जाने को तैयार था. जिसके रसूख के चलते केस 13 सालों तक खींचता चला गया… ऐसे में रवींद्र पाटिल कैसे अहम बना रहा. अगर आप नहीं जानते हैं तो सुनकर आपके भी रोंगटे खड़े हो जायेंगे. उसकी ज़िन्दगी पर हुए अत्याचार की कहानी एकदम फ़िल्मी है. रवींद्र का जो हश्र हुआ, वह स्वाभाविक नज़र नहीं आता और अगर वह स्वाभाविक नहीं है तो बहुत ही शर्मनाक और घिनौना है.

Ravindra Patil 4नवभारत टाइम्स ने लिखा कि सलमान ने शुरुआत से ही इस मामले से जुड़े गवाहों और तथ्यों को गुमराह करने की कोशिश की लेकिन कोर्ट ने चश्मदीद गवाह को ही सुनवाई का आधार माना. वह गवाह जो 4 अक्टूबर, 2007 को मर चुका है. सिपाही रविंद्र पाटिल इस केस के मुख्य गवाह थे. वही रविंद्र पाटिल जिनकी गवाही इस केस के फाइनल फैसले पर असर डाल गई. रविंद्र पाटिल के करीबी इस फैसले से बेहद सुकून में हैं. उनके मुताबिक मौत से पहले रविंद्र पर इस मामले में अपना बयान बदल लेने के लिए बेहद दबाव था. इसका जिक्र कई फ्रीलांस ब्लॉगर्स ने अपने ब्लॉग में भी किया था, जिन्हें बाद में हटा लिया गया. कुछ लोगों ने शक जताया कि ब्लॉगर्स ने ऐसा सलमान के दबाव में आकर किया, क्योंकि सभी ने अपने पोस्ट के लिए लिखित माफी मांगी थी. गौरतलब है कि पाटिल ही एकमात्र ऐसे गवाह थे, जिनका कहना था कि कार ऐक्सिडेंट सलमान के नशे की हालत में तेज रफ्तार पर कार चलाने से हुआ. वह कोई टेक्निकल एरर नहीं था. पाटिल ने अपना यह बयान मरते दम तक नहीं बदला. इन ब्लॉग्स की मानें तो पाटिल सिपाही रैंक पर थे. फोर्स में सबसे छोटी और कमजोर रैंक पर. वह अकेले इस मामले में कुछ भी कर पाने में अक्षम थे. 2006 में जब सलमान ने मुंबई के बेस्ट डिफेंस लॉयर को हायर किया, तो पहला टारगेट पाटिल को ही बनाया गया. क्रॉस एग्जामिनेशन में उसे घेर लिया गया. उसी से परेशान होकर पाटिल एक दिन घर से भाग गया, जिसकी कंप्लेंट पाटिल के भाई ने पुलिस में करवाई थी. यह बात हैरान करने वाली थी कि मामले की एफआईआर करने वाला पुलिसिया सिपाही ही मामले में फंसा दिया गया था. पाटिल के खिलाफ अरेस्ट वॉरंट जारी किए गए, तो डर के मारे पाटिल ने तारीख पर जाना बंद कर दिया. बाद में उसे पकड़कर आर्थर रोड जेल भेज दिया गया. पाटिल ने क्राइम ब्रांच में अपनी दुहाई भेजी, जिसे अनसुना कर दिया गया. बहरहाल, जब पाटिल जेल से छूटा तो उसे पुलिस में वापस नौकरी नहीं मिली. तकरीबन एक साल के शोषण के बाद 2007 में मुंबई के एक सरकारी हॉस्पिटल में पाटिल भर्ती पाए गए, जिन्हें मुंबई की रेड लाइट्स पर भीख मांगते वक्त बेहोश होने पर हॉस्पिटल लाया गया था. पाटिल के परिवार वालों के पास उनकी कोई सूचना नहीं थी. सरकारी वॉर्ड के बेड नंबर 189 पर दवाइयों के अभाव में पाटिल लंबे वक्त तक तड़पते रहे और उनकी टीबी विकराल रूप लेती गई. कुछ ही दिन बाद उनकी मौत हो गई. उनके भाई ने उनका अंतिम संस्कार किया. जिस दोस्त ने पाटिल से आखिरी बार मुलाकात की थी, उसने कहा कि मरते दम तक पाटिल की दो इच्छाएं थीं. एक थी दोबारा पुलिस में भर्ती होना और दूसरी थी सलमान को सजा दिलवाने की कोशिश करना. लेकिन पाटिल के मामले में मौत से पहले न सही, मौत के बाद उनकी एक आखिरी इच्छा पूरी हुई.

Ravindra Patil 3डेली न्यूज़ एंड एनालिसिस लिखता है- हाई प्रोफाइल केस होने के चलते पाटिल को एसओएस कमांडो की ड्यूटी से हटा दिया गया था. उसके करीबी लोग बताते हैं कि उस पर पुलिस को दिए गए अपने बयान को वापस लेने का जबरदस्त दबाव था. हालांकि उसने ये कभी नहीं बताया कि ये दबाव उस पर कौन डाल रहा था. यह बात साफ़ है कि पाटिल पर भयानक दबाव होने के चलते उसका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य गिरता चला गया. सब जानते थी कि ट्रायल के दौरान सबसे दमदार सबूत प्रत्यक्षदर्शी पाटिल ही था. इस केस के कुल 27 गवाहों में पाटिल ही सर्वप्रमुख था.  हालांकि जब पाटिल की कोर्ट में गवाही देने की बारी आयी तो वह गायब हो गया. जो उसके करीबी हैं उनका कहना है कि वो अकेला पड़ गया था और उसके अन्दर कोर्ट में गवाही देने की हिम्मत नहीं बची थी. बहुत से लोग मानते हैं कि मुम्बई पुलिस को एक पुलिस वाला और मुख्य गवाह होने के नाते उसके साथ खडा होना चाहिए था और उसे संरक्षण देना चाहिए था. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और पाटिल लगातार कोर्ट से बचता रहा. हकीकत यह है कि जब वह गायब हुआ तो उसके भाई ने उसके गायब होने की प्राथमिकी भी दर्ज कराई. उस समय चारो तरफ यह हल्ला हुआ कि पाटिल पर गवाही से बचने का दबाव है. पाटिल के लिए स्थिति तब और बुरी हो गयी, जब ट्रायल से बचने को कोर्ट ने अच्छा नहीं माना. उसकी अनुपस्थिति से पहले लेट चल रहा ट्रायल और लेट होता गया. जब पुलिस से पूछा गया कि पाटिल कहाँ है तो कोर्ट को बताया गया कि वह विभाग को बिना सूचना दिए छुट्टी पर है. इस सूचना के आधार पर उसके खिलाफ वारंट जारी हुआ और कोर्ट ने पुलिस को उसकी गिरफ़्तारी के आदेश दिए. मुम्बई पुलिस की पाटिल पर दोहरी मार हुई यानी उसे बिना परमिशन के छुट्टी पर जाने के आरोप में नौकरी से भी बर्खास्त कर दिया गया. अंततः पाटिल महाबलेश्वर के एक होटल में मिला, उसके खुद के विभाग ने उसे तत्काल गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया. पाटिल ने ये कभी नहीं सोचा होगा कि वो उस मामले में गिरफ्तार हो जाएगा, जिसका वो खुद शिकायतकर्ता है और जिसकी प्राथमिकी उसने खुद दर्ज करवाई है.

​​Ravindra Patil 2वेबसाईट न्यूज़ टुडे टाइम ने लिखा- किसी को याद नहीं होगा कि रवींद्र पाटिल सलमान खान से जुड़े ‘हिट एंड रन’ मामले में एक प्रमुख गवाह था. यही वो शख्स था, जो इस केस के बारे में सब कुछ जानता था. इस केस के चश्मदीद गवाह रहे रवींद्र पाटिल आज इस दुनिया में नहीं है. वह ही शख्स था, जिसने पुलिस को सबसे पहले सूचित किया था और वही मुख्य गवाह होने के कारण उस पर स्टेटमेंट बदलने के लिए दवाब डाला गया, ताकि सलमान खान जेल जाने से बच सके. लेकिन उसने अपनी आखिरी सांस तक बयान नहीं बदला. रवींद्र को बयान बदलने के लिए लालच और धमकी भी दी गई. यहां तक कि पुलिस ने उसके परिवार को काफी परेशान भी किया. ​‘हिट एंड रन मामले’ में जुड़ने के बाद से ही रवींद्र कोर्ट-कचहरी तथा उस पर वकीलों के दबाव और अधिकारियों के भी उस पर दबाव के चलते परेशान हो गया था. वह कोर्ट में वकीलों के सवालों के सवाल जवाब तथा लगातार मिल रही धमकियों से चलते वह डिप्रेशन में चला गया, जिससे उसकी नौकरी पर भी प्रभाव पड़ा . कई बार डिप्रेशन के कारण नौकरी पर न पहुँच पाने के चलते सीनियर पुलिस अधिकारियों ने नौकरी से अनुपस्थित रहने का आरोप लगाकर रवींद्र को नौकरी से निकाल दिया था. नौकरी से निकाल देने के बाद भी पुलिस ने रवींद्र का पीछा नहीं छोड़ा था. इसलिए वह मुंबई से कहीं और चला गया था. परिवार के अनुसार वह अक्सर चोरी-छिपे अपनी पत्नी व परिवार से मिलने एक-दो दिन के लिए मुंबई आया करता था. ​​एक-दो बार बीमारी के चलते पेशी के दौरान कोर्ट में अनुपस्थित रहने के आरोप में रवींद्र को जेल भेज दिया गया. जेल में भी उसे अन्य कैदियों से अलग रखा गया. एक बार उसे सीरियल किलर्स के साथ ही रखा गया. रवींद्र ने इसके लिए आवेदन भी किया था कि उसे सीरियल किलर के साथ न रखा जाए, लेकिन कोर्ट ने उसके इस आवेदन को रद्द कर दिया था. इस केस में जेल से बाहर आने के बाद परिवार वालों ने उसे बयान बदलने के लिए काफी समझाया, क्योंकि पुलिस परिवार को परेशान कर रही थी. लेकिन इस रवींद्र ने उनकी बात नहीं मानी, और अपना बयान नहीं बदला.

Ravindra Patil 1मिड डे ने लिखा कि रविन्द्र पाटिल की मां सुशीला बाई पाटिल का कहना है कि अब उसके बेटे की आत्मा को शान्ति मिली होगी. रविन्द्र का बड़ा भाई वीरेंद्र पाटिल स्टेट पुलिस फ़ोर्स में कॉन्स्टेबल के रूप में काम करता है. उसका कहना है कि उसकी 65 वर्षीय मां छोटे भाई की मौत के लिए हमेशा सलमान खान को जिम्मेदार मानती हैं. यद्यपि जब यह मामला हुआ था, वह एकदम फिट था लेकिन बाद में उसकी टीबी से मौत हो गयी. दरअसल इस केस की कार्यवाही के दौरान उसका स्वास्थ्य ढलता चला गया.
साफ़ नज़र आता है कि रविन्द्र की हालत की जिम्मेदार वह परिस्थितियाँ ही थीं, जो उसको मौत के मुंह में ले गयी. लेकिन यह परिस्थितियाँ पनपी क्यों ? क्या उसकी मानसिक और शारीरिक बीमारी स्वाभाविक थी या फिर सलमान खान के खिलाफ उसकी गवाही जिम्मेदार थी? सवाल कई हैं लेकिन इसका जवाब देने के लिए रविन्द्र इस दुनिया में नहीं है. (नवल कान्त सिन्हा)

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