मस्त हैं…. आदि गोदरेज धंधे में, नेता सियासत में और शराबी दारू में

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नवल कान्त सिन्हा
(News Rating Point) 12.05.2016
अरे आदि गोदरेज साहब, आपको सम्मान दूं या गाली दूं… समझ में नहीं आ रहा क्योंकि न आप झूठ बोल रहे हैं और न सच ! हर बात का जवाब तो धंधा नहीं हो सकता. ऐसे तो ड्रग्स पर प्रतिबन्ध से अरबों रूपये का नुकसान हो रहा है तो क्या शुरू कर दिया जाए. छोड़िये साहब आपको धंधे की चिंता है और नेताओं को सियासत की. रोज़ रात को जब बीवी मार खाती है तो उसे शराबबंदी याद आती है. सड़क पर शराबी ड्राइवर की वजह से मौत होती है तो शराबबंदी याद आती है. जब नशेड़ी छेड़छाड़, रेप, मर्डर करते हैं तो शराबबंदी याद आती है… नेताओं को भी जब वोटर याद आते हैं तो शराबबंदी याद आती है… और जब शराबबंदी हो जाती है तो व्यवसायियों को धंधे की याद आ जाती है.
ज़रा शराबबंदी को समझ लें. मेरी जानकारी में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, इरान, लीबिया, ब्रूनेई, पाकिस्तान, सऊदी अरब, सूडान, सोमालिया, यमन सहित कई देशों में शराबबंदी है तो क्या ये देश तरक्की कर गए या यहाँ महिलाओं को अधिकार मिल गए ! दरअसल समस्या कुछ और है और सियासी इलाज कुछ और हो रहा है. चर्चा में फंसाओ और चुनाव में लाभ कमाओ. नितीश कुमार ने वाराणसी में यूपी चुनाव अभियान की शुरुआत की और कह डाला कि उन्हें संघमुक्त भारत और शराबमुक्त समाज चाहिए. एक ही लाइन में उन्होंने साफ़ ज़ाहिर कर दिया कि शराबबंदी सियासी मुद्दा है.
जो शराबबंदी आज लागू करने की बात की जा रही है उसे अमेरिका 1929 में लागू कर चुका है. लेकिन 1933 में उसे शराबबंदी वापस लेनी पड़ी. उस समय इसे नोबल एक्सपेरिमेंट नाम दिया गया. वहां 0.05 फीसदी अल्कोहल वाले पदार्थ भी प्रतिबंधित थे. लेकिन तमाम नेक इरादों के बावजूद यह विफल हो गया था. क्योंकि घर-घर में अवैध शराब बनने लगी थी. मैक्सिको-कनाडा से तस्करी बढ़ गई. अल कपोनीज जैसे कुख्यात माफिया पनप गए. मुकदमों की संख्या बढ़ी, कैदियों की संख्या इतनी हो गई कि जेलों की व्यवस्था चरमरा गई. अदालतों में मुकदमों के अंबार लग गए, दूसरे मामलों की सुनवाई का वक्त नहीं मिला. पुलिस इसी में व्यस्त हो गई तो हत्या, लूट, चोरी जैसे संगीन अपराध काफी बढ़ गए. अब समझिये कि पुलिस और कोर्ट का काम वहां इसलिए बढ़ गया था क्योंकि वहां क़ानून का पालन हो रहा था.
वरना गुजरात में पुलिस और कोर्ट को शराब की मामलों से फुर्सत मिलती ! सब जानते हैं कि भले ही गुजरात में शराबबंदी हो, मगर प्रशासनिक तंत्र की मिलीभगत से शराब हर जगह, हर समय मिलती है. गुजरात के कारण राजस्थान में भी माफिया पनपे हैं. नकली व अवैध शराब से गुजरात के अहमदाबाद में 1977 में 101 लोगों की मौत हुई. इसी तरह 1982 में वड़ोदरा में 132, साल 2008 में अहमदाबाद में हुई एक बड़ी दुर्घटना में शराब पीने से 150 लोग मारे गए थे और 2009 में गुजरात के विभिन्न प्रांतों में 130 लोगों की मौत हुई है. दरअसल ग़ैरक़ानूनी ज़हरीली पीने से राज्य में अब तक 3,000 लोगों की मौत हो चुकी है. सरकारी के आंकड़ों के मुताबिक़ ही पिछले पांच सालों में वहां 2500 करोड़ रुपए की अवैध शराब ज़ब्त हुई. वहां ज़हरीली शराब से मौत होने पर दोषियों के लिए मौत की सज़ा का प्रावधान किया गया. लेकिन आपको बता दें कि वहां आजतक एक भी शराब बेचने वाले या पीने वाले को सज़ा नहीं हुई है.
हरियाणा विकास पार्टी के प्रमुख चौधरी बंसीलाल ने चुनावी वादा पूरा करने के लिए 1996 में शराबबंदी लागू की. सरकार को 1200 करोड़ का घाटा हुआ, 20 हजार लोग बेरोजगार हुए, 40 हजार ट्रांसपोर्टर, पैकेजिंग वाले और किसानों की आमदनी घट गई. पहले ही साल 96 हजार 699 मुकदमे दर्ज हुए, जिसमें 1 लाख लोगों को आरोपी बनाया गया. 19 माह बाद फैसला वापस लेना पड़ा. आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव ने 1995 में शराबबंदी लागू की लेकिन सरकार चली गई. 2001 में चंद्रबाबू नायडू ने शराबबंदी ही खत्म नहीं की बल्कि 26 हजार गांवों में 14 हजार दुकानें और खोल दीं.
अब आप सोच रहे होंगे कि शराब की इतनी तारीफ़ क्यों… दरअसल मैं शराब का समर्थक नहीं, मैं तो केवल ये कहना चाह रहा हूं कि जैसे आदि गोदरेज शराबबंदी पर केवल अपना धंधा देख रहे हैं, उसी तरह तरह से नेता केवल अपनी सियासत देख रहे हैं. शराब पीकर गाड़ी चलाने पर भी क़ानून है. छेड़छाड़, रेप मर्डर पर भी क़ानून है. बीवी की पिटाई पर भी क़ानून है. लेकिन नेता अब तक इसे लागू नहीं कर पाए या ये कहिये कि लागू नहीं करना चाहा. और जब मौक़ा आया समस्या की जड़ शराब को बता दिया. लेकिन शराबबंदी पर क्या क़ानून लागू कर पायेंगे ! क्या बिहार में शराबबंदी लागू हो चुकी है और उल्लंघन करने वाले जेल में हैं ? और जो सरकारें शराब से अरबों रूपये की कमाई करती है वो शराबियों के पुनर्वास और बीमारी के लिए कितना पैसा खर्चा करती हैं ? दरअसल उन्हें न पिलाने की चिंता है और न ही शराबबंदी की… उन्हें तो चिंता है अपनी सियासत की.

[box type=”info” head=”नोट”]सिर्फ हास्य-व्यंग्य है, दिल पर न लें… किसी का कलेजा दुखाना कभी किसी हास्य-व्यंग्य का मकसद नहीं हो सकता, सचमुच… फिर भी बुरा लगा तो- हमसे भूल हो गयी हमका माफी दई दो… नहीं तो फोन कर दो, मेल कर दो- आइंदा आपसे बचकर चलेंगे भैया…[/box]

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