Arun Jaitley BJP

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FLOP ** (News Rating Point) 09.05.2015
​अपनी ही विभाग में नहीं चलती अरुण जेटली की…. इस सप्ताह कुछ ऐसी खबरें प्रकाशित हुई. अमर उजाला ने सवाल उठाया कि पिछले दिनों अधिसूचित आयकर रिटर्न फार्म (आईटीआर) में महत्वपूर्ण बदलाव प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों ने कराया था? इस मामले में केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली भी अंधेरे में थे? इस तरह के सवाल इन दिनों नार्थ ब्लॉक के गलियारे में उठ रहे हैं. इसी सप्ताह कई अखबारों और वेबसाइट्स ने लिखा कि लिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते वित्त मंत्री अरुण जेटली की उस योजना पर पानी फेर दिया, जिसमें वह आरबीआई की शक्ति को कम करना चाहते थे.

अमर उजाला ने मंगलवार को लिखा- केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा असेसमेंट वर्ष 2015-16 के लिए पिछले दिनों अधिसूचित आयकर रिटर्न फार्म (आईटीआर) में महत्वपूर्ण बदलाव प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों ने कराया था? इस मामले में केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली भी अंधेरे में थे? इस तरह के सवाल इन दिनों नार्थ ब्लॉक के गलियारे में उठ रहे हैं. ऐसा भी कहा जा रहा है कि वित्त मंत्रालय में राजस्व विभाग के अधिकारियों ने सीधे पीएमओ के निर्देश पर काम किया और ऐसे समय में आईटीआर को अधिसूचित किया, जबकि जेटली विदेश में थे. सरकार से जुड़े एक सूत्र का कहना है कि आईटीआर फार्म को अधिसूचित करने से पहले बदलाव वाले तथ्यों की पूरी जानकारी जेटली को भी नहीं थी. उन्हें जब इससे संबंधित फाइल दिखाई गई थी तब उन सब बातों का विस्तारपूर्वक जिक्र नहीं हुआ था, जो कि बाद में विवाद की वजह बनीं. यही नहीं, इन फार्मों को तब अधिसूचित किया गया, जबकि वित्त मंत्री सरकारी दौरे पर विदेश में थे. लेकिन जैसे ही फार्म अधिसूचित हुआ, इसमें विदेश यात्रा और सभी बैंक खातों की जानकारी देने कॉलम को लेकर मीडिया में बवाल मच गया. इसके चलते वित्त मंत्री जेटली ने विदेश से ही केंद्रीय राजस्व सचिव शक्तिकांत दास को फोन पर निर्देश दिया था कि इन आईटीआर फार्मों पर अमल रोक दें और नए फार्म तैयार करने में जुट जाएं. सूत्रों के मुताबिक उस समय पीएमओ से हरी झंडी मिलने के बाद ही केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के अधिकारी आगे बढ़े थे. अमर उजाला इन तथ्यों की पुष्टि नहीं कर पाया है.
राजस्थान से प्रकाशित अखबार प्रातः काल ने लिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते वित्त मंत्री अरुण जेटली की उस योजना पर पानी फेर दिया, जिसमें वह आरबीआई की शक्ति को कम करना चाहते थे. सूत्रों ने कहा कि इस मामले में पीएम ने नया रुख अपनाया है और उन्होंने आरबीआई के मार्केट में प्रभाव को स्वीकार्यता दी है. मोदी के सत्ता में आने से महज एक साल पहले रघुराम राजन को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का गवर्नर बनाया गया था. इनकी नियुक्ति तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने की थी. ऐसे में राजन के भविष्य को लेकर संदेह की स्थिति बनी हुई थी. पीएम मोदी की भारतीय जनता पार्टी के सीनियर सहयोगी हमेशा राजन को लेकर हमलावर रहे हैं. ब्याज दरों के प्रति राजन के रवैये से बीजेपी के कई नेताओं ने असहमति जताई है. राजन ने ब्याज दरों के मामले में प्रधानमंत्री की तरफ से इकनॉमिक ग्रोथ के संकल्प अधूरे रहने की चेतावनी दी थी. वहीं राजन ने मोदी सरकार की नीति ‘मेक इन इंडिया’ को लेकर भी आशंका जाहिर की थी. मोदी इस नीति के तहत निर्यात को बढ़ावा देना चाहते हैं. पीएम मोदी के सबसे करीबी सहयोगी वित्त मंत्री अरुण जेटली सरकारी बॉन्ड मार्केट और पब्लिक कर्ज को मैनेज करने की शक्ति रिजर्व बैंक से छीनना चाहते थे. सरकार से जुड़े सीनियर सूत्रों का कहना है कि गुरुवार को इस योजना से जेटली को पीछे हटना पड़ा. सूत्रों का कहना है कि यह फैसला टॉप लेबल पर हुआ है. बीजेपी में सीनियर लोगों ने इस बात की पुष्टि की है कि मोदी ने जेटली और रघुराम राजन के मामले में हस्तक्षेप किया है. यहां मोदी ने राजन का पक्ष लिया. इस मसले पर प्रधानमंत्री ऑफिस और वित्त मंत्री ने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.
आईनेक्स्ट ने लिखा- पीएम मोदी के सबसे करीबी और वित्‍त मंत्री अरुण जेटली को उस वक्‍त जोरदार झटका लगा, जग मोदी ने उनके प्‍लॉन को रोकने पर मजबूर कर दिया. अरुण जेटली के नए प्‍लॉन के अनुसार, वह सरकारी बॉन्‍ड मार्केट और पब्‍िलक लोन को मैनेज करने की शक्‍ित रिजर्व बैंक से छीनना चाहते थे. लेकिन ऐसा हो न सका. सरकार से जुड़े एक सूत्र की मानें, तो गुरुवार को टॉप लेवल की बैठक हुई जिसमें जेटली को पीछे हटना पड़ा. इसी सप्ताह वाल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा- Tax Terrorism Returns to India Could a clutch of finance-ministry bureaucrats derail Prime Minister Narendra Modi’s grand plan to remake India’s economy? Recent damage to the government’s reputation—among both investors and ordinary citizens—suggests tax officials are on a collision course with the politicians they ostensibly serve. Unless resolved, the lack of clarity in the government’s approach to taxation risks undoing good work in other areas of the economy.

(अखबारों, चैनलों और अन्य स्रोतों के आधार पर)

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