एनआरपी डेस्क
नई दिल्ली। बांग्लादेश व म्यांमार के घुसपैठियों ने नई दिल्ली में आबादी के स्वरूप (डेमोग्राफी) को बदल दिया है। इससे सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक परिदृश्य तो बदला ही है, चुनावी प्रक्रिया भी कमजोर हो रही है। शिक्षा, रोजगार समेत दूसरी बुनियादी ज़रुरतों पर दबाब से दिल्ली की मूल आबादी में आक्रोश फैल रहा है। यह खुलासा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस) की रिपोर्ट में किया गया है।
सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिणामों का विश्लेषण, शीर्षक वाली रिपोर्ट के मुताबिक, कम वेतन वाली नौकरियों में अवैध आप्रवासियों की भागीदारी ने स्थानीय लोगों के साथ आर्थिक प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी है। वहीं, उनकी काम करने की इच्छा प्रभावित हुई है। कम वेतन के कारण कुछ क्षेत्रों में कुल कमाई में भी कमी आई है, जबकि अपराधों में लगातार इजाफा हो रहा है। जेएनयू की स्कूल ऑफ लैंग्वेज में रशियन लैंग्वेज की प्रोफेसर मनुराधा चौधरी व प्रोफेसर प्रीति डी दास की अगुवाई में विद्यार्थियों ने यह अध्ययन किया।
रिपोर्ट के अनुसार अवैध घुसपैठियों दलालों सहित अनौपचारिक नेटवर्क से दिल्ली पहुँचे हैं । यहाँ, कुछ राजनैतिक दल उन्हें संरक्षण देते है । ये दल घुसपैठियों के लिए फर्जी मतदाता पंजीकरण की सुविधा दे रहे हैं। नकली पहचान दस्तावेज बनवाने के अलावा आवास व नौकरियों तक में मदद की जा रही है।