एनआरपी डेस्क
लखनऊ। गुजरात में साबरमती के तट से पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी के भविष्य की सियासत का खाका खींच दिया। पार्टी अब ब्राह्मण-दलित और अल्पसंख्यकों के साथ पिछड़ों पर ज्यादा फोकस करेगी। कांग्रेस के 84वें अधिवेशन में गठबंधन की राजनीति को राहुल ने सीधे तौर पर खारिज तो नहीं किया, मगर पार्टी के खुद के बूते खड़ा होने का संदेश जरूर दिया। चुनावी राज्यों विहार, बंगाल आदि में कांग्रेस का यह प्रयोग कितना सफल होगा, इसका फैसला नतीजे करेंगे। मगर यूपी-बिहार में पार्टी ने राहुल के फार्मूले पर कदम आगे जरूर बढ़ा दिए हैं। तकरीबन चार दशक से सियासी वनवास पर है। हालांकि 2009 के लोकसभा चुनाव में उसे 18 फीसदी से अधिक वोटों के साथ 21 सीटें हासिल हुई थीं। मगर 2014 की मोदी लहर में कांग्रेसी कश्ती डूब गई।