द्रौपदी मुर्मू की न्यूज़ रेटिंग टॉप पर, जानिए कौन हैं

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दिल्ली। एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति की प्रत्याशी घोषित होने के साथ ही द्रौपदी मुर्मू देश की सबसे चर्चित शख्सियत बन गई हैं। इसके साथ ही ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का ऐलान किया है. जदयू पहले ही उन्हें समर्थन देने का ऐलान कर चुकी है. तकरीबन सभी चैनल, अखबार और पोर्टल ने मुर्मू की खबर अपने ढंग से ली है.
आजतक ने लिखा कि जब 21 जून की देर शाम बीजेपी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने जब राष्ट्रपति चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा की, तो वह नई दिल्ली से करीब 1600 किलोमीटर दूर रायरंगपुर (ओडिशा) के अपने घर में थीं. इससे ठीक एक दिन पहले 20 जून को उन्होंने अपना 64वां जन्मदिन बड़ी सादगी से मनाया था. तब उन्हें यह विश्वास नहीं रहा हो कि महज़ 24 घंटे बाद वे देश के सबसे बड़े पद के लिए सत्ता पक्ष की तरफ़ से उम्मीदवार बनाई जाने वाली हैं. लेकिन, ऐसा हुआ और अब सारे कयासों पर विराम लग चुका है.

कौन है द्रौपदी मुर्मू
द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू है. वह आदिवासी संथाल परिवार से ताल्लुक रखती हैं. द्रौपदी मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ था. दंपति के दो बेटे और एक बेटी हुई. लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही उन्होंने पति और अपने दोनों बेटों को खो दिया.
पति और दो बेटों को खो चुकां द्रौपदी मुर्मू के पास बस एक बेटी थी, जिसे उन्होंने नौकरी से मिलने वाले वेतन से घर खर्च चलाया और बेटी इति मुर्मू को पढ़ाया-लिखाया. बेटी ने भी कॉलेज की पढ़ाई के बाद एक बैंक में नौकरी हासिल कर ली. इति मुर्मू इन दिनों रांची में रहती हैं और उनकी शादी झारखंड के गणेश से हो चुकी है. दोनों की एक बेटी आद्याश्री है.

कभी क्लर्क भी रहीं द्रौपदी मुर्मू
साल 1979 में भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से बीए पास करने वाली द्रौपदी मुर्मू ने अपने पेशेवर करियर की शुरुआत ओडिशा सरकार के लिए क्लर्क की नौकरी से की. तब वह सिंचाई और ऊर्जा विभाग में जूनियर सहायक थीं. बाद के सालों में वह शिक्षक भी रहीं. उन्होंने रायरंगपुर के श्री अरविंदो इंटिग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में मानद शिक्षक के तौर पर पढ़ाया. नौकरी के दिनों में उनकी पहचान एक मेहनती कर्मचारी के तौर पर थी.

द्रौपदी मुर्मू का सियासी करियर
बीबीसी ने लिखा ही कि द्रौपदी मुर्मू ने अपने सियासी करियर की शुरुआत वार्ड काउंसलर के तौर पर साल 1997 में की थी. तब वे रायरंगपुर नगर पंचायत के चुनाव में वॉर्ड पार्षद चुनी गईं और नगर पंचायत की उपाध्यक्ष बनाई गईं. उसके बाद वे राजनीति मे लगातार आगे बढ़ती चली गईं और रायरंगपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के टिकट पर दो बार (साल 2000 और 2009) विधायक भी बनीं. पहली दफ़ा विधायक बनने के बाद वे साल 2000 से 2004 तक नवीन पटनायक के मंत्रिमंडल में स्वतंत्र प्रभार की राज्यमंत्री रहीं.
उन्होंने मंत्री के बतौर क़रीब दो-दो साल तक वाणिज्य और परिवहन विभाग और मत्स्य पालन के अलावा पशु संसाधन विभाग संभाला. तब नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल (बीजेडी) और बीजेपी ओडिशा मे गठबंधन की सरकार चला रही थी.
साल 2009 में जब वे दूसरी बार विधायक बनीं, तो उनके पास कोई गाड़ी नहीं थी. उनकी कुल जमा पूंजी सिर्फ़ 9 लाख रुपये थी और उन पर तब चार लाख रुपये की देनदारी भी थी.

द्रौपदी का पलड़ा कितना भारी है?
अमर उजाला ने लिखा कि एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। एनडीए के पास अभी कुल 5,26,420 मत हैं। राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए मुर्मू को 5,39,420 मतों की जरूरत है। अब अगर चुनावी समीकरणों को देखें तो ओडिशा से आने के कारण सीधे तौर पर मुर्मू को बीजू जनता दल (बीजद) का समर्थन मिल रहा है। यानी बीजद के 31,000 मत भी उनके पक्ष में पड़ेंगे।
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक पहले ही द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दे चुके हैं। इसके अलावा अगर वाईएसआर कांग्रेस भी साथ आती है तो उसके भी 43,000 मत उनके साथ होंगे। इसके अलावा आदिवासी के नाम पर राजनीति करने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए मुर्मू का विरोध करना मुश्किल है।
झामुमो दबाव में आई तो मुर्मू को करीब 20,000 वोट और मिल जाएंगे। वहीं, आम आदमी पार्टी, टीएसआर ने भी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। माना जा रहा है कि द्रौपदी के नाम पर ये दोनों पार्टियां भी एनडीए के साथ आ सकती हैं। इस तरह से एनडीए के पास सात लाख से ज्यादा वैल्यू वाले वोट हो जाएंगे और द्रौपदी आसानी से चुनाव जीत जाएंगी।

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