बनारस की ऐतिहासिक तिरंगी बर्फी फिर रचेगी इतिहास

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वाराणसी। कहने को तो बर्फी फारसी शब्द है लेकिन पूरे भारत में लोगों के दिल, दिमाग, जुबान से लेकर पेट तक यह शब्द रच बस गया है। कुछ तो ऐसी बर्फियां हैं, जिनका देश के इतिहास में नाम दर्ज है। उनमें से बर्फी का नाम है बनारस की तिरंगी बर्फी। चर्चा आपसे इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में 75वें उत्पाद के रूप में स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़ी प्रसिद्ध बनारस की तिरंगी बर्फी का जीआइ आवेदन होने के लिए चेन्नई स्थित जीआइ रजिस्ट्री में भेजा जा चुका है।
काशी के लोगों और व्यापारियों ने एक संस्था के साथ मिलकर यह प्रयास किया है। इसके पूर्व में भी बनारस और पूर्वांचल के 18 उत्पादों को जीआइ का टैग प्राप्त हो चुका है। वाराणसी के नए 12 उत्पाद प्रक्रिया में शामिल हो चुके हैं, जिसमें तिरंगी बर्फी के अलावा शहनाई, तबला, लालपेड़ा, लंगड़ा आम सहित कई उत्पाद शामिल हैं।
बनारस की मूल तिरंगी बर्फी को राष्ट्रीय बर्फी भी कहा जाता है। इसका आविष्कार एक छोटी सी मिठाई की दुकान राम भंडार ने किया था। इस मिठाई की दुकान की स्थापना 1850 के आसपास रघुनाथ दास गुप्ता ने की थी। यह दुकान बनारस के ठठेरी बाजार में है। रघुनाथ दास गुप्ता देशप्रेमी और रचनात्मक व्यक्ति थे। उन्होंने तिरंगी बर्फी के अलावा स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों के नाम पर भी 1945 के आसपास ही मिठाइयां रची थीं, जिनमें जवाहर लड्डू, मोती पाक, मदन मोहन, गांधी गौरव शामिल है।
लोगों के मुंह से हुए प्रचार के जरिए ये मिठाइयाँ पूरे शहर में इतनी प्रसिद्ध हो गईं कि उन्हें अंग्रेजों की रसोई में परोसा जाने लगा। लेकिन इस मिठाई की बढ़ती लोकप्रियता ने स्थानीय ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों को भयभीत भी किया कि कहीं इससे ‘फूड रिवोलूशन’ न हो जाए। बहरहाल इस मिठाई की लोकप्रियता उस समय से ही इतनी बढ़ गई थी कि बनारस से निकल कर ये मिठाई विभिन्न शहरों में बनने लगी थी।
आमतौर पर यह मिठाई खोया, केसर और हरे रंग को मिलाकर बनाई जाती है। 1945 में जब इसका आविष्कार हुआ था, तब इसे बादाम, काजू और पिस्ता के इस्तेमाल से बनाया गया था। पूरे देश में ये मिठाई विभिन्न तरीके से बनाई जाती है। बनारस में शायद ही कोई ऐसी मिठाई की दुकान हो, जहां ये मिठाई नजर ना आए।

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