(News Rating Point) 17.04.2016
जनता को न्याय दिलाने वाले आईपीएस अफसर अपने ही एक साथी की पैरवी से पीछे हट गए। मुजफ्फरनगर दंगा जांच आयोग की रिपोर्ट में आईपीएस सुभाष चंद्र दुबे और एलआईयू इंस्पेक्टर प्रबल प्रताप सिंह को गलत तरीके से जांच में दोषी ठहराने के खिलाफ आईपीएस अफसर एक महीने बाद भी सीएम से मुलाकात का समय नहीं ले पाए हैं। इस बीच आईपीएस असोसिएशन के पदाधिकारी बदल गए। अब वे एक दूसरे पर बात टाल रहे हैं।
नवभारत टाइम्स ने लिखा कि सात मार्च को विधानसभा की कार्रवाई के दौरान मुजफ्फरनगर दंगों की जांच के लिए बने एक सदस्यीय न्यायिक आयोग रिटायर जस्टिस विष्णुकांत सहाय की एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश की गई। इस रिपोर्ट में तत्कालीन एसएसपी मुजफ्फरनगर आईपीएस सुभाष चंद्र दुबे और एलआईयू इंस्पेक्टर प्रबल प्रताप सिंह को छोड़कर सभी अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी गई। दंगे फैलने के लिए इन दोनों को जिम्मेदार बताते हुए कार्रवाई की सिफारिश की गई। इस रिपोर्ट के आते ही आईपीएस अफसरों में गुस्सा फैल गया।
आईपीएस अफसरों के वॉट्सऐप ग्रुप के करीब 200 सदस्यों ने इस रिपोर्ट को गलत ठहराते हुए आईपीएस असोसिएशन की मीटिंग बुलाने और सीएम को प्रत्यावेदन देने की बात तय हुई। यह मीटिंग आठ मार्च को होनी थी। लेकिन नहीं हुई। टलते-टलते 19 मार्च को आईपीएस असोसिएशन की बैठक हुई। बैठक में एडीजी जेल डीएस चौहान ने रिपोर्ट की खामियों से जुड़ी प्रेजेंटेशन दी। इसके बाद मौजूद अफसरों ने एक मत से रिपोर्ट को खारिज करते हुए सीएम से मुलाकात कर समय मांगने की बात तय की, लेकिन कभी होली की छुटिट्यों तो कभी सीएम के न होने का बहाना करके असोसिएशन के अधिकारी रिपोर्ट के खिलाफ सीएम से मुलाकात करने से बचते रहे। पुलिस वीक के दौरान सीएम के साथ अफसरों के तीन कार्यक्रम हुए, लेकिन एक बार भी अफसरों ने इस रिपोर्ट के बाबत मुख्यमंत्री से बात करने की कोशिश नहीं की।
नहीं भेजी इमेल-
पुलिस वीक के दौरान आईपीएस अफसरों की बैठक में असोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष ने मंच से अफसरों से कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री को ईमेल से प्रत्यावेदन भेज दिया है। अब बताया जा रहा है कि उन्होंने ई-मेल से कोई प्रत्यावेदन नहीं भेजा है। नई असोसिएशन के अधिकारियों का इस बारे में कहना है कि गठन के बाद से अब तक असोसिएशन की कोई मीटिंग नहीं हुई है। इस मुद्दे पर अभी कोई विचार नहीं हुआ। पहले क्या हुआ इसके बारे में पूर्व पदाधिकारियों को जानकारी होगी। फिलहाल जिस तरह से असोसिएशन के पदाधिकारी और सीनियर अफसर इस मामले को टाल रहे हैं उससे जाहिर है कि उन्होंने अपने साथी को न्याय दिलाने की मुहिम ठंडे बस्ते में डाल दी है।