एनआरपी डेस्क
लखनऊ। फर्जीवाड़ा और भ्रष्टाचार के जरिए लगातार सुर्खियों में रहने वाला लखनऊ विकास प्राधिकरण एक बार फिर चर्चा में है। इस बार फर्जी तरीके से एलडीए के अधिकारियों ने बाबुओं की मिली भगत से सैकड़ो करोड़ रुपए के प्लांट बेंच डाले। जब मामला खुला तो छोटी मछलियों को सस्पेंड कर बड़े अधिकारियों को बचा लिया गया है। लखनऊ विकास प्राधिकरण की इस काली करतूत की हर ओर चर्चा चल रही है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया और वेब मीडिया ने इस फर्जीवाड़े को विस्तार से कवर किया है। लखनऊ विकास प्राधिकरण के कमजोर निगरानी तंत्र से फूलता-फलता रहा गिरोह और बाबुओं का गठजोड़। एलडीए का निगरानी तंत्र इतना कमजोर है कि फर्जीवाड़ा कर प्राधिकरण के प्लॉट बेचने वाला गिरोह दस साल तक सक्रिय रहा। इसने अलग-अलग योजनाएं देखने वाले बाबुओं की मिलीभगत से 90 से अधिक प्लॉट बेच डाले। इनकी आज कीमत 100 करोड़ रुपये से अधिक है। एसटीएफ ने बीते दिनों गिरोह का खुलासा करते हुए छह लोगों को गिरफ्तार किया था। इससे पहले बीच बीच में अखबारों में फर्जीवाड़े को लेकर खबरें प्रकाशित होने पर एक-दो बाबुओं पर कार्रवाई की गई। हालांकि, अफसरों ने चहेतों को बचा लिया। सूत्रों के अनुसार जिन भूखंडों को बेचा गया, अभी तक उनमें से एक भी प्लॉट की रजिस्ट्री निरस्त नहीं करवाई गई है। इसके लिए एलडीए को हर प्लॉट की कोर्ट फीस जमा करनी होगी। इसके बाद ही रजिस्ट्री निरस्त होगी और मूल स्वामी को वापस मिल सकेगी। इसके लिए लंबी प्रक्रिया अपनानी होगी।