रथयात्रा से सीखिए, केवल इवेंट या त्योहार मत समझिए

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एनआरपी डेस्क
पुरी। हिंदुत्व में सभी कार्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तय थे लेकिन या तो हम उसे समझे नहीं। या नासमझी में उन्हें हम बिगाड़ते गए। जैसे रथयात्रा भी बताती है कि भावनाओं से परिवार के किसी व्यक्ति का इलाज नहीं करना है बल्कि समझदारी से इलाज करना है। जैसे ज्येष्ठ वट सावित्री पूर्णिमा पर 108 घड़ों से स्नान के बाद जगन्नाथ जी उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अस्वस्थ्य होने की वजह से 15 दिन के लिए मंदिर के अनासर घर में एकांत पर रहते हैं।
अनासर घर को यूं समझें कि तीनों Quarantine कर दिया जाता है। इसे प्रभु की ज्वरलीला कहा जाता है। 15 दिन तक तीनों को आयुर्वेदिक काढ़े दिए जाते हैं। उन्हें दशमूली दवा दी जाती है, जिसमें शाला परणी, बेल, कृष्ण पारणी, गम्हारी, अगीबथु, लबिंग कोली, अंकरांती, तिगोखरा, फणफणा, सुनररी, वृहती और पोटली को मिलाकर बनाया जाता है। भोग में भी दलिया, खिचड़ी और मूंग की दाल सहित हल्के खाद्य पदार्थों का भोग लगाया जाता है।
मान्यता के अनुसार 15 दिन के लिए भगवान बुखार और अतिसार (उल्टी, दस्त) से पीड़ित होते हैं। इस दौरान मानव शरीर पर लागू होने वाले सारे नियम भगवान पर भी लागू होते हैं। उनकी पूरी सेवा की जाती है। भगवान को पहले शरीर के तापमान को कम करने के लिए दवाएं दी जाती हैं और फिर औषधियों से बने तेल की मालिश की जाती है।

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