उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा में विधायक के रूप में चुने गए. आज़म खान का जन्म उत्तरप्रदेश के रामपुर में 14 अगस्त 1948 को हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा रामपुर के बक़र स्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने रामपुर के सुंदरलाल इंटर कॉलेज से स्नातक और फिर 1974 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एलएलबी (ऑनर्स) की पढ़ाई पूरी की. राजनीति में पूरी तरह आने से पहले ही आज़म खान का ताज़ीन फातिमा से निकाह हो गया. दो पुत्र हुए, अदीब खान और अब्दुल्लाह खान. वर्तमान में समाजवादी पार्टी के नेता आज़म खान ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ही हो गई थी. वे विश्वविद्यालय में विद्यार्थी संघ के सचिव थे. 1976 में जनता पार्टी ज्वॉइन की. इसके बाद जनता पार्टी में ही रहकर जिला स्तर की राजनीति की. बाद में लोकदल से जुड़ गए, मगर कुछ ही महीनों बाद पुन: जनता दल में आ गए. फासीवाद और राजनीतिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने के लिए अलीगढ़, फैजाबाद, उन्नाव और वाराणसी में तीन साल के लिए विभिन्न जेलों में क़ैद रहे. वह भी आपात काल के दौरान मीसा के तहत गिरफ्तार किया गया था.
1980, 1985, 1989, 1991, 2002, 2007 और 2012 में राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य रहे. 1981-82 में संसदीय अनुसंधान, संदर्भ और राज्य विधानसभा की अध्ययन समिति के सदस्य थे. 1984-85 में राज्य विधानसभा के प्रत्यायोजित विधान समिति के सदस्य रहे. राज्य विधानसभा की प्राक्कलन और याचिका समिति के सदस्य का दायित्व भी निभाया. 1989 में वे उत्तरप्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बने और 05 दिसंबर 1989 से 24 जून 1991 तक श्रम, रोजगार, मुस्लिम वक्फ़ और हज के लिए काम किया. 1993 में वे पुन: विधानसभा का चुनाव जीतकर राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बने. 1994 में आज़म खान मॉइनोरिटी फॉरम ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बने और समाजवादी पार्टी को ज्वॉइन कर लिया. इसी साल वे समाजवादी पार्टी के ऑल इंडिया जनरल सेक्रेटरी बने. 26 नवंबर 1996 से 09 मार्च 2002 तक राज्यसभा सदस्य चुन लिए गए. 1998 में श्रम मंत्रालय में कार्यकारिणी समिति के सदस्य बने और इसी वर्ष लेबर एंड वेलफेयर कमेटी के सदस्य भी बनाए गए. 13 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 तक उत्तरप्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे. 6 सितंबर 2003 से 13 मई 2007 तक संसदीय मामलों, शहरी विकास, जल आपूर्ति, शहरी रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन के कैबिनेट मंत्री बने.
2009 के 15वें लोकसभा चुनाव में सपा की उम्मीदवार जयाप्रदा के खिलाफ खड़े हुए और हार गए. इसके बाद सपा ने आज़म खान को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया, लेकिन 4 दिसंबर 2010 को पार्टी ने उनका निष्कासन रद्द करते हुए उन्हें पार्टी में वापस बुला लिया. 2012 में अखिलेश यादव सरकार में वे कैबिनेट मंत्री बने. बाद में उन पर कई तरह के आरोप लगे, जिसके चलते उन्हें देना पड़ा. 2013 के इलाहाबाद कुंभ मेले के दौरान उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने उन्हें महाकुंभ मेला समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया. 50 लाख से अधिक तीर्थयात्रियों ने पवित्र गंगा नदी में पवित्र डुबकी लगाई और सुरक्षित घर लौटे. हालांकि जब इलाहाबाद रेल्वे स्टेशन पर मची भगदड़ में 40 लोग मारे गए, तो इस हादसे की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए आज़म खान ने कुछ ही घंटों के भीतर 11 फरवरी 2013 को अपना इस्तीफा दे दिया था, जबकि वास्तव में दुर्घटना क्षेत्र कुंभ मेला परिसर से बाहर था. इस्तीफे के बावजूद ईमानदारी से काम करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री ने न केवल आज़म खान की सराहना की, बल्कि उनका इस्तीफा भी अस्वीकार कर दिया. अप्रैल 2013 में अमरीका के बॉस्टन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उत्तर प्रदेश के शहरी विकास मंत्री आज़म ख़ान को कुछ समय तक रोके जाने और उनसे सवाल जवाब किए जाने की घटना हुई थी. हवाई अड्डे पर उतरने के बाद एयरपोर्ट पर तैनात सुरक्षा कर्मियों ने आज़म ख़ान को रोक लिया और पूछताछ के लिए ले गए. हांलाकि बाद में भारतीय दूतावास के दखल के बाद उन्हें छोड़ दिया गया. उस समय एक वक्त ऐसा भी आया, जब अधिकारियों और आज़म ख़ान के बीच बातचीत काफी तूल पकड़ गई. उस वक्त महिला अधिकारी ने आज़म ख़ान को चेतावनी भरे लहज़े में कहा, कि वो उन पर सरकारी ड्यूटी में बाधा डालने के अभियोग लगा सकती है. इस पर आज़म ख़ान का कहना था कि उन्हें मुसलमान होने की वजह से परेशान और अपमानित किया गया है.
कुछ समय पहले भैंस चोरी के मामले को लेकर आज़म खान सुर्खियों में रहे. गौरतलब है कि 1 फरवरी 2014 को उनके रामपुर स्थित फार्महाउस से 7 भैंसें चोरी होने के मामले में परिसर के रखरखावकर्ता के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था. बाद में पुलिस ने खोजी कुत्तों की मदद से, और तमाम ताकत झोंकते हुए 2 ही दिन में खां की भैंसों को ढूंढ लिया. इस मामले में लापरवाही बरतने के आरोप में 1 दारोगा तथा 2 कांस्टेबल को लाइन अटैच कर दिया गया था. मुजफ्फरनगर दंगों तथा प्रदेश में आए दिन आपराधिक घटनाएं होने के बीच भैंसों को ढूंढने में पुलिस की इस कदर मुस्तैदी को लेकर मीडिया ने सरकार की भी जमकर खिंचाई की थी. इस पर आजम ने कहा था कि ‘काश! मेरा नसीब भी मेरी भैंसों के जैसा होता’. सैफई महोत्सव के दौरान भी उनकी विदेश दौरा चर्चा का विषय रहा था. इसके अलावा रामपुर महोत्सव को लेकर भी आज़म खान का नाम उछला. जब रामपुर महोत्सव का नाम बदलकर जश्न-ए-जौहर कर दिया गया. इसके लिए जो आयोजन स्थल निश्चित किया गया, वह जौहर विश्वविद्यालय है. यह वही विश्वविद्यालय है, जिसका निर्माण आज़म ने करवाया है. इस आयोजन का सारा इंतजाम जिला प्रशासन ने किया था. राज्य के संस्कृति विभाग ने इसके लिए 58 लाख का बजट मंजूर किया था, जो सैफई महोत्सव के बजट से भी 18 लाख अधिक है. उस समय इस बात को लेकर बहुत ऐतराज उठा था कि क्या एक मंत्री का अहम इतना बड़ा हो गया है कि प्रदेश का पूरा मंत्रिमंडल उसके आगे नतमस्तक है. क्या आज़म खान ही रामपुर की पहचान बन गए हैं, जो राज्य सरकार रामपुर महोत्सव का स्वरूप बदल रही है या वो नाराज़ न हो जाएं, इस अंदेशे से बेबस हैं. आज़म खान के साथ और भी कई विवाद जुड़े हैं. देश के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को लेकर भी उन्होंने मुस्लिम वर्ग से अनुरोध किया है कि मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने के लिए मुस्लिम एकजुट हों. इतना ही नहीं, अपने बयानों को लेकर भी वे अक्सर चर्चा में रहते हैं. आज़म खान ने सऊदी अरब, नॉर्वे, स्वीडन, स्विट्ज़रलैंड, यूनाइटेड किंगडम, दक्षिण अफ्रीका आदि देशों की यात्रा की है. (नयी दुनिया)
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