नवल कान्त सिन्हा
(News Rating Point) 27.04.2016
हे भगवान ! पत्रकारों से भी गरीब होते हैं सांसद-मंत्री… आज सुना तो दिल भर आया. कलेजा मुंह को आने लगा… हौल दिल शुरू हो गया… आज राज्यसभा टीवी पर गुलाम नबी आज़ाद और नरेश अग्रवाल की गरीबी देखी नहीं जा रही थी. लेकिन उनकी मर्दानगी पर तब फ़ख्र हुआ कि जब दोनों ने कहा कि संसद को मीडिया से डरने की जरूरत नहीं है. गरीबी की उन पर मार है, सांसदों की सेलेरी तो बढ़नी ही चाहिए.
वैसे पिछले अनुभवों से कह रहा हूं कि देश का यही सबसे बड़ा मुद्दा है, जिसमें देशहित की खातिर क्या पक्ष-क्या विपक्ष सब एक हो जाते हैं. कहीं कोई विरोध नहीं होता… कहीं कोई ये नहीं कहता कि फलां-फलां इलाके में सूखा पड़ रहा है और हम माल बढ़ाने की बात कर रहे हैं. एक सकारात्मक बात तो मुझे ये लगी कि चलो दोनों सदनों में कोई भी सांसद मंत्री रिश्वत नहीं लेता. वरना उन्हें सेलेरी बढ़ाने के लिए इस कदर परेशान होने की क्या जरूरत थी. लेकिन फिर लगा कि बोफोर्स से लेकर अगस्ता तक और सैनिकों के ताबूत घोटालों से लेकर जानवरों के चारे तक…. कमीशन का माल जाता कहाँ हैं. फिर याद आया एक वायरल मैसेज- जो व्हाट्सएप की शुरुआत से लेकर अब तक अक्सर आता ही रहता है. इसमें देश के चुनींदा पत्रकारों की अरबों की संपत्ति का ब्योरा है. पता नहीं एबीपी वालों ने इस वायरल सच की आजतक पड़ताल क्यों नहीं की… लेकिन इस मैसेज को देखकर तो यही लगता है कि ये बड़े सम्पादक सचमुच काफी बड़े हैं…. और हमारे नेताजी बेहद गरीब. हम तो यही दुआ करेंगे कि जनता भले अन्न और इलाज के अभाव में मर जाएँ लेकिन सांसदों के वेतन बढ़ने चाहिए ….और ये भी प्रार्थना करेंगे कि भले ही जिलों में स्ट्रिंगरों को मेहनताना न मिले लेकिन हमारी टीवी के बड़का संपादकों की हनक ऐसे ही कायम रहनी चाहिए… ताकि कोई गरीब पत्रकार अपने पेशे पर गर्व तो कर सके.
[box type=”info” head=”नोट”]सिर्फ हास्य-व्यंग्य है, दिल पर न लें… किसी का कलेजा दुखाना कभी किसी हास्य-व्यंग्य का मकसद नहीं हो सकता, सचमुच… फिर भी बुरा लगा तो- हमसे भूल हो गयी हमका माफी दई दो… नहीं तो फोन कर दो, मेल कर दो- आइंदा आपसे बचकर चलेंगे भैया…[/box]