FLOP *** (News Rating Point) 14.11.2015
सपा ने यदि महागठबंधन से नाता न तोड़ा होता तो इसका अध्यक्ष होने के नाते बिहार चुनाव में जीत के हीरो मुलायम सिंह यादव होते. बिहार चुनाव में सपा से वैसे भी कोई आशा नहीं थी लेकिन महागठबंधन की जीत ने मुलायम सिंह यादव की रणनीति की धज्जियां उड़ा दीं. अगर वो महागठबंधन में होते तो राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद और बढ़ जाता. अख़बारों ने लिखा कि अब स्थितियां बदली हुई हैं. बिहार में महागठबंधन की जीत के बाद माना जा रहा है कि सपा मुखिया विपक्ष की राजनीति में अलग थलग पड़ सकते हैं. संसद में अहम बिलों और कई मुद्दों पर वह विपक्ष की सियासत में अपनी शर्तों पर अग्रिम भूमिका निभाते रहे हैं. मगर मौजूदा परिणाम के बाद उनको यह भूमिका मिलने में संदेह जताया जा रहा है. वहीं यूपी में 2017 में चुनाव होने वाले है. प्रदेश की सपा सरकार पर कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार को लेकर सवाल उठ रहे हैं. ऐसे में भाजपा से अंदरूनी नजदीकियाें के चलते उनको मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था और विकास के मुद्दों को लेकर आलोचना झेल रही सपा के लिए अपनी जमीन बचाना चुनौतीपूर्ण हो गया है. वहीं महागठबंधन में उनकी वापसी भी आसान नहीं लग रही है. जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने कहा कि अब मुलायम की राह हमसे अलग है. उनसे कोई चुनावी तालमेल संभव नहीं है. दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कई महीनों की कसरत के बाद सपा, जनता दल (यूनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (सेकुलर), इंडियन नेशनल लोकदल और समाजवादी जनता पार्टी की एकता पर सहमति बनी थी. इन दलों का विलय कर नई पार्टी का गठन करने का निर्णय लिया गया. इसका अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को चुना गया था. विलय से पहले बिहार चुनाव को देखते हुए मुलायम सिंह की अगुवाई में महागठबंधन बना. यदि सपा महागठबंधन से अलग नहीं होती तो इसके मुखिया होने के नाते जीत का श्रेय उनके खाते में जाता लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
(अखबारों, चैनलों और अन्य स्रोतों के आधार पर)