नवल कान्त सिन्हा
(News Rating Point) 15.06.2016
“आज मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, ताकत है, सरकार है, खुद मुख्यमंत्री हूँ… क्या है, क्या है तुम्हारे पास?”
“मेरे पास कौवा है…”
कैसा लगा ये डायलॉग !!! निहायत ही वाहियात या फिर कॉमेडी… आपकी मर्जी आप चाहे जो समझे लेकिन मैं तो इसे पूरी गंभीरता से ले रहा हूं. इसकी कहानी भी सुन लीजिये. भारत का एक प्रगतिशील राज्य है कर्नाटक. उसकी राजधानी है देश के सबसे आधुनिकतम शहर में से एक बंगलुरु.और वहां रहते हैं कर्नाटक के शानदार मुख्यमंत्री सिद्धारमैया. बात है दो जून की जब रोज़ की तरह आम आदमी दो जून की रोटी का इंतजाम करने के लिए निकल पड़ा था. उसी दौरान एक काला कौवा मुख्यमंत्री आवास ‘कृष्णा’ में सिद्धारमैया की कार कार के पास मंडराने लगा था. अचानक वो बेहद खतरनाक हो गया. आव देखा, न ताव और मुख्यमंत्री की कार पर जा बैठा. मनहूस कौवे की इतनी बड़ी हिमाकत. मुख्यमंत्री आवास में कोहराम मच गया. घबड़ाया ड्राइवर कौवे को उड़ाने में जुट गया. लेकिन जनाब क्या ढीठ कौवा, उड़ने का नाम ही न ले. मीडिया रिपोर्टिंग भी सुनिए- जब ड्राइवर ने कौए को हटाने की कोशिश की तो कौआ दस बार से भी अधिक बार वहीं आकर बैठ गया. ड्राइवर ने कौए को दोबारा हटाना चाहा तो वो वहीं बैठा रहा और उड़ा ही नहीं.
हल्ला मच गया. पूरी सरकार हिल गयी. हंगामा खड़ा हो गया कि मुख्यमंत्री की कार पर परिंदे ने पर मार दिया और पर क्या सीधे-सीधे लात मार दी. बाकायदा कार की बोनट पर कमीना कौवा बैठ गया. अब क्या होना था अधिकारियों की रूह काँप गयी. डरते-डरते मुख्यमंत्री को इत्तला की गयी कि अनर्थ हो गया. घोर अपशकुन हो गया. कार मुख्यमंत्री के बैठने लायक नहीं बची. सचमुच गहरा अपशकुन था. करीबियों के पास लॉजिक भी था. मुख्यमंत्री के सामने राज्य कर्मचारियों के हड़ताल की चुनौती खड़ी हुई थी. पुलिसवालों ने भी सामूहिक छुट्टी पर जाने की धमकी दे दी थी. इन चुनौतियों का इलाज तो एक ही नज़र आ रहा था कि इस मनहूस हो चुकी कार को बदल दिया जाए. कभी अंधविश्वास के तगड़े विरोधी माने जाने वाले मुख्यमंत्री भी हिल गए. आखिर जिस मुख्यमंत्री की गाड़ी पर परिंदे को पर भी नहीं मारना चाहिए था, उस कार पर एक कौवे ने बाकायदा लात रख दी. अंगद के पांव से भारी नज़र आने लगा था कौवे का पांव. घोर अनर्थ हो चुका था. सरकार हिल गयी थी. अब उपाय क्या बचा था ? मुख्यमंत्री के लिए जान न्योछावर करने वाले करीबियों ने इस घोर अपशकुन के खिलाफ नयी कार लेने की सलाह दे डाली. मुख्यमंत्री भी कौवे के खिलाफ खड़े हो गए. पैंतीस लाख रुपये से भी ज़्यादा कीमत की टोयोटा फॉर्च्युनर कार लेने का फैसला कर लिया गया. तब जाकर पूरे राज्य की समस्याओं का समाधान हो पाया और मुख्यमंत्री की सांस में सांस आयी. तो भैया इसीलिए कह रहा हूं कि डायलॉग मार दो, सीएम साहब मेरी बात सुनो, नहीं तो कौवा है मेरे पास… कसम से सरकार हिल जायेगी. अब नारा, धरना, प्रदर्शन, हड़ताल की कोई जरूरत ही नहीं. केवल कौवे की धमकी और काम पूरा.
अब आप कहेंगे, हम कौन सा कर्नाटक में रहते हैं. हम तो दूसरे राज्य में रहते हैं. यहाँ कौवा क्या उखाड़ लेगा. तो भैया समझ लीजिये… प्यास सबको लगती है, गला सबका सूखता है… शकुन-अपशकुन के डर से कई मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री हिले हुए हैं. कसम से कई सरकारें गिर चुकी हैं और कई को गिरने का डर बना हुआ है. चलिए अच्छा यूपी का ही बता देते हैं. एक नहीं पांच-पांच मुख्यमंत्री नोएडा आए और उसके बाद चुनाव में उन्होंने अपनी सत्ता गंवाई. ‘नोएडा फोबिया’ का उद्घाटन 1988 में तब के सीएम वीर बहादुर सिंह से हुआ कि जब वो नोयडा गए और कुछ दिनों बाद उनकी सरकार भी चली गयी. देश के प्रमुख अपशकुन विशेषज्ञ आगे का विश्लेषण कर उसे और पुख्ता करने की कोशिश करते हैं. 1989 में नारायण दत्त तिवारी नोयडा गए और सरकार गयी. 1995 में मुलायम सिंह यादव नोयडा गए और सरकार गयी. 1997 में मायावती नोयडा गयीं और सरकार गयी. 1999 में कल्याण सिंह नोयडा गए और सरकार गयी. एक बार फिर सत्ता हासिले करने के बाद मायावती ने अपशकुन विशेषज्ञों की बात नहीं मानी. ग्यारह में दलित प्रेरणा स्थल का उद्घाटन करने नोएडा गईं और बारह में सरकार से चली गयीं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी समझ गए हैं, अपनी सरकार जोखिम में नहीं डाल रहे हैं. अगर कोई उदघाटन है तो लखनऊ से ही करके काम चला रहे हैं. सुनते हैं कि दुबारा सरकार बनने पर रिस्क को तैयार हैं. देखिये…
और अपडेट दें. तमिलनाडु में जयललिता ने हाल के चुनाव में प्रत्याशियों से 12:40 से 3:00 बजे के बीच नामांकन करवाया और अप्रत्याशित तरीके दुबारा सरकार बनायी. 13 में राजस्थान की सीएम वसुंधरा ने 13:13 बजे शपथ ली और 13 नंबर आवास लिया. अपने लालू भैया ने 2014 में राजद में बगावत के बाद अपने घर का स्विमिंग पूल भरवा दिया था. कहते हैं कि येदुरप्पा जी भी सियासत में खुद को बचाए रखने के लिए तंत्र-मंत्र का सहारा लेते रहे हैं. तो फिर पब्लिक को कौवे का सहारा लेने में क्या बुराई ! (नवल नज़रिया)
[box type=”info” head=”नोट”]सिर्फ हास्य-व्यंग्य है, दिल पर न लें… किसी का कलेजा दुखाना कभी किसी हास्य-व्यंग्य का मकसद नहीं हो सकता, सचमुच… फिर भी बुरा लगा तो- हमसे भूल हो गयी हमका माफी दई दो… नहीं तो फोन कर दो, मेल कर दो- आइंदा आपसे बचकर चलेंगे भैया…[/box]