Nitin Ramesh Gokarn, IAS, Uttar Pradesh

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वाराणसी के मंडलायुक्त नितिन रमेश गोकर्ण को प्रदेश का नया मुख्य निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया गया है. मुख्य निर्वाचन आयोग ने गोकर्ण को मुख्य निर्वाचन अधिकारी नियुक्त किया है. फिलहाल गोकर्ण की जगह किसी की तैनाती नहीं की गई है. गोकर्ण मौजूदा निर्वाचन अधिकारी अरुण सिन्हा की जगह लेंगे. सिन्हा प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली भेजा जा रहा है. ऐसे में गोकर्ण मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसके अग्रवाल के अधीन होंगे. बता दें कि पिछले साल ही गोकर्ण को नेहरू अर्बन रिन्यूवल मिशन के निदेशक पद से बनारस का मंडलायुक्त बना कर भेजा गया था. तब यह माना जा रहा था कि पीएम मोदी ने गोकर्ण को बनारस के विकास के मद्देनजर भेजा है.
पत्रिका ने लिखा कि अखिलेश यादव के ड्रीम प्रोजेक्ट वरुणा कॉरीडोर के निर्माण में कमिश्नर नितिन रमेश गोकर्ण द्वारा दिखाई गई तेजी केंद्र सरकार को रास नहीं आई. जिस पीएम ने गोकर्ण को अपने क्षेत्र में भेजा था कि वह काशी का कुछ विकास करेंगे, वह उन्होंने पूरी तन्मयता से शुरू किया. इसी के तहत उन्होंने न केवल मोदी-शिंजों के काशी आगमन पर वाराणसी को वाकई क्योटो में तब्दील कर दिखाने का प्रयास किया बल्कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के कायाकल्प में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. काशी के सौदर्यीकरण को उनके प्रयास फलीभूत होते नजर आने लगे. इन सभी को देखते हुए अखिलेश सरकार ने उन्हें वरुणा कॉरीडोर का काम सौंपा. इस काम को उन्होंने जो गति दी, उससे साफ दिखने लगा था कि आने वाले विधानसभा चुनावों में अखिलेश मोदी के गढ़ में विकास के नाम पर उनको मात दे सकते हैं. काशी के लोगों का मानना है कि गोकर्ण के रहते अक्टूबर में अखिलेश के दूसरे ड्रीम प्रोजेक्ट मेट्रो रेल का न केवल शिलान्यास हो जाता बल्कि चुनाव से पूर्व कुछ पिलर भी दिखने लगते. यह बड़ा झटका होता मोदी एंड कंपनी को. लिहाजा उन्हें बनारस हटना पड़ा. बतादें कि निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त संस्था जरूर है जैसे सीबीआई. बनारस में चर्चाओँ का बाजार गर्म है कि यह कही न कहीं केंद्र और खास तौर से पीएम मोदी एंड कंपनी है जिसने यूपी के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के रूप में राज्य से भेजे गए पांच नाम में से नितिन रमेश गोकर्ण को चुनने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.
दरअसल गोकर्ण की कार्यशैली से पीएम और पीएमओ अच्छी तरह वाकिफ है. यही वजह रही कि साल भर पहले प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूवल मिशन के निदेश पद से हटा कर इन्हें दोबारा बनारस मंडल का कमिश्नर बनाया गया. तभी यह माना जाने लगा था कि यह कमिश्नर पीएम की पसंद हैं. कमिश्नर ने मोदी के विकास कार्यों को गति देने का प्रयास भी किया. काहिल नगर निगम तक को जगाने का काम किया. अब चाहे नगर निगम की काहिली कहें या भाजपा जनों की सुस्ती पीएम का स्वच्छता अभियान उनके संसदीय क्षेत्र में ही फेल हुआ. उस नगर निगम की काहिली जिसके मुखिया भाजपा के राम गोपाल मोहले है. स्मार्ट सिटी का प्लान इसलिए फेल हुआ कि मेयर और नगर आयुक्त यह समझ ही नहीं पाए कि स्मार्ट सिटी का क्या पालन देना है केंद्र को जबकि यही स्मार्ट सिटी की सारी बैठकों और वर्कशाप मे जाते रहे. सारे काशीवासियों को भूला नहीं है कि किस तरह से कमिश्नर गोकर्ण ने जापानी पीएम शिंजो आबे को काशी का सुंदर स्वरूप दिखाया. पीएम के हर आगमन पर गोकर्ण ही थे, जिन्होंने उनके अनुरूप काशी को ढालने व दिखाने की कोशिश की. लोगों का कहना है कि जब केंद्र ने कोई ऐसा प्रोजेक्ट दिया ही नही जिसे मूर्त रूप देने का प्रयास हो और लोगों को लगे कि केंद्र विकास कराना चाहता है.
इसी बीच सीएम अखिलेश यादव ने कमिश्नर को गंगा-वरुणा निर्मलीकरण का काम सौंपा. संपूर्ण प्रोजेक्ट के तहत पहले गंगा की सहायक नदियों को स्वच्छ और दर्शनीय बनाना है. इस काम में कमिश्नर ने रुचि ली और देखते ही देखते वरुणा कॉरीडोर का नक्शा लोगों को दिखने लगा. यह स्थानीय भाजपाइयों को रास नहीं आया. पीएम और पीएमओ को रास नहीं आया. उन्हें यह भय सताने लगा कि इसी तरह अगर सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट को दिशा मिलती रही काशी में तो चुनाव में सीएम, पीएम के गढ़ में उन्हें मात देने में कामयाब हो सकते हैं. जनता और जनप्रतिनिधि भी इस बात की तस्दीक कर रहे कि अगर ऐसा न होता तो गोकर्ण को फील्ड से न हटाया जाता.
काशीवासियों की नजर में कमिश्नर के तबादले से काशी के विकास को झटका लग सकता है. चाहे वह श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के विकास हो, गंगा घाटो के सौदर्यीकरण का काम हो, स्वच्छता अभियान हो, स्मार्ट सिटी हो, आईसीडीएस हो सारे कामों की मानीटरिंग जिस हिसाब से गोकर्ण कर रहे थे उसमें ब्रेक लगता तय है. वरुणा कॉरीडोर को तो सबसे ज्यादा झटका लगेगा. साथ ही मेट्रो परियोजना भी लंबित हो सकती है.

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