एक सशक्त नेता थे रामवीर उपाध्याय, अखबारों ने उनके नेतृत्व की तारीफ कर दी श्रद्धांजलि

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एनआरपी डेस्क
लखनऊ। पूर्व मंत्री और भाजपा नेता रामवीर उपाध्याय का देर रात आगरा में निधन हो गया। वह लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे थे। लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे उपाध्याय को आगरा स्थित आवास से देर रात हालत बिगड़ने पर आगरा के रेनबो अस्पताल ले जाया गया। जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
नवभारत टाइम्स ने लिखा कि रामवीर उपाध्याय ने बीजेपी से अपने राजनैतिक कैरियर की शुरआत की थी। वे लगातार पांच बार विधायक रहे। 1996 से 2017 तक वे हाथरस सदर, सिकंदराराऊ व सादाबाद सीट से विधायक रहे। रामवीर उपाध्याय ने करीब 30 साल पहले टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर पार्टी छोड़ दी थी। उभरते हुए नेता के रूप में उन्होंने वर्ष 1993 में हाथरस सदर सीट से बीजेपी से टिकट के लिए दावेदारी की, पर पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी।
अमर उजाला ने लिखा कि लगभग 64 वर्षीय रामवीर उपाध्याय मायावती की सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। बाद में वह भाजपा में शामिल हो गए थे। लगभग 25 साल तक हाथरस की विभिन्न विधानसभा सीटों से विधायक रहने वाले रामवीर उपाध्याय की गिनती कद्दावर नेताओं में होती थी। उनकी पत्नी सीमा उपाध्याय जिला पंचायत हाथरस की अध्यक्ष हैं। वह अपने पीछे एक बेटा और दो बेटियां छोड़ गए हैं। रामवीर उपाध्याय के भाई रामेश्वर ब्लॉक प्रमुख हैं। उनके एक और भाई मुकुल उपाध्याय पूर्व विधायक हैं।
प्रदेश के पूर्व ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय बसपा की सरकार में चिकित्सा शिक्षा और परिवहन मंत्री भी रहे थे। उनका आगरा से गहरा जुड़ाव रहा। ब्राह्मण समाज में उनकी खासी पकड़ थी। वर्ष 2009 में उन्होंने पत्नी सीमा उपाध्याय को आगरा की फतेहपुरसीकरी लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा। वह राजबब्बर को हराकर चुनाव जीती थीं।
मूलरूप से सादाबाद निवासी रामवीर उपाध्याय ने बसपा सरकार के दौरान ही आगरा को अपनी कर्मभूमि बना लिया था। उन्होंने शास्त्रीपुरम में आवास बनवाया। बसपा के कद्दावर नेता रहे रामवीर उपाध्याय का पार्टी से वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोहभंग हो गया था। उनकी पत्नी सीमा उपाध्याय और भाई मुकुल उपाध्याय पहले ही भाजपा का दामन थाम चुके थे। विधानसभा चुनाव से पहले उनके पुत्र चिराग भी आगरा में ही भाजपा में शामिल हो गए। हाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें सादाबाद से चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन वह जीत नहीं सके। आगरा समेत आसपास के जिलों में ब्राह्मण समाज के साथ ही सर्वसमाज में उनकी गहरी पैठ थी। यही कारण था कि भाजपा ने उन्हें न केवल पार्टी में शामिल किया बल्कि विधानसभा चुनाव में भी उतारा था।
दैनिक जागरण ने लिखा कि रामवीर उपाध्याय ने राजनीति में कदम भाजपा सदस्य के रूप में ही रखा। लेकिन 1993 में टिकट न मिलने के चलते वे हाथरस विधानसभा सीट पर निर्दलीय लड़े। इसमें सफल नहीं हो सके। इसके बाद 1996 में वे बसपा में शामिल हो गए और पहले ही चुनाव में हाथरस से जीत हासिल कर पार्टी के दिग्गज नेताओं की पहचान बना ली। बसपा सरकार में उन्हें परिवाहन व ऊर्जा मंत्री बनाया गया। इसके बाद वे लगातार पांच बार विधायक बने। 1997 में हाथरस को अलग जनपद का दर्जा दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही। 1997 में कल्याण सिंह मंत्रिमंडल में यही मंत्रालय इनके पास रहे। 2002 और 2007 में हाथरस सदर से जीते। 2002 में दूसरी बार बसपा सरकार में मंत्री बने। इन्हें ऊर्जा, चिकित्सा शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी दी गई। 2002 -2003 में नियम सिमति के सदस्य रहे। 2007 में जीतने के बाद वे बसपा सरकार में ही तीसरी बार ऊर्जा मंत्री बने। 2012 में सिकंदराराऊ से विधायक बने। इन्हें बसपा विधान मंडल दल का मुख्य सचेतक बनाया गया। 2012-12 में कार्य मंत्रणा समिति के सदस्य बनाए गए। 2016 -17 में लोक सेखा समिति के सदस्य रहे। 2017 से वह सादाबाद से विधायक बने। 2022 के विधानसभा के चुनाव के दौरान उन्होंने बसपा छोड़ दी और भाजपा से सादाबाद विधानसभा क्षेत्र में चुनाव लड़ा। इसमें वे रालोद के प्रत्याशी प्रदीप चौधरी गुड्डू से हार का सामना करना पड़ा। उनका पूरा परिवार राजनीति में आ चुका था। पत्नी सीमा उपाध्याय लगातार दो बार 2002 और 2007 में जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं। वर्ष 2009 में वह फतेहपुर सीकरी से सांसद का चुनी गईं। उन्होंने सिने स्टार राज बब्बर को हराया था

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