लखनऊ। उनके शोध और प्रयास अद्भुत हैं। नदियों, वातावरण, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम के लिए लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. ध्रुवसेन सिंह को ‘राष्ट्रीय भूविज्ञान पुरस्कार-2019’ से सम्मानित किया गया। बता दें कि प्रो. ध्रुव सेन सिंह, भारत के प्रथम एवं द्वितीय आर्कटिक (उत्तरी ध्रुव क्षेत्र) अभियान दल 2007, 2008 के सदस्य रह चुके है। लखनऊ विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रो. ध्रुव सेन सिंह को मिला यह पुरस्कार भूविज्ञान के क्षेत्र का सर्वोच्च पुरस्कार है।
भारत सरकार का खान मंत्रालय हर साल यह पुरस्कार प्रदान करता है। प्रो. ध्रुव सेन सिंह ने इसे भू-पर्यावरण अध्ययन के लिए पुरावातावरण, जलवायु परिवर्तन और मानसून परिवर्तनशीलता के क्षेत्र में नदियों, ग्लेशियरों और झीलों का विशेष अध्ययन किया है। प्रो. सिंह द्वारा भारत में हिमालय और गंगा के मैदान में और आर्कटिक में भी हिमनदों, नदी और झीलों का क्रमवार अध्ययन करके पुराजलवायु और पर्यावरण का विश्लेषण किया गया है।
प्रो. सिंह ने अपने अध्ययनों में यह वर्णन किया है कि गंगोत्री ग्लेशियर के तेजी से पीछे हटने का कारण इसकी अपनी विशिष्ट विशेषताएं हैं और केवल ग्लोबल वार्मिंग ही इसके लिये जिम्मेदार नहीं है। इसके अतिरिक्त गंगोत्री ग्लेशियर के पीछे हटने की दर लगातार घट रही है। जो 1970 में 38 मीटर प्रतिवर्ष से 2022 में 10 मीटर प्रतिवर्ष हो गई है, जो ग्लोबल वार्मिंग के अनुसार नहीं है।
प्रो. सिंह ने अपने अध्ययनों में केदारनाथ त्रासदी के कारण और निवारण की भी विवेचना की है। प्रो. सिंह ने गंगा के मैदान में, पुराजलवायु के लिए झीलों का विश्लेषण किया है। इसके परिणामस्वरूप क्षैतिज कटान को एक स्वतंत्र खतरे के रूप में बताया है। प्रो. सिंह ने एक छोटी नदी बेसिन छोटी गंडक का संपूर्ण भूवैज्ञानिक विश्लेषण किया।