खाने को पैसा नहीं, बहाने के लिए कहाँ से लाएं !

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नवल कान्त सिन्हा

(NRP) 06.01.2016

पॉट्टी तो कर लेंगे लेकिन बहायेंगे कैसे !! अभी नवभारत टाइम्स में खबर पढ़ी तो पेट में दर्द होने लगा, गुड़गुड़ाहट की आवाज़ें आने लगीं, खाना देखकर डर लगने लगा। लगा कि जैसे स्वच्छ्ता अभियान कब्ज का शिकार हो गया है…

मामला कुछ ऐसा है कि लोगों को खुले शौच से रोकने के लिए नगर निगम 40 हज़ार टॉयलेट विहीन घरों में स्वच्छ भारत अभियान के तहत टॉयलेट बनवा रहा है। इसके लिए स्वच्छ्ता अभियान के तहत केंद्र और राज्य की ओर से सब्सिडी के रूप में 8 हज़ार रूपये मिल रहे हैं। ज़ाहिर है अभियान का उद्देश्य लोगों को खुले में शौच से रोकना है। विद्या बालन भी लगातार इसके लिए लोगों को समझा रही हैं। पता नहीं विद्या जी को पता है कि नहीं, नगर निगम के आंकड़ों के अनुसार लखनऊ में दस फीसदी लोग हैं, जिन्हें “आयी है…” के बाद बाद खुले में शौच जाना पड़ता है। इस हिसाब से ये संख्या हुई तीन लाख। कोशिश हो रही है कि लोगों को फ्री में शौचालय मिल जाएँ और इसलिए कवायद हो रही है। लेकिन भैया एक बड़ी समस्या है… और वह समस्या है लखनऊ के जल-कल विभाग का कमाई क़ानून… नियम ये है कि शहर में पिट शौचालय बनाने पर रोक है और सीवर कनेक्शन के लिए रुपैया पांच हज़ार ढीले करने पड़ते हैं। अब बताइये जिनके पास खाने के लिए पैसे नहीं हैं, वो बहाने के लिए कहाँ से लाएंगे !!! तो टॉयलेट में बह गया न स्वच्छ्ता अभियान…

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