योगी का विज़न: तकनीक, सोशल मीडिया भी जरूरी और जनता से सीधा संवाद भी जरूरी

0

एनआरपी डेस्क
लखनऊ। किसी लकीर को छोटा करने के लिए लंबी लकीर कैसे खींची जाती है, पिछले साढ़े पांच साल में ये उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साबित किया है। जब वह सीएम बने तो सवाल उठा कि एक भगवाधारी और सीएम? लेकिन आज विकास, तकनीक और कानून व्यवस्था का जवाब बनकर उभरे हैं भगवाधारी योगी आदित्यनाथ। देश में भगवाधारियों की साजिशन छवि बना दी गई थी कि वह पाखंड को पोषित करनेवाले पिछड़ी सोच के होते हैं। विकास, आधुनिकता और तकनीक से उसका कुछ लेना देना नही होता। लेकिन योगी आदित्यनाथ ने ये साबित कर दिया है कि वह अल्ट्रा मॉडर्न युग में तकनीक और डिजिटलाइज़ेशन को हथियार बना विकास की राह पर चलने वाले हैं। योगी की कार्यप्रणाली देख आसानी से समझा जा सकता है कि वह ‘जय जवान जय किसान जय विज्ञान और जय अनुसंधान’ के मूलमंत्र को सार्थक कर रहे हैं। अब लोग उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को डीजिटिलाइज़्ड युग के एक मॉडर्न और विज़नरी नेता के रूप में पहचानते हैं। यही वजह है कि अब एक अच्छे प्रशासक के रूप में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक उनकी लोकप्रियता है।
पहले कार्यकाल के मुख्यमंत्री से लेकर नए कार्यकाल के छह महीने में योगी आदित्यनाथ ने इतने रिकार्ड बनाए हैं और इतने मिथक तोड़े हैं कि गिनती करना मुश्किल है। साढ़े पांच साल पहले जब एक मठ के महंत को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया गया था तो विरोधियों को उनमें हिंदुत्व के एजेंडे से ज्यादा कुछ भी नही दिख रहा था लेकिन कुछ ही महीनों में योगी आदित्यनाथ ने साबित कर दिया कि जब वह भक्ति में लीन होते हैं तो महंत है और जब मुख्यमंत्री के रूप में काम करते हैं तो एक विज़नरी नेता की तरह हैं।
योगी आदित्यनाथ ने अपनी व्यक्तिगत आलोचना पर पलट के जवाब तो नही दिया लेकिन अपने काम से और जनसमर्थन से साबित किया कि वह क्या हैं। बस छह महीने पहले की ही बात है, चुनाव में आरोप लगता था कि ‘बाबा मुख्यमंत्री को कंप्यूटर चलाना नहीं आता।’ लेकिन आज सबको पता है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा में अब पूरी तरह से ई-विधान लागू हो चुका है और कामकाज पेपरलेस हो गया है। सबकुछ टैबलेट पर उपलब्ध है। खुद पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष अखिलेश यादव को इसकी तारीफ करनी पड़ी। तकनीक पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नजरिया और विस्तृत है। उनका मानना है कि विधायक तकनीक से भागे नहीं, उसे अंगीकार करें। लेकिन क्षेत्र में जनता से संवाद करना कतई न भूलें, वरना जनता कहेगी कि क्या वोट भी वर्चुअली लेना है। आशय स्पष्ट है कि डिजिटलाइज़ेशन जरूरी है लेकिन केवल ट्विटर, सोशल मीडिया के भरोसे न तो विकास हो पाएगा और न राजनीति।
ये भगवाधारी योगी ही हैं कि पिछले साल कंप्यूटर सोसाइटी ऑफ इंडिया ने राज्य वर्ग में उत्तर प्रदेश को पुरस्कृत किए जाने के साथ ही, राज्य की 7 परियोजनाओं को भी पुरस्कृत किया। ‘अवॉर्ड ऑफ एक्सीलेंस’ वर्ग में प्रदेश की ‘जनसुनवाई समाधान’ तथा ‘निवेश मित्र’ परियोजनाएं पुरस्कृत हुई हैं। ‘अवॉर्ड ऑफ एप्रिसिएशन’ वर्ग में ‘सीएम हेल्पलाइन 1076’ ‘रोजगार संगम’, ‘CMIS (प्रोजेक्ट मॉनीटरिंग सिस्टम)’, ‘यू.पी. स्किल डेवलपमेंट मिशन’ और ‘अवॉर्ड ऑफ रिकग्निशन’ वर्ग में ‘प्रेरणा (प्रॉपर्टी इवैल्यूएशन एंड रजिस्ट्रेशन एप्लीकेशन)’ को पुरस्कार मिला था।
योगी आदित्यनाथ की वर्चुअल लोकप्रियता का यह आलम है कि उन्होंने सोशल मीडिया में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भी पीछे छोड़ दिया है। सीएम ट्विटर हैंडल पर 21.8 मिलियन फॉलोअर्स हैं. जबकि राहुल के फॉलोअर्स की संख्या है 21.5 मिलियन है।
योगी आदित्यनाथ का तकनीक और शिक्षा दोनों पर ज़ोर है। उन्होंने हमेशा कहा कि मदरसों में दीनी शिक्षा के साथ साथ हिंदी ,इंग्लिश, कंप्यूटर जैसे विषयों की भी पर्याप्त पढ़ाई हो। 18 जनवरी 2018 को एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री खुद कह चुके हैं कि “हम मदरसों के साथ साथ संस्कृत स्कूलों से भी कहते हैं कि वे पारंपरिक शिक्षा देने के अलावा प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए कंप्यूटर, अंग्रेजी, विज्ञान और गणित की शिक्षा दें।”
कुछ महीनों पहले जब मुख्यमंत्री से इजरायल के राजदूत नाओर गिलोन के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल मिला तो सीएम ने उनसे फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं को मजबूत करने के लिए तकनीकी सपोर्ट को कहा। उनका विज़न स्पष्ट है कि आज के दौर में तकनीक से अपराधियों पर लगाम आसानी से लगाया जा सकता है। हालांकि कि खुद मुख्यमंत्री ने अपराध नियंत्रण पर जो प्रयोग किए, उसे दूसरे राज्य अपना रहे हैं। हजारों साल से अपराधियों पर नियंत्रण के लिए तमाम प्रयोग हुए और होते रहेंगे। योगी आदित्यनाथ अपने एक प्रयोग के लिए चर्चित हुए, वह था बुलडोजर के माध्यम से अपराधियों का आर्थिक साम्राज्य ढहाना।उन्होंने इज़रायल से बुंदेलखंड में सिंचाई और पेयजल के लिए सहयोग के लिए भी कहा। दरअसल योगी आदित्यनाथ तकनीक का महत्व जानते हैं। उनका पता है कि राजीव गांधी के समय जनता को भेजे गए एक रुपए में से 15 पैसे ही उसके पास पहुंचते हैं। लेकिन योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर यानी डीबीटी स्कीम के जरिए यूपी के 10 करोड़ लोगों के खाते तक सीधे पूरे पैसे पहुंच रहे हैं। इसी तरह उन्होंने बुंदेलखंड में सिंचाई और हर घर जल की उपलब्धि हासिल की। शहरों में इलेक्ट्रिक बसें, वन ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी का लक्ष्य आदि योगी आदित्यनाथ के विज़न को बताते हैं।
असल में योगी आदित्यनाथ ने अपने अबतक के कार्यकाल में केवल जनता का भला ही नही नही किया बल्कि साधु, संत, महंत की छवि को भी सहेजा। मुगलों और अंग्रेजों के शासनकाल में एक साजिश के तहत गेरुआ वस्त्रधारियों की छवि ऐसी बनाने की कोशिश हुई कि जैसे वह पाखंडी हो लेकिन भगवाधारी योगी आदित्यनाथ ने न केवल पाखंड का विरोध किया बल्कि नेताओं को भी यह बता दिया कि पाखंड से चुनाव नही जीते जाते बल्कि काम करना पड़ता है। योगी पहले बीजेपी के ऐसे सीएम बने, जिसने पूरे 5 साल शासन किया और दुबारा जीतकर आए। 1985 में वीर बहादुर सिंह के मुख्यमंत्री कार्यकाल से एक मिथक था कि जो नेता नोएडा का दौरा करता है, वह मुख्यमंत्री नहीं बन पाता। इसलिए कोई भी सीएम नोएडा नही जाता था। मायावती गईं भी तो चुनाव हार गईं। लेकिन सीएम योगी आदित्यनाथ इसे पाखंड साबित करने के लिए कई बार नोएडा गए और इसे गलत साबित किया।
पिछले कुछ समय से एक मिथक बन गया था कि जो चुनाव लड़ता है, वो सीएम नही बन पाता। मायावती, अखिलेश यादव और पहले कार्यकाल में योगी एमएलसी बन ही सीएम हुए लेकिन दूसरे कार्यकाल में चुनाव जीत कर योगी सीएम बने। इसी तरह से लोगों ने कहा कि जो एक्सप्रेस वे बनवाता है, वह नही जीतता लेकिन योगी आदित्यनाथ की सरकार में लगातार एक्सप्रेस वे काम हो रहा है। ये मिथक भी उन्होंने तोड़ डाला। एक मिथक ये भी था कि आगरा के सर्किट हाउस में रुकने से सरकार चली जाती है। 2018 में योगी इस सरकारी आवास में रुके थे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here