एनआरपी डेस्क
लखनऊः गंगा नदी के तट से 200 मीटर के दायरे में सिर्फ मठ, मंदिर और आश्रम का ही निर्माण कराया जा सकेगा। नदी के किनारे तट से 200 मीटर के क्षेत्र में स्थित नगरों के मौजूदा भवनों की भी मरम्मत-जीर्णोद्धार के अलावा जर्जर भवनों के संरक्षण कार्य की ही अनुमति मिलेगी। नया निर्माण करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध होगा। अगर सीवरेज निस्तारण व्यवस्था नहीं होगी तो धर्मशाला व निवास स्थान बनाने की भी अनुमति नहीं मिलेगी। जीवनदायिनी गंगा सहित प्रदेश की दूसरी नदियों को प्रदूषण के साथ ही अतिक्रमण मुक्त रखने के लिए भी प्रदेश सरकार द्वारा नए सिरे से तैयार कराई गई भवन निर्माण एवं विकास उपविधि-2025 में व्यवस्था की गई है। उपविधि में स्पष्ट तौर पर कहा गया है गंगा नदी के किनारे तट से 200 मीटर के दायरे में नए निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी। नदी किनारे के नगरों में वर्षों पहले से जो भवन बने हुए हैं उनकी मरम्मत और जीर्णोद्धार ही किया जा सकेगा। अगर भवन जर्जर हो गया है तब भी उसके संरक्षण कार्य को अनुमति तो मिलेगी लेकिन उसे गिराकर नवा नहीं बनाया जा सकेगा। हालांकि, गंगा नदी के तट पर स्थित प्रमुख तीर्थ स्थलों वाले क्षेत्र में नदी के किनारे से 200 मीटर के अंदर मठ, आश्रम या मंदिर का निर्माण कराने की सशर्त अनुमति मिलेगी। कुल क्षेत्रफल के 35 प्रतिशत में ही निर्माण करापा जा सकेगा।



