महाकुम्भ में स्नान के साथ नेत्रदान का भी संकल्प

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एनआरपी डेस्क।
 
महाकुम्भ नगर। संगम में आस्था की डुबकी लगाने के बाद श्रद्धालु और कल्पवासी यथाशक्ति अन्न, वख, द्रव्य व शय्या दान कर रहे हैं। दान की इसी परंपरा को समृद्ध करते हुए महाकुम्भ में पहली बार श्रद्धालु स्वेच्छा से नेत्रदान का संकल्प भी ले रहे हैं। महाकुम्भ के सेक्टर छह बजरंग चौराहा स्थित नेत्र कुम्भ में आने वाले नेत्र रोगियों व अन्य श्रद्धालुओं में लगभग 22 लोग प्रतिदिन नेत्रदान का संकल्प पत्र भर रहे हैं। कहा जाता है कि आंखें न सोती हैं न मरती हैं। बल्कि दानकर्ता की मृत्यु के बाद भी वे दूसरों को फिर से दुनिया देखने का मौका देती हैं।
एक माह में 670 लोगों ने नेत्रदान का लिया संकल्प : संगम में आस्था की डुबकी लगाने के बाद बड़ी संख्या में लोग नेत्र के इलाज व चश्मा के लिए नेत्र कुम्भ पहुंच रहे हैं। समन्वयक डॉ. कीर्तिका अग्रवाल के अनुसार पांच जनवरी से शुरू हुए नेत्र  कुम्भ में अब तक 670 लोगों ने नेत्रदान का संकल्प लिया है। वहीं एक लाख पांच हजार से अधिक लोगों की आंखों की जांच की जा चुकी है। 7926 लोगों को मोतियाबिंद के ऑपरेशन की सलाह दी गई है। 68460 लोगों को निःशुल्क चश्मा दिया जा चुका है।
 
नेत्र का अमूल्य उपहार दूसरे को देना संभव मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. एसपी सिंह के अनुसार नेत्रदान सबसे बड़ा दान है। इसके प्रति लोगों की जागरूकता से अंघता का निवारण संभव है। नेत्रदान सबसे अच्छे और सरल तरीकों में से है, जिसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए। हर व्यक्ति को नेत्र का अमूल्य उपहार दूसरे को देना संभव है। इसलिए नेत्रदान-महादान की संकल्पना को नेत्र कुम्भ के माध्यम लोग साकार कर सकते हैं।
12 से 78 साल तक के लोगों ने किया दान नेत्र कुम्भ में अभी तक हुए नेत्रदान का संकल्प पत्र भरने वालों में सबसे कम उम्र के 12 साल के एक छात्र और 78 साल के एक बुजुर्ग भी शामिल हैं। मौनी अमावस्या के दिन तारापीठ के महंत सोमनाथ और छत्तीसगढ़ की दिव्यांग बालिका तपस्या ने नेत्रदान का संकल्प लिया।

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