राजेंद्र कुमार
लखनऊ. उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की तलाश आखिर पूरी हो गई. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने योगी सरकार में पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र सिंह चौधरी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है. यह ताजपोशी यूपी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, केंद्रीय राज्य मंत्री भानु प्रताप वर्मा, एमएलसी विजय पाठक तथा विद्यासागर सोनकर और बीएल वर्मा आदि के दावे पर गंभीर मंथन के बाद की गई. पिछड़ा, दलित या ब्राह्मण की जगह जाट नेता भूपेंद्र सिंह चौधरी पर मुहर लगाना बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. माना यह भी जा रहा है कि सरकार और संगठन के मिश्रण से बीजेपी चौबीस का रण फतह करने निकलेगी.
भूपेंद्र सिंह चौधरी के यूपी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बनने पर अब यह कहा जा रहा है कि देश के इस सबसे बड़े राज्य में देश की सबसे बड़ी पार्टी के काम का बोझ अपने कंधे पर लेकर उन्होंने कांटों का ताज पहना है. यह जिम्मेदारी उनके लिए उपलब्धि से ज्यादा चुनौती है. उन्हें अब आगामी लोकसभा में यूपी की सभी 80 सीटों को भाजपा की झोली में डालने का लक्ष्य पूरा करना है. जिसकी सफलता या असफलता के बारे में अभी कोई दावा नहीं किया जा सकता, मगर भूपेंद्र चौधरी के अतीत के सन्दर्भ में देखें तो इस चुनौती पर पार पा जाना उनके लिए असंभव भी नहीं है. चौधरी भाजपा संगठन के मंजे हुए नेता माने जाते हैं. वह संघ की पृष्ठभूमि से आए हैं. जमीनी कार्यकर्ता के तौर पर चौधरी ने अपना सियासी सफर शुरू किया और अब वह वर्ष 2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूपी में सेनापति होंगे. और वह यूपी में सीएम योगी के साथ मिलकर यूपी को विपक्ष विहीन बनाने में जुटेंगे.
यूपी के पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र चौधरी की पहचान पार्टी के अंदर निचले स्तर तक संगठन को सक्रिय रखते हुए सफलता की तरफ बढ़ने वाले नेता की है, जिसने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की रेस में आगे खड़ा कर दिया. हालांकि वह खुद अभी तक विधायक का चुनाव नहीं जीत सके हैं. पहली बार साल 2009 में विधानसभा का चुनाव लड़े. बीजेपी ने उन्हें पश्चिमी मुरादाबाद सीट से उपचुनाव में उतारा था, लेकिन वह चुनाव नहीं जीत सके.ऐसे में बीजेपी ने उन्हें संगठन के कार्य में लगाए रखा. पश्चिम क्षेत्र का अध्यक्ष रहते हुए उनके रणनीतिक कौशल से 2014 के आम चुनाव में भाजपा को पहली बार पश्चिमी यूपी की सभी सीटों पर जीत हासिल हुई थी. भूपेंद्र सिंह चौधरी के पार्टी के प्रति समर्पण को देखते हुए साल 2016 में विधान परिषद सदस्य बनाकर यूपी के उच्च सदन में भेजा. 2017 में पश्चिमी यूपी में जाट समुदाय में अहम रोल अदा करने के चलते उनको योगी सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. 2022 में योगी सरकार दोबारा बनी तो उन्हें दोबारा से कैबिनेट मंत्री बनाया गया. इसके बाद 2022 में उन्हें दोबारा विधान परिषद भेजा गया है.
पार्टी का मानना है कि वर्ष 2024 के चुनावों लिए भाजपा की रणनीतिक जरूरतों के लिहाज से भूपेंद्र चौधरी पश्चिम उत्तर प्रदेश में पार्टी के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति साबित होंगे. भाजपा में भूपेंद्र चौधरी पश्चिमी यूपी में जाट राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा हैं। जाट मतदाताओं को साधने और उनके साथ ही अन्य मतदाताओं को साथ जोड़कर चलने के कारण भी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पार्टी नेतृत्व ने उन्हें बड़ा दावेदार माना. जिसके चलते उन्हें यह अहम जिम्मेदारी देना का फैसला किया गया.
वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय के अनुसार, भाजपा के सामने यूपी में विपक्ष का बड़ा केंद्र इस समय जाटलैंड यानी पश्चिमी यूपी ही है. इस क्षेत्र में प्रमुख विपक्षी दल सपा और रालोद का मजबूत गठजोड़ है. लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र से भाजपा सात सीटें हार गई थी. 2024 आम चुनाव में भाजपा 2019 की कमियों को सुधारने की कोशिश में है. पश्चिम ने विपक्ष के गठजोड़ को तोड़ने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पश्चिम यूपी के 22 जिलों की जिम्मेदारी ली है. अब भूपेंद्र चौधरी भी उनके साथ खड़े दिखेंगे. पश्चिम यूपी में विपक्ष की ताकत को कमतर करने में चौधरी भी अहम भूमिका निभाएंगे.
भूपेंद्र चौधरी 2012 विधानसभा चुनाव, 2014 आम चुनाव तथा 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा पश्चिमी क्षेत्र के अध्यक्ष रहे थे. इसके बाद से प्रदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से लगातार दूसरी बार मंत्री हैं. 2019 लोकसभा और 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा को पश्चिमी यूपी में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई थी. विधानसभा चुनाव में उन्हें सहारनपुर मंडल में लगाया गया था इस क्षेत्र में किसानों का विरोध पार्टी को झेलना पड़ रहा था, जिसे बहुत हद तक कम करने में भूपेंद्र चौधरी को सफलता मिली थी. गिरीश पांडेय कहते हैं कि भूपेंद्र चौधरी को पार्टी ने अहम जिम्मेदारी देकर पश्चिमी यूपी में जाट मतदाताओं खासकर रालोद के वोट बैंक में सेंध लगाने के साथ भाजपा की पैठ बनाने की बड़ी रणनीति मानी जा रही है. इसे सपा और रालोद के गठजोड़ को कमजोर करने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है. विपक्ष द्वारा बार-बार पश्चिम से खड़े किए जा रहे किसान आंदोलन को भी कमजोर करने में मदद मिलेगी.