प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व की एक खूबी तो माननी ही पड़ेगी कि वो अच्छी और बुरी दोनों ही तरह की बातें मुंह पर कहना पसंद करते हैं और कहने से गुरेज़ भी नहीं करते. वह अपने नेताओं को उनकी जिम्मेदारियों और गलतियां का अहसास स्पष्ट रूप से कराते हैं. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि भाजपा सांसदों को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास आखिर क्यों नहीं है और क्यों उन्हें बहाने बनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
कहने तो वो देश के सबसे जिम्मेदार लोगों में से एक हैं लेकिन शायद उन्हें अपनी जिम्मेदारियों का पूरी तरह अहसास नहीं है तभी तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनकी क्लास लेने को मजबूर होना पडा. हम बात कर रहे हैं भाजपा सांसदों की. तारीख थी 17 मार्च और दिन था मंगलवार और सुबह का वक्त… भारतीय जनता पार्टी के संसदीय दल की मीटिंग का नजारा बिलकुल वैसा था, जैसा किसी स्कूल की क्लास में होता है. यहाँ फर्क बस इतना था कि इस क्लास के मास्टर थे वेंकैया नायडू और हेड मास्टर थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. सचमुच भाजपा के सांसद जिनमे मंत्री भी शामिल थे, छात्रों की तरह नज़र आ रहे थे. वजह यह कि सांसद अपनी गैरहाजिरी की वजह भी बच्चों की तरह बता रहे थे. ज़्यादातर की वजहें भी बचकानी थीं, जैसी छात्र बहानो बताते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 17 मार्च को संसद में कार्यवाही शुरू होने से ठीक पहले भरी सभा में 20 से ज़्यादा सांसदो को शर्मसार करने के लिए मजबूर होना पडा. इस बैठक में सांसदों की फजीहत की वजह थी भूमि अधिग्रहण बिल पर वोटिंग के दौरान सदन से गायब रहना. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूमि अधिग्रहण बिल पर मतदान के दौरान संसद से गैरहाजिर भाजपा सांसदों के प्रति सख्त रुख अपनाया. उनको सभी सांसदों को हिदायत देने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसके लिए उन्होंने सांसदों की जमकर क्लास ली. बैठक में इन सांसदों को न केवल खड़े होकर अपनी सफाई देनी पड़ी, बल्कि आगे से ऐसा न करने की हामी भी भरी. गैरहाजिर रहने वाले सांसदों में वरुण गांधी, पूनम महाजन, बाबुल सुप्रियो, प्रीतम मुंडे, शत्रुघ्न सिन्हा, कमलेश पासवान, रिती पाठक, श्रीपाद नायक, राजेंद्र अग्रवाल और चन्द्र प्रकाश जोशी शामिल थे.
दरअसल इन सांसदों को खुद समझना चाहिए था कि भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विपक्ष के भारी विरोध को देखते हुए उनकी सरकार इसके लिए पहले से ही बेहद गंभीर थी. साथ ही विपक्ष के हमलों को कुंद करना भी जरूरी था. खैर, सरकार लोकसभा में बहुमत से भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित करवाने में कामयाब रही थी लेकिन बीस ज्यादा सांसदों का सदन से गैर हाजिर रहना प्रधानमंत्री को नागवार गुजरा था, जबकि सभी सांसदों को सदन में मौजूद रहने को कहा गया था. बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सूची निकाल कर कुछ सांसदों के नाम पढ़ने के बाद कहा कि सारे नाम लूं या अनुपस्थित रहने वाले खुद खड़े होंगे. इसके बाद गैरहाजिर रहे मंत्री और सांसद अपनी जगह पर खड़े हो गए और गैर मौजूदगी की वजह बताई. संसदीय दल की बैठक में शामिल सांसदों ने जो अपने साथियों को इस बैठक के बारे में बताया, वह ज़ाहिर करता है कि प्रधानमंत्री इससे काफी खफा थे. बैठक शुरू होते ही उन्होंने भूमि बिल पर वोटिंग के दौरान गैरमौजूदगी पर नाराजगी जताई. इसके बाद उन्होंने अनुपस्थित लोगों की सूची पढ़नी शुरू कर दी. कुछ नाम पढ़ने के बाद पीएम ने पूछा कि ऐसे लोग खुद खड़े होंगे या पूरी सूची पढ़नी होगी. बाद में इस पूरे मामले में नायडू ने मोर्चा संभाला. उन्होंने कहा कि सदस्यों को यह पता होना चाहिए कि उनकी अनुपस्थिति से सदन में सरकार की किरकिरी हो सकती है.
यहाँ पर सांसदों ने जो बहाने बनाए उनमें कुछ के बहाने तो वाजिब नज़र आये लेकिन ज़्यादातर ने ऐसे बहाने बनाए जो बहुत ही बचकाना थे और उसको लेकर उन्हें शर्मिंदगी भी उठानी पड़ी. प्रधानमंत्री ने जैसे ही पहला नाम पुकारा तो वह सांसद खड़े हो गए. जाहिर है कि जब वे खड़े हुए तो उनसे गैर-हाजिर रहने की वजह पूछी गई. सांसद ने सफाई दी कि बच्चा बीमार होने के कारण वह नहीं आ पाईं थीं.
इसके बाद दूसरे सांसद का नाम लिया गया तो उन्होंने अपने रिश्तेदार की मौत को वजह बताया. एक सांसद ने टांग में दर्द को वजह बताया. एक और सांसद ने कहा कि वह बीमार थीं और उन्हें आशंका थी कि कहीं स्वाइन फ्लू न हो गया हो. मध्य प्रदेश की सीधी से सांसद रिती पाठक ने तो खुद को पंचायत चुनाव की वजह से व्यस्त बताया. अब बताइये कि किसी भी सांसद के लिए क्या भूमि अधिग्रहण बिल, जिसमें सरकार की नाक फंसी है, वह ज़्यादा महत्वपूर्ण था या पंचायत चुनाव. उन्हें नाराजगी का सामना भी करना पड़ा. साफ़ कर दिया गया कि अगर वह इतना ही जरूरी है तो आप पंचायत की राजनीति ही कीजिये. वरुण गांधी भी अपना नाम बोलने पर खड़े हो गए थे, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं बोला. कुछ सांसदों ने अपनी अनुपस्थिति के कारण बताए, जिन्हें जायज भी माना गया. हालांकि बाद में एक बार फिर सभी को हिदायत दी गई कि संसद के दौरान अपनी उपस्थिति का वो खास ध्यान रखे.
जो प्रमुख नेता उस दौरान सदन में नहीं थे उनमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि वे उस समय राज्यसभा में थे, जबकि राधामोहन सिंह विदेश यात्रा पर थे. खासबात यह रही कि जिन लोगों के नाम बुलाए गए उनसे से तीन-चार तो बैठक में भी मौजूद नहीं थे. शत्रुघ्न सिन्हा इस बैठक में भी नहीं पहुंचे थे. बाद में शत्रुघ्न सिन्हा ने मीडिया से कहा कि वह कहीं और व्यस्त था. रोचक तो ये है कि उन्होंने ये भी कहा कि हर मुद्दे पर बोलना उनका राष्ट्रीय कर्तव्य नहीं है. जवाब तलब करने के बाद प्रधानमंत्री और संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने सांसदों को भविष्य में सदन में हर हाल में मौजूद रहने की अंतिम चेतावनी दी.
हर किसी के पास कोई न कोई तर्क था लेकिन सरकार की ओर से उन्हें यह संकेत दे दिया गया कि सांसद चुनकर आए हैं तो प्राथमिकता भी संसद होनी चाहिए. इसके बाद मोदी ने उन्हें कड़ी चेतावनी देते हुये बैठना को कहा. साथ ही कहा कि ध्यान रहे, आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए. इसके बाद सभी सांसद अपनी अपनी जगह पर बैठ गये. वेंकैया नायडू ने बैठक में साफ कहा कि वो बार-बार सभी सांसदों को समय पर आने, संसद में मौजूद रहने के लिए बोलते हैं. कुछ सांसदों को बुरा भी लगता होगा, लेकिन पार्टी का टिकट मांगने वो खुद पार्टी के पास आए थे. अब टिकट लेकर चुनाव जीता है, तो संसद की ड्यूटी तो करनी ही होगी. वेंकैया नायडू ने कहा कि अगर सांसद यह समझते हैं कि पार्टी का सदन में रहने का अनुरोध बिलावजह का है तो उन्होंने पार्टी का टिकट क्यों लिया. अब देखना यह है कि भारतीय जनता पार्टी के ऐसे सांसद चेतते हैं या नहीं.