बजट में मिलेट्स के महत्व से यूपी में बाजरा और बाजार दोनों खुश

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मनीष मिश्र
लखनऊ। पश्चिमी देशों के सेहत को दांव पर लगा कमाई की नीति का हम पर यह असर हुआ था कि सेहत के लिए फायदेमंद अनाज को हम कुअन्न कहने लगे थे। लेकिन देश और प्रदेश की सरकारों ने इसके महत्व को समझा। आम बजट में जिस तरह मोटे अनाज पर फोकस किया गया है, उससे सेहत और किसान दोनों के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई है।
उत्तर प्रदेश को तो जैसे मन की मुराद मिल गए है। दरअसल यूपी में इन अनाजों को लोकप्रिय बनाने की मुकम्मल योजना करीब छह महीने पहले ही तैयार कर चुका है। मुख्यमंत्री खुद इसके ब्रांड अम्बेसडर की भूमिका में है। हाल ही में वह अपने आवास पर दो बार मिलेट्स भोज का भी आयोजन कर चुके हैं। इसी मकसद से प्रदेश में जहां भी जी-20 के आयोजन होंगे, उनमें मिलेट्स के भी व्यंजन शामिल होंगे। ओडीओपी की तरह खास अतिथियों को गिफ्ट हैंपर में मिलेट्स से बनी चीजें भी दी जाएंगी।
बुधवार को आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश में मिलेट्स (ज्वार, बाजार और अन्य मोटे अनाज) के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए हैदराबाद स्थित भारतीय मिलेट्स अनुसंधान संस्थान को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने की घोषणा की है। स्वाभाविक है कि इसके लिए सरकार संस्थान को अतिरिक्त बजट भी देगी। मंशा यह है कि मिलेट्स के उत्पादन और निर्यात में दुनिया में दूसरा स्थान रखने वाला भारत इसका वैश्विक हब बने। सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र में सर्वोत्तम उपलब्धियों को साझा कर सके। उल्लेखनीय है कि भारत के प्रयास से संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष मनाने की घोषणा की है। मोटे अनाजों को उन्नत भोजन माना गया है क्योंकि उनकी खेती मुख्यत: जैविक ढंग से होती है और उनमें पौष्टिक तत्व बहुतायत पाये जाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मिलेट्स वर्ष में मोटे अनाजों की खेती और उपभोग को जन आंदोलन बनाने का आह्वान किया है। भारत में मिलेट्स की श्रेणी में आने वाले मुख्य अनाजों में ज्वार, रागी, बाजारा, कुटकी, कोदो, कुट्टू और चौलाई आदि शामिल हैं। भारत में सालाना 1.7 करोड़ टन मोटे अनाजों का उत्पादन होता है।
मोटे अनाजों के प्रोत्साहन के लिए आम बजट में केंद्र सरकार द्वारा की गई पहल बेहतरीन है। जिनको मोटे अनाज या कुअन्न कहकर उपेक्षित कर दिया गया था, उनकी खूबियों से लोग वाकिफ होंगे। मिलेट्स अनुसंधान केंद्र को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाये जाने से इन पर नए शोध होंगे। नयी प्रजातियों का विकास होगा। इनकी उपज बढ़ेगी। ये रोगों एवं कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधी होंगी। साथ ही अधिक समय तक भंडारण योग्य भी। इनको फोर्टिफाइड कर इनको और उपयोगी बनाया जा सकेगा। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पहले से ही इसके प्रति सचेत है। पहली बार 18 जिलों में यहां बाजरे की एमएसपी पर खरीद हो रही है। लिहाजा यहां के किसान ऐसी किसी पहल से सर्वाधिक लाभान्वित होंगे। एक जो सर्वाधिक लाभ होगा जिस पर कम चर्चा होती है, वह है ग्लोबल वार्मिंग और मिलेट्स की खेती। हाल ही में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) के जरिये अध्ययन से पता चला है कि अगले दशक में धरती का तापमान करीब 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। नतीजतन मौसम की अप्रत्याशिता का दौर बढेगा। गेहूं जैसी फसल जो तापमान के प्रति बेहद संवेदनशील होती है, उस पर इसका बहुत असर पड़ेगा। मोटे अनाजों की खेती में कम पानी की दरकार होती। ये तापमान के प्रति भी प्रतिरोधी होते हैं। बाजरा का परागण तो 45 से 50 डिग्री सेल्सियस पर भी हो जाता। इस लिहाज से देखेंगे तो यह भविष्य की खेती होगी

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