आग क्यों न लगे, न डिग्री न अनुभव बना दिया गया आपदा विशेषज्ञ

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नितिन श्रीवास्तव
लखनऊ। बुधवार को निरालानगर के डी ग्लोब पार्क होटल में आग लगी, शुक्र रहा कि कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। ठीक एक दिन पहले मंगलवार देर शाम पारा के सलेमपुर पतौरा में तारपीन के फैक्ट्री में भीषण आग ने ये साबित कर दिया है कि आग से बचने के उपायों में कहीं न कहीं कोई बड़ी नाकामी और लापरवाही है, जो अक्सर लखनऊ को आग लपटों में झोंक देती है। कहीं अवैध फैक्टरी और कहीं मानकों धता बताकर काम चल रहा है। हाल ही में एक आरटीआई के जरिए खुलासा हुआ है कि जिला आपदा प्रबंध प्राधिकरण में तैनात आपदा विशेषज्ञ, उस पद के लिए अपनी अर्हता ही नही पूरी करता। बावजूद इसके कि अबतक लखनऊ में कई जगह भीषण आग चुकी है, कई मौतें हो चुकी हैं। तारपीन की फैक्टरी में आग से पहले सितंबर के पहले हफ्ते हजरतगंज के लेवाना होटल में आग लगी थी, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी। तारपीन फैक्टरी के आग में भी एक मजदूर की मौत हुई। इससे पहले 19 जून 2018 होटल एसएसजे इंटरनेशनल और होटल विराट में आग लग गयी थी, जिसमें सात लोगों की मौत हुई थी।
अब सवाल ये है कि लगातार हो रही आग की घटनाएं महज़ हादसा हैं या फिर आग रोकने से जुड़े विभागों की तमाम लापरवाहियां, जो आग लगने का सबब बनती हैं। एक आरटीआई में खुलासा हुआ है कि जिला आपदा प्रबंध प्राधिकरण में तैनात आपदा विशेषज्ञ अमर सिंह उस पद के लिए अपनी अर्हता ही नही पूरी करता। अमर सिंह जिला आपदा प्रबंध प्राधिकरण लखनऊ में संविदा के आधार पर जिलाधिकारी कार्यालय में तैनात है। खास बात ये है कि 2017 में अमर सिंह को जो नौकरी मिली है, उसकी डिग्री ही उसके पास नही है। इस पद के लिए आपदा प्रबंधन पर पीजी डिप्लोमा या डिग्री अनिवार्य है लेकिन उसके पास ये डिग्री/डिप्लोमा नही है। उसके पास आपदा राहत एवं पुनर्वास का पीजी डिप्लोमा है, जो मूल विषय से अलग है। कार्य अनुभव की अर्हता की जो शर्त नौकरी के आवश्यक थी, वह भी जब उसने नौकरी हासिल की, तब वह पूरी नहीं करता था। अमर सिंह के पास शासन के अनुरूप वर्ष 2017 में 3 वर्ष का प्रेक्टिकल अनुभव नहीं था।
आपदा विशेषज्ञ के लिए जारी शासनादेश संख्या – 894/ 1-11-2017-11 (जी) 2017 दिनांक 4 अगस्त 2017 के प्रस्तर – 2 (ख) के अनुसार स्नातक के साथ आपदा प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा या डिग्री ही अनिवार्य है। आरटीआई में बताया गया है कि शासनादेश में कहीं भी इस समकक्ष डिप्लोमा/डिग्री का अंकन नहीं किया गया। अमर सिंह के पास आपदा प्रबंधन की डिग्री या पीजी डिप्लोमा नहीं। उसने जो पीजी डिप्लोमा दर्शाया है, वह आपदा राहत एवं पुनर्वास का है। उसने लखनऊ विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग के अंतर्गत इसे पूरा किया है। अब सवाल यह है कि भूगोल की पढ़ाई करने वाले को क्या इतिहास का प्रोफेसर बनाया जा सकता है। या होमियोपैथी के पढ़ाई करनेवाले डॉक्टर को एलोपैथी का इलाज कराने की स्वतंत्रता है।
साफ लगता है कि नियमों को धता बताते हुए और पत्रों में हेरफेर करके, झूठे तथ्यों आधार पर नौकरी हासिल की गई है। अमर सिंह के पास पीजी डिप्लोमा डिजास्टर रिलीफ एंड रिहैबिलिटेशन का वर्ष 2010 का डिप्लोमा है जबकि सरकार के शासनादेशों के क्रम में 2017 में, जो विज्ञापन जारी हुआ था, उसमें आपदा विशेषज्ञ या डिजास्टर प्रोफेशनल की मांग की गई थी। अमर सिंह के द्वारा किए गए डिप्लोमा को लेकर राजस्व विभाग में सूचना का अधिकार कानून के आधार पर प्राप्त सूचना से भी प्रमाणित होता है कि अमर सिंह की डिग्री व नौकरी के लिए शासन के अनुरूप नहीं है।

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