रामगोपाल यादव के बहाने कानून पर चर्चा

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नवल कान्त सिन्हा

(NRP) 21.12.2015. सचमुच हम सब अंदर से बहुत डरे-सहमे हुए हैं. वजह भी साफ़ है कि जब हमारे घर और आस-पास जिन्हें बच्चियां अंकल, भैया, चाचा, ताउजी और दादाजी न जाने क्या-क्या कहती हैं, उनसे भी अक्सर ख़तरा बना रहता है तो फिर वो तो बलात्कारी है और बहुत क्रूर भी. अगर वो समाज में आज़ाद घूमेगा तो क्या हमारे देश की बच्चियों की अस्मत संकट में नहीं आयेगी ? क्या उसके आज़ाद हो जाने से बच्चियों के सामने और बड़ा ख़तरा नहीं बढ़ जाएगा ?
एक बार फिर याद कर लीजिये कि यह नाबालिग कितना खतरनाक है. निर्भया मामले की पुलिस जांच में सामने आ चुका है कि इस नाबालिग ने ही पीड़ित लड़की को आवाज देकर बस में बुलाया था. यही नहीं, बस में बैठने के बाद इसी आरोपी ने बाकी पांचों लोगों को गैंगरेप के लिए न सिर्फ उकसाया बल्कि घटना का सूत्रधार बना. इस नाबालिग लड़के ने गैंगरेप के दौरान पीड़ित लड़की पर सबसे ज़्यादा जुल्‍म किए. इस लड़के ने ही दो बार बड़ी बेरहमी से लड़की से बलात्कार किया. वह इतना ज्यादा वहशी था कि छात्रा की आंतें तक बाहर आ गई थीं. उस लड़की ने शायद इसकी कल्पना नहीं की थी कि लोहे की जंग लगी रॉड के इस्तेमाल से उसके साथ भयानक टॉर्चर होगा. निर्भया की आंतों को नुकसान पहुंचने की वजह से उसके कई बार ऑपरेशन करने पड़े. आखिरकार डॉक्टरों को उसकी आंतें ही काटकर बाहर निकालनी पड़ीं. पूरे शरीर में इंफेक्शन फैल गया, उसे सिंगापुर इलाज के लिए ले जाया गया, लेकिन खुद को नाबालिग बताने वाले उस बर्बर आरोपी के आगे दवा और दुआ फेल हो गई और दर्द से लड़ते हुए पीड़ित ने दम तोड़ दिया. समझा जा सकता है कि हम जिसे नाबालिग कह रहे हैं, वो किस हद तक खतरनाक और क्रूर है.
और ऐसे में बयान आता है समाजवादी पार्टी के एक बड़े नेता राम गोपाल यादव का. इसमें उन्होंने निर्भया केस की वजह से क़ानून न बदलने की वकालत की है. रामगोपाल यादव ने कहा कि एक आदमी के लिए क़ानून नहीं बदले जाते. चैनलों ने इस खबर को हेडलाइन बनाया. और स्वाभाविक ही था क्योंकि इस समय देश के सबसे ज्वलंत मुद्दों में से एक मुद्दा यह भी है. मीडिया ने रामगोपाल यादव के बयान को संवेदनहीन भी घोषित कर दिया. लेकिन सच पूछिए यदि निर्भया केस से थोड़ा हटकर सोचा जाए तो रामगोपाल यादव का बयान सचमुच सोचने पर मजबूर करता है. और रामगोपाल यादव के बयान को खारिज कीजिये तो सवाल उठता है कि क्या सचमुच इस देश में क़ानून अपर्याप्त है ? दरअसल हम इस क्रूर नाबालिग को न छोड़ने के लिए जो तर्क दे रहे हैं, उस तर्क के आधार पर तो किसी भी अपराध के लिए सिर्फ फांसी या उम्र कैद की ही सजा हो सकती है क्योंकि कोई गारंटी नहीं दे सकता कि एक अपराध की सजा पाने के बाद कोई व्यक्ति दूसरी बार वह अपराध नहीं करेगा. और हां, कोई ये भी नहीं कह सकता कि कोई भी व्यक्ति गलती करने के बाद सुधर नहीं सकता. तो फिर आखिर क़ानून को कैसा होना चाहिए.
एक खबर और नज़र आयी है. पश्चिम बंगाल के नार्थ 24 परगना जिले में उस बलात्कारी नाबालिग की रिहाई हो गयी, जिसने सात साल की बच्ची के साथ रेप किया था. अब यह बात दोनों ओर लागू होती है क्योंकि जो दिल्ली में हुआ था, वैसा ही वीभत्स सात साल की बची के साथ 24 परगना जिले का मामला भी है. हम सब स्वाभावतः चाहते हैं कि जो समाज के लिए कोढ़ हैं, उनको मार दिया जाना ही सबसे सरल उपाय है. लेकिन क्या यह अंतिम उपाय है ? यहाँ ये सवाल उठ रहा है कि जिसने नाबालिग रहते हुए इतने घ्रणित तरीके से रेप किया, क्या गारंटी है कि वो बालिग़ होने के बाद ये कुकृत्य दुबारा नहीं करेगा. सचमुच ऐसी घ्रणित सोच वाले व्यक्ति की गारंटी लेना तो दूर की बात है, कोई यह विश्वास भी नहीं कर सकता कि वह ऐसा दुबारा नहीं करेगा. लेकिन दुबारा करेगा इसलिए ऐसे व्यक्ति को नहीं छोड़ना चाहिए ? क्या यह मांग जायज़ है ? क्योंकि अगर कोई व्यक्ति जो कई बार चोरी पकड़ा जो चुका है और पचास साल की उम्र में उसे दुबारा दो साल की सजा मिलती है तो क्या गारंटी है कि वह दो साल की सजा भुगतने के बाद चोरी नहीं करेगा ? और उसे कभी जेल से न छोड़ा जाए ये बात भी समझ से परे है तो क्या करना चाहिए. सवाल गंभीर है और इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है. सबसे ज़्यादा जरूरत तो इस बात की है कि किसी अपराधी की रिहाई के बाद उसका रिहैब्लिटेशन कैसे हो, हमें इस पर भी सोचना होगा.

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