श्रीपति त्रिवेदी
22.02.2015 (News Rating Point)
जिस दिन जीतन राम मांझी ने इस्तीफा दिया, उस दिन एक ट्वीट ने बहुत आकर्षित किया. ट्वीट में लिखा था- लड़ाई जीतन राम मांझी और नितीश कुमार की और जीत गयी भारतीय जनता पार्टी… सचमुच जिस महादलित समुदाय की सहानभूति पाने के लिए नितीश कुमार ने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था. उसी जुगाड़ में भारतीय जनता पार्टी लग गयी. अपनी महत्वकांक्षा के लिए जद (यू) के खिलाफ क्रांतिकारी बने जीतन राम मांझी की जंग भाजपा को रास आने लगी. साफ़ बात थी यह है कि इस लड़ाई में भाजपा को अपना कोई भी गोला-बारूद नहीं लगाना है यानी हींग लगे न फिटकरी और रंग चोखा. सो भाजपा ने मांझी की पीठ ठोकनी शुरू कर दी. परिणाम सबके सामने है.
लेकिन अब सवाल यह है कि अब जीतन राम मांझी करेंगे क्या… उनके पास तीन रास्ते हैं- पहला वो माफी मांग कर जदयू में बने रहें, जिसकी संभावना नहीं है. दूसरा, वो भाजपा में चले जाएँ और तीसरा अपना संगठन बना दलितों को बताएं कि नितीश ने एक महादलित पर कितना अत्याचार किया है और एनडीए में शामिल हो जाएँ. अभी तो ऐसा लग रहा है कि मांझी बिहार में घूम-घूम कर नितीश कुमार की खिलाफत करेंगे. पहले तो वह अपने समर्थको के बीच अपनी व्यथा रखेंगे.
जानकारी मिल रही है पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में मांझी ने कार्यकर्ताओं की 28 फरवरी को एक मीटिंग बुलाई है. ख़ास बात ये है कि इस मीटिंग में मांझी समर्थक तो आयेंगे ही नितीश विरोधियों को भी मौक़ा मिलेगा. इसके मीटिंग में आगे की रणनीति तय होगी और बाद में मांझी दलित चेतना रथ लेकर पूरे बिहार में घूमेंगे. महादलितों पर नितीश कुमार के अत्याचारों की कहानियाँ सुनायेंगे. इस नितीश विरोध से मांझी को कुछ फायदा हो या ना हो लेकिन भाजपा को बिहार में अपनी राजनीति चमकाने में मदद मिलेगी. भाजपा ने अपने बयान से ये ज़ाहिर भी कर दिया. जिस तरह से भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि नीतीश कुमार ने पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का इस्तेमाल किया और उनका स्वाभिमान जगने पर उन्हें फेंक दिया. वो साफ़ स्पष्ट कर रहा है भाजपा की रणनीति को.
एक बात और गौर करनेवाली है कि जीतन राम मांझी को भारतीय जनता पार्टी जितना नादान समझ रही है वो उतने हैं नहीं. फिर मांझी उस नितीश कुमार को धोखा देने में हिचके, जिसने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया तो भाजपा भी उन्हें सिर्फ एक कंधे की तरह नज़र आ रही है. ज़ाहिर है भाजपा को भी बराबर मांझी पर नज़र रखनी होगी. जहां तक नितीश कुमार की बात है तो वह दूध के जले हो गए हो गए हैं और अब छाछ भी फूंक-फूंक कर पीयेंगे. उन्होंने इसका मुजाहिरा भी कराया. जिस तरह से उन्होंने बिहार की कुर्सी छोड़ने के लिए जनता से माफी माँगी, ये अरविन्द केजरीवाल जैसी ही स्टाइल थी. यह बताता है कि नितीश का एक मोहरा जरूर भाजपा के पाले में आकर गिर गया है लेकिन बिहार में भाजपा को खुला मैदान मिलने वाला नहीं है.
जहां तक मांझी की बात है तो उन्होंने समझा दिया है कि जितना सियासत में लोग उन्हें महत्वहीन समझते थे, उतने वह हैं नहीं. हां, यह सच है कि उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गयी लेकिन वह ताकत अब भी जिंदा है जिस वजह से उन्हें कुर्सी मिली थी और जिस वजह से भाजपा उन्हें महत्व दे रही है.
लेकिन अब सवाल यह है कि अब जीतन राम मांझी करेंगे क्या… उनके पास तीन रास्ते हैं- पहला वो माफी मांग कर जदयू में बने रहें, जिसकी संभावना नहीं है. दूसरा, वो भाजपा में चले जाएँ और तीसरा अपना संगठन बना दलितों को बताएं कि नितीश ने एक महादलित पर कितना अत्याचार किया है और एनडीए में शामिल हो जाएँ. अभी तो ऐसा लग रहा है कि मांझी बिहार में घूम-घूम कर नितीश कुमार की खिलाफत करेंगे. पहले तो वह अपने समर्थको के बीच अपनी व्यथा रखेंगे.
जानकारी मिल रही है पटना के श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में मांझी ने कार्यकर्ताओं की 28 फरवरी को एक मीटिंग बुलाई है. ख़ास बात ये है कि इस मीटिंग में मांझी समर्थक तो आयेंगे ही नितीश विरोधियों को भी मौक़ा मिलेगा. इसके मीटिंग में आगे की रणनीति तय होगी और बाद में मांझी दलित चेतना रथ लेकर पूरे बिहार में घूमेंगे. महादलितों पर नितीश कुमार के अत्याचारों की कहानियाँ सुनायेंगे. इस नितीश विरोध से मांझी को कुछ फायदा हो या ना हो लेकिन भाजपा को बिहार में अपनी राजनीति चमकाने में मदद मिलेगी. भाजपा ने अपने बयान से ये ज़ाहिर भी कर दिया. जिस तरह से भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा कि नीतीश कुमार ने पहले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का इस्तेमाल किया और उनका स्वाभिमान जगने पर उन्हें फेंक दिया. वो साफ़ स्पष्ट कर रहा है भाजपा की रणनीति को.
एक बात और गौर करनेवाली है कि जीतन राम मांझी को भारतीय जनता पार्टी जितना नादान समझ रही है वो उतने हैं नहीं. फिर मांझी उस नितीश कुमार को धोखा देने में हिचके, जिसने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया तो भाजपा भी उन्हें सिर्फ एक कंधे की तरह नज़र आ रही है. ज़ाहिर है भाजपा को भी बराबर मांझी पर नज़र रखनी होगी. जहां तक नितीश कुमार की बात है तो वह दूध के जले हो गए हो गए हैं और अब छाछ भी फूंक-फूंक कर पीयेंगे. उन्होंने इसका मुजाहिरा भी कराया. जिस तरह से उन्होंने बिहार की कुर्सी छोड़ने के लिए जनता से माफी माँगी, ये अरविन्द केजरीवाल जैसी ही स्टाइल थी. यह बताता है कि नितीश का एक मोहरा जरूर भाजपा के पाले में आकर गिर गया है लेकिन बिहार में भाजपा को खुला मैदान मिलने वाला नहीं है.
जहां तक मांझी की बात है तो उन्होंने समझा दिया है कि जितना सियासत में लोग उन्हें महत्वहीन समझते थे, उतने वह हैं नहीं. हां, यह सच है कि उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गयी लेकिन वह ताकत अब भी जिंदा है जिस वजह से उन्हें कुर्सी मिली थी और जिस वजह से भाजपा उन्हें महत्व दे रही है.