एनआरपी डेस्क
लखनऊ। जिस समय उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री महेंद्र सिंह को त्रिपुरा का प्रभारी बनाया गया था। उस समय तक त्रिपुरा की स्थिति चुनौतपूर्ण हो गई थी। एक तरफ कांग्रेस वाम दल चुनौती थे तो दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस। उभरती हुई टिपरा मोथा पार्टी भी बड़ी चुनौती बन उभर रही थी। लेकिन त्रिपुरा की दोबारा जीत ने डॉ. महेंद्र सिंह का न्यूज़ ग्राफ जबरदस्त तरीके से बढ़ा दिया।
सत्तारूढ़ बीजेपी ने त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में 60 में से 32 सीटें जीतकर बहुमत के आंकड़े को आसानी से पार कर लिया। बीजेपी की सहयोगी आईपीएफटी ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ा और एक सीट पर जीत हासिल की। इसके बाद बीजेपी-IPFT की सीटें बढ़कर 33 हो गई। हालांकि, चुनाव में सबसे ज्यादा हैरान नवगठित टिपरा मोथा पार्टी ने किया।
टिपरा मोथा ने 13 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की। और खुद को राज्य में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में स्थापित किया। सीपीएम (लेफ्ट) ने राज्य की 44 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ 11 सीटों पर जीत हासिल की। लेफ्ट के साथ सीट बंटवारे का समझौता करने वाली कांग्रेस ने 13 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसके हाथ केवल तीन सीटें ही लगी। जब कांग्रेस लेफ्ट ने समझौता किया था, तब लगा था कि बीजेपी के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी होगी लेकिन बीजेपी के रणनीति ने विपक्ष के सभी मंसूबे ध्वस्त कर दिए। साथ ही असम में पहली बार बीजेपी की सरकार स्थापित करने के बाद त्रिपुरा में दूसरी बार सरकार बनाने के चलते महेंद्र सिंह पार्टी के एक बड़े रणनीतिकार बन कर उभरे हैं।