वाराणसी में नित्य शाम होने वाली भव्य गंगा आरती की भव्यता को निहारने के लिए हर दिन हजारों श्रद्धालु देश ही नहीं बल्कि विदेशों से यहाँ आते हैं और गंगा तट पर गंगा आरती के मनोरम दृश्य को निहारकर गंगा की भाव विभूर हो जाते हैं। साल 1997 में वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर गंगोत्री सेवा समिति के संस्थापक अध्यक्ष पं. किशोरी रमण दूबे (बाबू महाराज) ने प्राचीन दशाश्वमेध घाट पर नित्य गंगा आरती की शुरुआत की थी। शुरू के दिनों में उनके साथ सत्येन्द्र मिश्रा, दुदु कलापात्रा, राज कुमार तिवारी और गुल्लू महाराज जुड़े थे। जो एक चौकी पर आरती का साजो-सामान सजाकर मिट्टी की धुनोची में कपूर आरती से किया करते थे। सिर्फ कार्तिक पूर्णिमा में ही आरती का यह सिलसिला 1997 तक चलता रहा। इस वर्ष बाबू महाराज हरिद्वार गये और वहां की गंगा आरती का भव्य रूप देखा इसके बाद उनके मन में यह विचार आया कि यह आरती नित्य होनी चाहिए और भव्य होनी चाहिए उसके बाद किशोरी रमन दुबे ने नित्य शाम गंगा तट पर गंगा आरती करने का संकल्प लिया और 14 नवम्बर सन् 1997 से वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर नित्य गंगा आरती की शुरुआत हुई। जो देखते ही देखते कुछ ही सालों में भव्य रूप में आ गया। जिसके कायल अब देशी नहीं बल्कि विदेशी मेहमान भी हैं।
वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर गंगोत्री सेवा समिति को ही वाराणसी में नित्य गंगा आरती की शुरुआत करने का श्रेय जाता है। वाराणसी के एक घाट से शुरू हुई आरती आज विश्व प्रसिद्ध हो गयी। समय बीतता गया और वाराणसी के 84 घाटों में से कुछ और घाटों पर गंगा आरती की परम्परा शुरू हुई। आज वाराणसी के 84 घाटों में से लगभग दर्जनभर घाटों पर नित्य गंगा आरती होती है। लेकिन दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती की बात ही निराली है।
इन घाटों पर भी होती है आरती
दशाश्वमेध घाट के अलावा वाराणसी के सामने घाट, अस्सी घाट, तुलसी घाट, केदारघाट, अहलियाबाई घाट, ललिता घाट, रविदास घाट पर नित्य शाम गंगा आरती होती है। (न्यूज़)