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दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर होगा, जानिए अयोध्या राममंदिर की संरचना

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नटवर गोयल
लखनऊ। निर्माणधीन अयोध्या राममंदिर के प्रथम तल का स्वरूप अब नज़र आने लगा है। जब मंदिर पूर्ण रूप से तैयार हो जाएगा तो ये दुनिया का तीसरा सबसे विशाल मंदिर कहलाएगा। आइए आपको मंदिर की संरचना के बारे में बताते हैं। राममंदिर के भव्य गर्भगृह में जनवरी 2024 में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जानी है। चैत्र राम नवमी पर सूर्य की किरण भगवान के ललाट पर पड़ेगी। इसकी व्यवस्था की जा रही है।

मंदिर की डिज़ाइन
मंदिर का डिजाइन चंद्रकांत सोमपुरा ने अपने बेटों के साथ बनाया है। नागर शैली में बनाए जा रहे इस मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व में रहेगा, जो गोपुरम शैली में होगा। यह द्वार दक्षिण के मंदिरों का प्रतिनिधित्व करेगा। मंदिर का गर्भगृह अष्टकोणीय होगा, जबकि संरचना की परिधि गोलाकार होगी। गर्भगृह का निर्माण मकराना मार्बल से किया जा रहा है। मंदिर 161 फीट ऊंचा होगा, जिसमें पांच गुंबद और एक टावर होगा। मंदिर को तीन मंजिला बनाया जा रहा है। मंदिर में गर्भ गृह की तरह गृह मंडप पूरी तरह से ढका होगा, जबकि कीर्तन मंडप, नृत्य मंडप, रंग मंडप और दो प्रार्थना मंडप खुले रहेंगे। मंदिर के गर्भगृह में लगे 6 खंभे सफेद संगमरमर के हैं, जबकि बाहरी खंभे पिंक सैंडस्टोन से बनाए गए हैं।

प्रथम तल पर राम दरबार
प्रथम तल पर ही रामदरबार की स्थापना की जानी है। यहां रामलला चारों भाईयों व हनुमान जी के साथ विराजमान होंगे। रामदरबार की स्थापना के लिए महापीठ (जहां भगवान विराजेंगे) का निर्माण प्रथम तल पर किया जा रहा है। प्रथम तल पर ढांचे का काम लगभग पूरा हो चुका है। अब स्तंभों पर मूर्तियां और दीवारों को उकेरने का काम तेजी से चल रहा है। मंदिर के गर्भगृह में एक साथ 300 से 400 लोग दर्शन कर सकेंगे।

मंदिर पहुंचने के लिए चढ़नी होगी 30 सीढ़ी
मुख्य मंदिर के लिए 30 सीढ़ियां चढ़कर सिंहद्वार तक का रास्ता तय करना पड़ेगा। इसके बाद श्रद्धालु सिंहद्वार के सामने होंगे। सिंहद्वार की ड्योढी पार करते ही मंदिर में सीधे प्रवेश मिल जाएगा। यह मंदिर का मुख्य भवन है, यह पूरी तरह से बन कर तैयार है। इस पहले भवन को नृत्यमंडप नाम दिया गया है। इसके ऊपर आमलक यानि शिखर का शीर्ष का निर्माण शुरू हो चुका है। इसके बाद श्रद्धालु रंगमंडप में प्रवेश करेंगे। इसके ऊपर का मेहराब दार आमलक को पहले तल के निर्माण के पूरा हो जाने के बाद बनाया जाएगा।
इसके अगल बगल की नक्काशीदार दीवारें स्तंभों के साथ भक्तों को आकर्षित करेंगी । इस भवन के बाद श्रद्धालु सीधे गूढ़ी मंडल में प्रवेश करेंगे। खास ये है इसका आमलक पहले तल नहीं बल्कि दूसरे तल के निर्माण के पूरा हो जाने के बाद किया जाएगा। इसके दाहिने और बाएं हाथ पर प्रार्थना मंडप बनाए गए हैं। इसके आमलक भी गूढी मंडल के आमलक के साथ बनाए जाएंगे। प्रार्थना मंडप से ही आम भक्त दर्शन कर सकेंगे। यहां से गर्भगृह में विराजित रामलला 30 फिट की दूरी पर रहेंगे। मुख्य भवन में 12 दरवाजे लगाए जाएंगे।

मंदिर की मूर्तियां 
मंदिर में भगवान की 2 मूर्तियां रखी जाएंगी। एक वास्तविक मूर्ति होगी, जो 1949 में मिली थी और दशकों तक तंबू में रही है। दूसरी एक बड़ी मूर्ति होगी जिसका निर्माण कार्य चल रहा है। इस मूर्ति के निर्माण के लिए नेपाल से की दो शिलाएं अयोध्या लाई गई थी। ये शिलाएं नेपाल के मुस्तांग जिले में काली गण्डकी नदी के तट से लाई गई थी। इन शिलाओं का वजन 26 टन और 14 टन है। कुल तीन मूर्तियां बन रही है। कौन सी स्थापित होगी, ये अभी तय होना बाकी है। मंदिर में प्रभु राम के पांच वर्ष आयु वाली मूर्ति की स्थापना की जाएगी। इस मूर्ति का स्वरूप बाल्मीकि रामायण से लिया गया है।

घंटा
मंदिर में 2100 किलो का एक विशाल घंटा लगाया जाएगा, जो 6 फुट ऊंचा और 5 फुट चौड़ा होगा। इसके अलावा मंदिर में विभिन्न आकार के 10 छोटे घंटे भी लगाए जाएंगे। जिनका वजन 500, 250, 100 किलो होगा। घंटों का निर्माण पीतल के साथ अन्य धातुओं को मिलाकर किया जाएगा। इन घंटों का निर्माण जलेसर, एटा के लोग कर रहे हैं। एटा का जलेसर पूरी दुनिया मे घुंघरू और घंटी उद्योग के लिए प्रसिद्ध है।

मंदिर के खिड़की दरवाज़े
मंदिर में खूबसूरत आकार में बने खिड़कियां और दरवाजे भी लगाए जाएंगे। मंदिर में लगने वाले सभी दरवाजे और खिड़कियां सागौन की लकड़ी से बनाए जाएंगे। इन लकड़ियों को महाराष्ट्र से मंगवाया गया है। इसके अलावा लकड़ी का काम हैदराबाद के कारीगरों द्वारा किया जाएगा।

मंदिर के चारो ओर का दृश्य
राम मंदिर के चारों ओर आठ एकड़ में निर्माणाधीन परकोटा 48 फिट ऊंची होगी। इस दो मंजिला परकोटे के ऊपरी सतह से श्रद्धालु मंदिर परिसर में प्रवेश कर पाएंगे। परकोटे के बेसमेंट से रामलला के दर्शनार्थियों के निकास का मार्ग बनाया जा रहा है। सहज रूप से दर्शन के लिए प्रवेश और निकासी का मार्ग अलग बनाया जा रहा है। आयताकार परकोटे के चारों ओर 8-8 सौ मीटर लंबा पार वे बनेगा, जिस पर चलकर श्रद्धालु परिक्रमा कर सकेंगे। मुख्य मंदिर से परकोटे की दूरी चारों ओर से 25-25 मीटर तय है।

दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर होगा
अयोध्या का राम मंदिर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर होगा। दुनिया का सबसे विशाल और भव्य मंदिर कंबोडिया में है। अंकोरवाट मंदिर को राजा सूर्य वर्मन द्वितीय के ने 12वीं सदी में बनवाया था। यह 7,20,000 वर्गमीटर (करीब 500 एकड़) के क्षेत्र में फैला हुआ है। जबकि दूसरा बड़ा मंदिर तमिलनाडु के त्रिची में है। श्रीरंगनाथ मंदिर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। यह लगभग 6,31,000 वर्गमीटर के क्षेत्र में स्थित है। अयोध्या का राम मंदिर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर होगा।
(लेखक ऑल इंडिया वैश्य फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री हैं। आधुनिक और प्राचीन वास्तुकला में विशेष रुचि रखते हैं।)

एक ऐसा भी भवन बना है, जहां लोग मृत्यु की कामना से जाते हैं !

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नटवर गोयल
वाराणसी। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई ऐसा भी भवन होगा, जहां लोग अपनी मृत्यु की कामना लेकर जाते होंगे। जो काशी की परंपरा को जानते हैं, उन्हें बहुत अच्छे से पता है। हजारों साल से पूरी दुनिया से लोग काशी आते हैं और यहां रहते हैं कि उनकी मृत्यु काशी में ही हो जाए। ‘काश्यां मरणात् मुक्ति’, ऐसी मान्यता है की काशी में मृत्यु से मुक्ति मिलती है। माना जाता है कि यहां मृत्यु के उपरांत खुद भगवान शिव मणिकर्णिका घाट पर जीव को तारक मंत्र देते हैं, जिससे उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
धार्मिक मान्यता है की महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है। इन्हीं मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए मणिकर्णिका घाट के निकट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में मुमुक्षु भवन का भी निर्माण कराया है। यहां बीमार, आसक्त बुजुर्गों की सेवा नि:शुल्क की जाती है। तीन मंजिला इस भवन में 40 बेड हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी योजना श्रीकाशी विश्वनाथ धाम की बागडोर संभाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सनातन और काशी की धार्मिक मान्यताओं का विशेष ध्यान रखे हुए हैं। काशी में मुमुक्षु भवन का काफी पौराणिक महत्व है। जीवन का अंतिम समय काशी पुराधिपति भगवान शिव के धाम में उनके चरणों में व्यतीत करने को मिले तो लोग अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं। मुमुक्ष भवन से मिली जानकारी के अनुसार अभी तक 41 वृद्ध लोग यहाँ प्रवास कर चुके हैं। जिसमे से 3 बुजुर्गों को काशी विश्वनाथ धाम के मुमुक्ष भवन से मुक्ति मिली है।
मुमुक्षु भवन में एक बार में क़रीब एक महीने तक रहने की व्यवस्था दी जाती है। यहां रहना खाना सभी चीजे नि:शुल्क होती हैं। काशीवास करने आये वृद्धजन यहां नियमित कीर्तन भजन और बाबा के दर्शन करते हैं।
श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में इसके लिए तीन मंजिल का मुमुक्षु भवन बना है। भूतल प्लस दो मंजिल की ये इमारत 1161 वर्ग मीटर में निर्मित है। पहली मंजिल पर महिला एवं दूसरी मंजिल पर पुरुष दोनों के लिए अलग वार्ड है, जबकि पहली मंजिल पर पति पत्नी के साथ रहने की भी अलग से व्यवस्था है। ये ईमारत पूर्व दिशा में गंगा की तरफ बढ़ने पर मंदिर चौक के बाद है। श्री काशी विश्वनाथ धाम के विस्तारीकरण और सौंदर्यीकरण से श्रद्धालुओं को बाबा का सुगम दर्शन होने लगा है। साथ ही धाम में धार्मिक, आध्यात्मिक व सामाजिक गतिविधियों के लिए कई भवनों का निर्माण हुआ है, जिसकी अलग-अलग धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक उपयोगिता है।
(लेखक ऑल इंडिया वैश्य फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री हैं। आधुनिक और प्राचीन वास्तुकला में विशेष रुचि रखते हैं।)

जिस मंदिर में दर्शन करते हैं, कभी गौर किया उसके आर्किटेक्चर पर !

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नटवर गोयल
लखनऊ। मेरी परवरिश उस शहर में हुई, जिसे मंदिरों का शहर कहा जाता है। जहां कण कण में शंकर हैं। मैं बात कर रहा हूं वाराणसी की। इस शहर से ही मेरे अंदर मंदिर जाने के संस्कार पैदा किए और वास्तुकला को समझने की रुचि मेरे अंदर शुरू से थी। मुझको लगता है पिछले कुछ वर्षों में युवाओं में मंदिर जाने की ललक तो पैदा हुई है लेकिन बहुत कम मंदिर की वास्तुकला को समझते होंगे। इसलिए मैं अपने इस लेख में कुछ सामान्य जानकारी साझा कर रहा हूं कि युवा मंदिर की वास्तुकला को भी समझ सकें।
भारतीय स्थापत्य में हिन्दू मन्दिर का विशेष स्थान है। हिन्दू मंदिर में अन्दर एक गर्भगृह होता है, जिसमें मुख्य देवता की मूर्ति स्थापित होती है। गर्भगृह के ऊपर टॉवरनुमा रचना होती है जिसे शिखर या विमान कहते हैं। मन्दिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा के लिये स्थान होता है। इसके अलावा मंदिर में सभा के लिए कक्ष हो सकता है।
मन्दिर शब्द संस्कृत वाङ्मय में अधिक प्राचीन नहीं है। महाकाव्य और सूत्रग्रन्थों में मंदिर की अपेक्षा देवालय, देवायतन, देवकुल, देवगृह आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। मंदिर का सर्वप्रथम उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। शाखांयन स्त्रोत सूत्र में प्रासाद को दीवारों, छत और खिड़कियों से युक्त कहा गया है। प्रारंभिक मंदिरों का वास्तु विन्यास बौद्ध बिहारों से प्रभावित था। इनकी छत चपटी और इनमें गर्भगृह होता था। मंदिरों में रूप विधान की कल्पना की गई और कलाकारों ने मंदिरों को साकार रूप प्रदान करने के साथ ही देहरूप में स्थापित किया। चौथी सदी में भागवत धर्म के अभ्युदय के पश्चात (इष्टदेव) भगवान की प्रतिमा स्थापित करने की आवश्यकता प्रतीत हुई। अतएव वैष्णव मतानुयायी मंदिर निर्माण करने लगे।
साँची का दो स्तम्भयुक्त कमरे वाला मंदिर गुप्तमंदिर के प्रथम चरण का माना जाता है। बाद में गुप्त काल में वृहदस्तर पर मंदिरों का निर्माण किया गया, जिनमें वैष्णव तथा शैव दोनों धर्मो के मंदिर हैं। प्रारम्भ में ये मंदिर सादे थे और इनमें स्तंभ अलंकृत नही थे। शिखरों के स्थान पर छत सपाट होती थी और गर्भगृह में भगवान की प्रतिमा, ऊँची जगती आदि होते थे। गर्भगृह के समक्ष स्तंभों पर आश्रित एक छोटा अथवा बड़ा बरामदा भी मिलने लगा। यही परम्परा बाद के कालों में प्राप्त होती है।
पहले हमें समझना चाहिए कि मंदिर की संरचना के कौन कौन से विशेष हिस्से होते हैं। इनमें शिखर या विमानम्, गर्भगृह, कलश, गोपुरम, रथ, उरुशृंग, मण्डप, अर्धमण्डप, जगति, स्तम्भ, परिक्रमा या प्रदक्षिणा, शुकनास, तोरण, अन्तराल, गवाक्ष, अमलक और अधिष्ठान। भारतीय उपमहाद्वीप तथा विश्व के अन्य भागों में स्थित मन्दिर विभिन्न शैलियों में निर्मित हुए हैं। मंदिरों की कुछ प्रमुख शैलियाँ में द्रविड़ शैली, नागर शैली, बेसर शैली, पगोडा शैली और सन्धार शैली प्रमुख हैं।

नागर शैली :
नागर शैली का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत माला तक देखा जा सकता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार नागर शैली के मंदिरों की पहचान आधार से लेकर सर्वोच्च अंश तक इसका चतुष्कोण होना है। विकसित नागर मंदिर में गर्भगृह, उसके समक्ष क्रमशः अन्तराल, मण्डप तथा अर्द्धमण्डप प्राप्त होते हैं। एक ही अक्ष पर एक दूसरे से संलग्न इन भागों का निर्माण किया जाता है।

द्रविड़ शैली :
यह शैली दक्षिण भारत में विकसित होने के कारण द्रविण शैली कहलाती है। इसमें मंदिर का आधार भाग वर्गाकार होता है तथा गर्भगृह के उपर का भाग पिरामिडनुमा सीधा होता है। जिसमें अनेक मंजिलें होती हैं। इस शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषता यह हे कि ये काफी ऊॅंचे तथा विशाल प्रांगण से घिरे होते हैं। प्रांगण में छोटे-बड़े अनेक मंदिर, कक्ष तथा जलकुण्ड होते हैं। प्रागंण का मुख्य प्रवेश द्वार ‘गोपुरम्’ कहलाता है। चोल काल के मंदिर द्रविड़ शैली के सर्वश्रेष्ठ प्रमाण है।

बेसर शैली :
बेसर का शाब्दिक अर्थ है मिश्रित। नागर और द्रविड़ शैली के मिश्रित रूप को बेसर की संज्ञा दी गई है। यह विन्यास में द्रविड़ शैली का तथा रूप में नागर शैली का होता है। दो विभिन्न शैलियों के कारण उत्तर और दक्षिण के विस्तृत क्षेत्र के बीच सतह एक क्षेत्र बन गया, जहां इनके मिश्रित रूप में बेसर शैली हुई। इस शैली के मंदिर विंध्य पर्वतमाला से कृष्णा नदी तक निर्मित है लेकिन कला का क्षेत्र असीम है।

पगोडा शैली :
पैगोडा शैली नेपाल और इण्डोनेशिया के बाली टापू में प्रचलित हिन्दू मंदिर स्थापत्य है। इस शैली में छतों की शृंखला अनुलम्बित रूप में एक के ऊपर दूसरा रहता है। अधिकांश गर्भगृह भूतल स्तर में रहता है। परन्तु कुछ मन्दिर (उदाहरण: काठमांडू का आकाश भैरव और भीमसेनस्थान मन्दिर) में गर्भगृह दूसरी मंजिल पर स्थापित है। कुछ मन्दिर का गर्भगृह काफी ऊंचाई पर निर्मित होते है (उदाहरण: भक्तपुर का न्यातपोल मन्दिर), जो भूस्थल से करीब 3-4 मंजिल के ऊंचाई पर स्थित होता है। इस शैली में निर्मित प्रसिद्ध मन्दिर में नेपाल का पशुपतिनाथ, बाली का पुरा बेसाकि आदि प्रमुख है।

सन्धार शैली :
इस शैली के मन्दिरों में वर्गाकार गर्भगृह को घेरे हुए एक स्तंभों वाली वीथिका (गैलरी) होती थी। इस वीथिका का उद्देश्य गर्भगृह की प्रदक्षिणा था। इस प्रकार सन्धार शैली में प्रदक्षिणा पथ हुआ करता है।

निरन्धार शैली :
इस शैली के मन्दिरों में प्रद्क्षिणा पथ नहीं होता है।

सर्वतोभद्र शैली :
इस शैली के मन्दिरों में चार प्रवेशद्वार होते हैं, जो चारों मुख्य दिशाओ में होते हैं। इसको घेरे हुए 12 स्तंभों वाला प्रदक्षिणापथ भी होता है। इस प्रकार के मन्दिरों में सभी दिशाओ से प्रवेश मिलता है।(फीचर)
(लेखक ऑल इंडिया वैश्य फेडरेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री हैं। आधुनिक और प्राचीन वास्तुकला में विशेष रुचि रखते हैं।)

जाना का हौ प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ गलियारे में…

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नवल कान्त सिन्हा
काशी विश्वनाथ के बारे में आप सब जानत हौ। आवा आप सबके बतावत हई काशी विश्वनाथ गलियारे के बारे में। विश्वनाथ कॉरिडोर पहुंचाने पर आपका स्वागत सबसे पहले एक बड़का दरवाजा करी. यह दरवाजा उस विश्वनाथ कॉरिडोर का द्वार खोलत हौ, जिसकी परिकल्पना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करले रहलन। इस दरवाजे के आरपार लगभग 50000 वर्ग मीटर में इस इस भव्य कॉरिडोर का निर्माण करले गयल हौ। वाराणसी के काशी विश्वनाथ गलियारे में पूरा का पूरा इतिहास का एक नया पन्ना जुड़ल हौ। करीब ढाई सौ बरस बाद काशी विश्वनाथ का पूरा जीर्णोद्धार प्रधानमंत्री के विजन के अनुसार भयल हौ।

दो भागों में बटल हौ विश्वनाथ कॉरिडोर
विश्वनाथ कॉरिडोर को दो भागों में बटल हौ। मंदिर के मुख्य परिसर को लाल बलुआ पत्थर के द्वारा बनायल गयल हौ। इम्मन 4 बड़े–बड़े गेट लगायल गयल हौ। इके चारों ओर एक प्रदक्षिणा पथ बनायल गयल हौ। उ प्रदक्षिणा पथ पर 22 संगमरमर के शिलालेख लगायल गयल हौ, इन पर काशी की महिमा का वर्णन हौ। काशी विद्वत परिषद् के महामंत्री मुख्य मंदिर परिसर के इस भाग के बारे में तफ्सील से बतावत हव्वन कि “इसमें 22 शिलालेख ऐसे लगायल गयल हौ। इन पर भगवान विश्वनाथ से संबंधित स्तुतियां हईं। इकरे साथ आदि शंकराचार्य ने जे स्तुतियों के गावत रहलन, उनकर उल्लेख हौ। अन्नपूर्णा स्त्रोत हौ। जिन स्तुतियों को भगवान शंकर ने गावत रहलन, उहौ हौ। साथ ही भगवान शिव के 56 विनायक, द्वादश आदित्य का उल्लेख हौ। काशी में पंचनद हौ, काशी में पंचतीर्थ हौ, काशी में भगवान शिव की बारात कैसे निकलत हौ, भगवान विश्वनाथ काशी में पहली बार कब अईलन, इन सबकर जानकारी हौ। भगवान शिव पार्वती का विवाह का उल्लेख हौ, ऐसे 24 पैनल बनायल गयल हौ।

सिर्फ एक दिन खुलता है नागचंद्रेश्वर महाकाल मंदिर उज्जैन

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नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर है। जो साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी पर ही खुलता है। ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं। यहां 11वीं सदी की प्रतिमा में फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं।
कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।

क्या है पौराणिक मान्यता :
सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया।

यह भी पढ़ें : कुरुंगलेश्वर शिव मंदिर कोयमबेडु चेन्नई तमिलनाडु | Kurungaleswarar Shiva Temple koyambedu Chennai Tamil Nadu

मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सा‍‍‍न्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो, अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।
यह मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिं‍धिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए। लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है।

सदियों बाद अयोध्या में झूले पर सवार हुए रामलला

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अयोध्या. सदियों बाद चांदी के झूले पर सवार हुए भगवान श्री रामलला सरकार। आज जन्मभूमि के अस्थायी मन्दिर परिसर में झूले पर श्री रामलला सरकार संग चारों भाई ले रहे हैं झूलनोत्सव का आनंद.

रामनगरी अयोध्या में झूला मेला चल रहा है. कोरोना के चलते इस साल ये झूला महोत्सव धूमधाम से नहीं मनाया जा रहा है. इस अवसर पर परंपरा रही है कि रामलला को झूला झुलाया जाता है. यह क्रम रक्षाबंधन तक चलता है. प्रभु को गीत भी सुनाए जाते हैं. इस बार राम जन्मभूमि परिसर में रामलला अस्थाई मंदिर में 498 वर्षों के बाद चांदी के झूले में झूल रहे हैं. यह 21 किलो चांदी से बना है. राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 21 किलो चांदी से भगवान श्रीराम का झूला बनवाया गया है. सावन पूर्णिमा तक रामलला चांदी के झूले में राम भक्तों को दर्शन देंगे.

प्रगट संतोषी माता मंदिर जोधपुर राजस्थान | Pragat Santoshi Mata Temple Jodhpur Rajasthan

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राजस्थान के जोधपुर में प्रगट संतोषी माता का मंदिर है। इस मंदिर को देखकर ऐसा लगता है जैसे मुख्य गर्भगृह की चट्टानें शेषनाग की भांति माता की मूर्ति पर छाया कर रही हों। यहां माता को लाल सागर वाली मैया कहा जाता है क्योंकि पहाड़ों के बीच लाल सागर नाम का एक सरोवर है। मंदिर में अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित है।

कुरुंगलेश्वर शिव मंदिर कोयमबेडु चेन्नई तमिलनाडु | Kurungaleswarar Shiva Temple koyambedu Chennai Tamil Nadu

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तमिलनाडु के प्रमुख मंदिरों में से एक मंदिर है कुरुंगलेश्वर शिव मंदिर। यहां एक खंभे पर उभारी गयी श्रीराम को अपने कांधे पर उठाए मूर्ति लोगों को आश्चर्य में डाल देती है। दरअसल चेन्नई के पास कोयमबेडु में शिवजी को समर्पित कुरुंगलेश्वर मंदिर की इस मूर्ति को देख लोगों के मन में यह सवाल आता है कि आखिर शंकर जी के इस मंदिर में भगवान राम और हनुमान जी इतनी प्रमुखता से क्यों हैं?


इसका जवाब जानने के लिए इस स्थान यानी कोयमबेडु का अर्थ आपको जानना होगा। ‘को’ का अर्थ हुआ घोड़ा, ‘अम्बु’ मतलब तीर और पेडु का आशय बाड़ या फेन्स। माना जाता है कि जब श्रीराम अश्वमेध यज्ञ करा रहा थे तो उनके घोड़ों को इसी स्थान पर लव और कुश ने रोका था। लव-कुश ने इन घोड़ों को तीरों की बाड़ लगाकर अपने कब्जे में ले लिया था। अब एक अन्य सवाल आपके मन में आया होगा कि तो फिर इस स्थान पर शंकर जी का मंदिर क्यों? तो इसका जवाब यह है कि शंकर जी चाहते थे कि रामजी के परिवार का मिलन हो जाए और पिता-पुत्रों के बीच युध्द की स्थिति न आये। वाल्मीकि जी ने इसी दौरान लव-कुश को ज्ञान दिया था कि श्रीराम उनके पिता हैं। फिर वाल्मीकि जी ने ही यहां इस शिव मंदिर की स्थापना की। चोल शासन के दौरान यह मंदिर भव्य बना।

अगस्त्येश्वर शिव मंदिर तालकावेरी कोडगु कर्नाटक | Agastheeswarar Shiva Temple Talakaveri Kodagu Karnataka

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अगस्त्येश्वर मंदिर कर्नाटक के ताल कावेरी में स्थित है। कोडागु जिले में कूर्ग के पास ब्रह्मगिरी पहाड़ियों में ताल कावेरी में स्थित यह भगवान शिव को समर्पित मंदिर है। माना जाता है कि तालकावेरी कावेरी नदी का उद्गम स्रोत है।

भगवान अगस्त्येश्वर और महा गणपति के साथ-साथ देवी कावेरीम्मा यहां मंदिर की मुख्य देवी हैं। काबिनी और कावेरी नदियों के संगम पर स्थित मंदिर और स्पाटिका सरोवर, जो कि तिरुमकुदलु नरसीपुरा के रूप में जाना जाता है, भगवान अगस्त्येश्वर को समर्पित हैं।

अमरलिंगेश्वर स्वामी गुफा मंदिर अमरावती आंध्र प्रदेश | Amarlingeshwara Swamy Cave Temple Amravati Andhra Pradesh

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आंध्र प्रदेश के अमरावती में कृष्णा नदी के तट पर भगवान शिव को समर्पित अमरलिंगेश्वर स्वामी गुफा मंदिर है।

माना जाता है कि यहां पर शिवलिंग इंद्र ने स्थापित किया था। ये क्षेत्र अमररमा कहलाता है, जो आंध्र प्रदेश के पंचरमा क्षेत्र में से एक है। चार अन्य सोमरमा, कुमाररमा, दृक्ष्यरमा और क्षीररमा हैं।