श्री रंगनाथस्वामी मंदिर श्रीरंगम तिरुचिरापल्ली तमिलनाडु | Sri Ranganathaswamy Temple Srirangam Tiruchirappalli Tamil Nadu

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क्या आपको पता है कि भारत का सबसे बड़ा मंदिर कौन सा है? क्या आप जानते हैं दुनिया का सबसे क्रियाशील मंदिर ( यानी की जहां पूजा भी होती है) कौन सा है? तो ये यह मंदिर है श्रीरंगम श्री रंगनाथस्वामी मंदिर है. इसका क्षेत्रफल लगभग 6,31,000 वर्ग मी (156 एकड़) है. श्रीरंगम सबसे बड़ा क्रियाशील मंदिर माना जाता है क्योंकि अंगकोर वाट दुनिया का सबसे बड़ा लेकिन गैर-क्रियाशील हिन्दू मंदिर है.
श्रीरंगम का यह मन्दिर श्री रंगनाथ स्वामी (विष्णुजी) को समर्पित है, जहां विष्णुजी शेषनाग शैय्या पर विराजे हुए हैं. यह द्रविण शैली में निर्मित है. श्रीरंगम मंदिर का परिसर 7 संकेंद्रित दीवारी अनुभागों और 21 गोपुरम से बना है. मंदिर के गोपुरम को राजगोपुरम कहा जाता है और यह 236 फीट (72 मी) है, जो एशिया में सबसे लम्बा है. मंदिर का गठन सात उन्नत घेरों से हुआ है, जिसका गोपुरम अक्षीय पथ से जुड़ा हुआ है, जो सबसे बाहरी प्रकार की तरफ सबसे ऊंचा और एकदम अन्दर की तरफ सबसे नीचा है. यह मंदिर तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में कावेरी नदी के तट पर स्थित है. यहाँ तीन प्रमुख मंदिर हैं- आदि रंगा (श्रीरंगापट्टना का रंगनाथस्वामी मंदिर), मध्य रंगा (शिवानासमुद्र का रंगनाथस्वामी मंदिर) और अंत्य रंग (श्रीरंगम का रंगनाथस्वामी मंदिर).

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, वैदिक काल में गोदावरी नदी के तट पर गौतम ऋषि का आश्रम था. उस समय अन्य क्षेत्रों में जल की काफी कमी थी. एक दिन जल की तलाश में कुछ ऋषि गौतम के आश्रम जा पहुंचे. अपने यथाशक्ति अनुसार गौतम ऋषि ने उनका आदर सत्कार कर उन्हें भोजन कराया. परंतु ऋषियों को उनसे ईर्ष्या होने लगी. उर्वर भूमि की लालच में ऋषियों ने मिलकर छल द्वारा गौतम ऋषि पर गोहत्या का आरोप लगा दिया. साथ उनकी सम्पूर्ण भूमि हथिया ली. इसके बाद गौतम ऋषि ने श्रीरंगम जाकर श्री रंगनाथ विष्णुजी की आराधना और सेवा की. गौतम ऋषि के सेवा से प्रसन्न होकर श्री रंगनाथ ने उन्हें दर्शन दिया और पूरा क्षेत्र उनके नाम कर दिया. गौतम ऋषि के आग्रह पर स्वयं ब्रह्माजी ने इस भव्य मंदिर का निर्माण किया. कहा जाता है कि भगवान श्रीराम के वनवास काल में इस मंदिर में पूजा करते थे. रावण पर श्री राम की विजय के बाद मंदिर परिसर को राजा विभीषण को सौंप दिया गया. भगवान विष्णु ने रंगनाथ के रूप में निवास करने की अपनी इच्छा को व्यक्त की. कहा जाता है कि तबसे भगवान् विष्णु श्री रंगनाथस्वामी के रूप में यहां वास करते हैं.
मंदिर में एक 1000 साल पुरानी ममी भी संरक्षित है. मंदिर की भव्यता और विष्णु के रंगनाथ रूप के दर्शन के लिए भारत से ही नहीं, बल्कि विश्वभर से लाखों की संख्या में सैलानी आते हैं. जितना खूबसूरत इस मंदिर दिखने में है, उतना ही दिलचस्प इसका इतिहास और निर्माण गाथा भी है. वैष्णव संस्कृति के दार्शनिक गुरु रामानुजाचार्य से भी इस मंदिर का एक गहरा और खास संबंध है. श्री रामानुजाचार्य अपनी वृद्धावस्था में यहां आ गए थे. करीब 120 वर्ष की आयु तक श्रीरंगम में रहे थे. कुछ समय बाद भगवान श्री रंगनाथ से देहत्याग की अनुमति ली, तदोपरांत अपने शिष्यों के सामने देहावसान की घोषणा कर दी. माना जाता है कि भगवान रंगनाथ स्वामी की आज्ञा के अनुसार ही उनके मूल शरीर को मंदिर में दक्षिण पश्चिम दिशा के एक कोने में रखा गया है. यह मंदिर दुनिया में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां एक वास्तविक मृत शरीर को हिंदू मंदिर के अंदर कई वर्षों से रखकर पूजा जाता है. मंदिर में रामानुजाचार्य के 1000 वर्ष पूर्व के मूल शरीर को संभाल कर रखा गया है.
आमतौर पर ममी निद्रा रूप में होती हैं लेकिन रामानुजाचार्य की ममी सामान्य बैठने की स्थिति यानी उपदेश मुद्रा में प्रतीत होती है. मंदिर में उनकी मूर्ति के पीछे उनकी ममी को रखा गया है. इस ममी पर केवल चंदन और केसर का लेप लगाया जाता है. इसके अलावा किसी अन्य रासायनिक पदार्थ का उपयोग इस ममी को संरक्षित करने के लिए नहीं किया जाता है. पिछले 878 वर्षों से केवल कपूर, चंदन और केसर के मिश्रण को दो साल में एक बार रामानुजाचार्य की ममी पर लगाया जाता है. इस लेप के कारण शरीर केसरिया रंग में परिवर्तित हो चुका है.
तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में स्थित होने के कारण श्रीरंगम मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है. मंदिर की खास बात यह भी है कि यह गोदावरी और कावेरी नदी के मध्य बना हुआ है. हर मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को यहां रंग जयंती उत्सव का आयोजन होता है, जो कि आठ दिन तक चलता है. मान्यता है कि कृष्ण दशमी के दिन कावेरी नदी में स्नान करने से आठ तीर्थ में नहाने के समान फल प्राप्त होता है. मंदिर को धरती के बैकुंठ के नाम से भी जाना जाता है.
भगवान यहां सर्वप्रिय मुद्रा यानि शयन की मुद्रा में है. यह मंदिर भगवान विष्णु के 108 मुख्य मंदिरों में से एक है. यह इकलौता मंदिर है, जिसकी प्रशंसा तमिल भक्ति आंदोलन के सभी संतों के गीतों में मिलती है. यहां पर प्रत्येक दिन 200 भक्तों को मुफ्त में भोजन कराने की रीति है. आनंदम योजना के अंतर्गत यहां भोजन परोसा जाता है. फ्रांसीसी सैनिकों द्वारा कर्नाटक युद्ध के दौरान मुख्य देवता की मूर्ति की आंख से हीरा चोरी हो गया था. 189.62 कैरेट (37.924 ग्रा) का ऑरलोव हीरा मॉस्को क्रेमलिन के डायमंड फंड में आज भी संरक्षित है.
इस मंदिर का निर्माण किसने कराया इस बारे में कोई सटीक तथ्य तो नहीं मिले हैं. फिर भी एक कथा के अनुसार, चोल वंश के एक राजा को यहां भगवान विष्णु की मूर्ति घने जंगल में एक तोते का पीछा करते हुए मिली थी. फिर उसी राजा ने ही इसका निर्माण कराया था. वहीं दूसरी ओर मंदिर में मौजूद शिलालेखों में चोल, पांड्य, होयसल और विजयनगर राजवंशों के समय का प्रभाव दिखाई देता है. इसलिए माना जाता है कि दक्षिण भारत में शासन करने वाले अधिकांश राजवंशों द्वारा इस मंदिर का निर्माण और विस्तार कराया गया होगा.
यह मंदिर वास्तुकला की तमिल शैली में बनाया गया है. वैसे तो मंदिर ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है लेकिन मंदिर में मुख्य देवता की मूर्ति स्टुको से बनी हुई है. इसके अलावा यहां अन्य देवी-देवताओं को समर्पित देवालय भी दिखते हैं. वास्तुकला के लिहाज से यहां तमिल शैली की बहुलता देखने को मिलती है. मंदिर का जिक्र संगम युग ( 1000 ई. से 250 ई.) के तमिल साहित्य और शिलप्पादिकारम (तमिल साहित्य के पांच श्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक) में भी मिलता है. 3 नंवबर, 2017 को इस मंदिर को बड़े पैमाने पर पुननिर्माण के बाद सांस्कृतिक विरासत संरक्षण हेतु ‘यूनेस्को एशिया प्रशांत पुरस्कार मेरिट, 2017’ भी मिला था.
(लेख इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर है.)

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Address :
Sri Ranganathar Swamy Temple,
Srirangam, Tiruchirappalli – 620 006.
Tamil Nadu, India.
Phone: +91 431 -2432246
Email: srirangam@tnhrce.com
Email: srirangamtemple@gmail.com

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