जागेश्वर धाम शिव मंदिर अल्मोड़ा उत्तराखंड 360 Degree VR Video

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पूरी दुनिया में इतने सारे अद्भुद अलौकिक मंदिर है कि सबकी गिनती में ही बरसों लग जाएँ। केवल उत्तरखंड को ही ले लीजिये, एक से एक खूबसूरत और पवित्र मंदिर हैं कि जिनके बारे में सुनकर ही आपका मन श्रद्धा से भर जाएगा। ऐसे ही एक मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं। वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है उत्तराखंड का जागेश्वर  धाम मंदिर।
ये भगवान शिव को समर्पित मंदिरों का एक समूह है। यहां के मंदिर हरे पहाड़ों कि पृष्ठभूमि और जटा गंगा धारा कि  गड़गड़ाहट के साथ बहुत खूबसूरत और सुंदर दिखते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, मंदिर गुप्त और पूर्व मध्य युग के बाद का और 2500 वर्ष प्राचीन है। मंदिरों के पत्थरों, पत्थर की मूर्तियों और वेदों पर नक्काशी मंदिर का मुख्य आकर्षण है। मंदिर का स्थान ध्यान के लिए भी आदर्श है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 35 किलोमीटर दूर स्थित जागेश्वर धाम का प्राचीन मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहां लगभग 250 मंदिर हैं, जिनमें से एक ही स्थान पर छोटे-बडे 224 मंदिर हैं।

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उत्तर भारत में गुप्त साम्राज्य के दौरान हिमालय की पहाड़ियों के कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरीराजा थे। जागेश्वर मंदिरों का निर्माण भी उसी काल में हुआ। इसी कारण मंदिरों में गुप्त साम्राज्य की झलक भी दिखलाई पड़ती है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार इन मंदिरों के निर्माण की अवधि को तीन कालों में बांटा गया है। कत्यूरीकाल, उत्तर कत्यूरीकाल और चंद्र काल। बर्फानी आंचल पर बसे हुए कुमाऊं के इन साहसी राजाओं ने अपनी अनूठी कृतियों से देवदार के घने जंगल के मध्य बसे जागेश्वर  में ही नहीं वरन् पूरे अल्मोड़ा जिले में चार सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण किया, जिसमें से जागेश्वर  में ही लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण लकड़ी और सीमेंट की जगह पत्थर की बड़ी बड़ी शिलाओं से किया गया है। दरवाजों की चौखटें देवी-देवताओं की प्रतिमाओं से अलंकृत हैं। मंदिरों के निर्माण में तांबे की चादरों और देवदार की लकड़ी का भी प्रयोग किया गया है।
जागेश्वर  को पुराणों में हाटकेश्वर और भू-राजस्व लेखा में पट्टी पारूणके नाम से जाना जाता है। पतित पावन जटागंगा के तट पर समुद्रतल से लगभग 6200 फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र जागेश्वर  की नैसर्गिक सुंदरता अतुलनीय है। कुदरत ने इस स्थल पर अपने अनमोल खजाने से खूबसूरती जीभर कर लुटाई है। लिंग पुराण में जागेश्वर  को भगवान विष्णु द्वारा स्थापित बारह ज्योतिर्लिगोंमें से एक बताया गया है। पुराणों के अनुसार शिवजी तथा सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर  मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं, जिसका भारी दुरुपयोग हो रहा था। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य जागेश्वर  आए और उन्होंने महामृत्युंजय में स्थापित शिवलिंग को कीलित करके इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। शंकराचार्य जी द्वारा कीलित किए जाने के बाद से अब यहां दूसरों के लिए बुरी कामना करने वालों की मनोकामनाएं पूरी नहीं होती, केवल यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं।
यहाँ पत्थर की मूर्तियाँ और नक्काशी मंदिर का मुख्य आकर्षण है। महामृत्युंजय मंदिर यहां का सबसे पुराना है, जबकि दंडेश्वर मंदिर सबसे बड़ा मंदिर है। इसके अलावा भैरव, माता पार्वती, केदारनाथ, हनुमानजी, दुर्गाजी के मंदिर भी विद्यमान हैं। हर साल यहां सावन के महीने में श्रावणी मेला लगता है। देश ही नहीं विदेशी भक्त भी यहां आकर भगवान शंकर का रूद्राभिषेक करते हैं। यहां रूद्राभिषेक के अलावा, पार्थिव पूजा, कालसृप योग की पूजा, महामृत्युंजय जाप जैसे पूजन किए जाते हैं। जागेश्वर  मंदिर वास्तुकला का शानदार उदाहरण है। इन मंदिरों को मूलतः बड़ी शिलाओं से निर्मित किया गया है। इस धाम का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में भी मिलता है। देवदार के घने जंगलों के बीच बसे इस धाम की सौंदर्यता भक्तों को बरबस ही अपनी तरफ खींचती है।

Address:
Jageshwar Dham Temples
Uttarakhand 263623

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