श्री अक्षय वट मंदिर प्रयागराज | पातालपुरी मंदिर | इलाहाबाद | उत्तर प्रदेश | भारत

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प्रयागराज में संगम तट पर स्थित अकबर के किले के अंदर पौराणिक अक्षयवट वृक्ष का संबंध सृष्टि की रचना से जुड़ा माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पृथ्वी पर प्रलय के दौरान जब सब कुछ जलमग्न हो जाता है, उस दौरान अक्षय वट वृक्ष कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। कहते हैं कि इसी अक्षय वट के एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। अक्षय शब्द का अर्थ ही होता है, जिसका कभी क्षय ना हो। जबकि वट का अर्थ होता है बरगद। इसे मनोरथ और मोक्षदायक वृक्ष भी कहा गया है।
मान्यता है कि सृष्टि की रचना को सुरक्षित रखने के लिए भगवान ब्रह्मा जी ने पातालपुरी मंदिर में बहुत बड़ा यज्ञ किया था। इस यज्ञ में पुरोहित के रूप में भगवान विष्णु, यजमान के रूप में भगवान शिव शामिल हुए थे। यज्ञ के पश्चात् इन तीनों देवताओं की शक्ति पुंज से एक वृक्ष उत्पन्न हुआ, जिसे अक्षय वट कहते हैं। संगम तट पर स्थित इस अक्षय वट वृक्ष के बारे में सबसे पहले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 644 ई में वर्णन किया है। कहा जाता है कि भगवान राम और सीता ने वन जाते समय इस वट वृक्ष के नीचे तीन रात तक निवास किया था।
यहाँ ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित वो शूल टंकेश्वर शिवलिंग भी है। शूल टंकेश्वर मंदिर में जलाभिषेक का जल सीधे अक्षय वट वृक्ष की जड़ में जाता है। वहां से जमीन के अंदर से होते हुए सीधे संगम में मिलता है। ऐसी मान्यता है कि अक्षय वट वृक्ष के नीचे से ही अदृश्य सरस्वती नदी भी बहती है। संगम स्नान के बाद अक्षय वट का दर्शन और पूजन यहां वंशवृद्धि से लेकर धन-धान्य की संपूर्णता तक की मनौती पूर्ण होती है।
सीता जी से सम्बंधित एक कथा भी है। बताया जाता है, जब राजा दशरथ की मृत्यु के बाद पिंड दान की प्रक्रिया आई तो भगवान राम सामान इकट्ठा करने चले गए। उस वक्त देवी सीताजीअकेली  बैठी थी, तभी दशरथ जी प्रकट हुए और बोले की भूख लगी है, जल्दी से पिंडदान करो। सीता कुछ नहीं सूझा। उन्होंने अक्षय वट के नीचे बालू का पिंड बनाकर राजा दशरथ के लिए दान किया। उस दौरान उन्होंने ब्राह्मण, तुलसी, गौ, फाल्गुनी नदी और अक्षय वट को पिंडदान से संबंधित दान दक्षिणा दिया। जब राम जी पहुंचे तो सीता ने कहा कि पिंड दान हो गया। दोबारा दक्षिणा पाने के लालच में नदी ने झूठ बोल दिया कि कोई पिंड दान नहीं किया है। लेकिन अक्षय वट ने झूठ नहीं बोला और रामचंद्र की मुद्रा रूपी दक्षिणा को दिखाया। इसपर सीता जी ने प्रसन्न होकर अक्षय वट को आशीर्वाद दिया। कहा कि संगम स्नान करने के बाद जो कोई अक्षय वट का पूजन और दर्शन करेगा। उसी को संगम स्नान का फल मिलेगा अन्यथा संगम स्नान निरर्थक हो जाएगा।
पातालपुरी मंदिर के अंदर अक्षयवट, धर्मराज, अन्नपूर्णा विष्णु भगवान, लक्ष्मी जी, श्री गणेश गौरी, शंकर महादेव, दुर्वासा ऋषि बाल्मीकि, प्रयागराज, बैद्यनाथ, कार्तिक स्वामी, सती अनुसुइया, वरुण देव, दंड पांडे महादेव काल भैरव ललिता देवी, गंगा जी, जमुना जी, सरस्वती देवी, नरसिंह भगवान, सूर्यनारायण, जामवंत, गुरु दत्तात्रेय, बाणगंगा, सत्यनारायण, शनि देव, मार्कंडेय ऋषि, गुप्त दान, शूल टंकेश्वर महादेव, देवी पार्वती, वेणी माधव, कुबेर भंडारी, आरसनाथ-पारसनाथ, संकट मोचन हनुमान जी, कोटेश्वर महादेव, राम- लक्ष्मण सीता, नागवासुकी दूधनाथ, यमराज, सिद्धिविनायक एवं सूर्य देव की मूर्ति स्थापित है।

निकटवर्ती शहर : प्रयागराज
राज्य : उत्तर प्रदेश
देश : भारत
पता :
इलाहाबाद किला, प्रयागराज
उत्तर प्रदेश, 211005
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