नवल कान्त सिन्हा
पाकिस्तान के सिंध प्रांत में एक शहर है उमेरकोट. पहले इस शहर का नाम अमरकोट था. देश के बंटवारे के बाद जब पाकिस्तान बना तो यह शहर पाकिस्तान के हिस्से में चला गया. फिर सिंध के स्थानीय शासक उमेर सुमरो के नाम पर इस शहर का नाम उमरकोट हो गया. इस शहर के संस्थापक राणा अमर सिंह थे. इन्होंने ही ग्यारहवीं सदी में यहाँ किला बनवाया था, जो कि अब भी इस शहर की पहचान है. इसी किले में अकबर का जन्म हुआ था. शहर में राना जहांगीर गोध के पास प्रसिद्ध अमरकोट शिव मंदिर है. यह इस इलाके के सर्वाधिक प्राचीन मंदिरों में से एक है. ये उन चंद मंदिरों में से एक है, जहाँ आज भी महाशिवरात्रि पर तीन दिवसीय मेले के आयोजन होता है और लाखों लोगों की भीड़ यहाँ इकट्ठा होती है.
कहा जता है कि हज़ारों साल पहले एक ग्वालपालक यहाँ गायों की सेवा करता था. इस इलाके के एक बड़े हिस्से में घास लगी हुई थी. लेकिन उसने गौर किया कि एक गाय यहाँ से चली जाती है और किसी दूसरे स्थान पर दूध देकर आ जाती है. उसने इस गाय पर नज़र रखनी शुरू की तो पाया वो वहां से जाती है और फिर जमीन से उभरे हुए एक पत्थर पर दूध देती है. हकीक़त समझने के लिए उसने अन्य लोगों को बुलाया. लोगों ने देखा तो वो पत्थर वास्तव में शिवलिंग था. आश्वस्त होने के बाद यहाँ पर शिव मंदिर का निर्माण किया गया.
उमरकोट का यह मंदिर पाकिस्तान के सुन्दर मंदिरों में गिना जाता है और आज भी सुरक्षित है. ये मंदिर अट्ठासी एकड़ की जगह में फैला हुआ है. इसका आकार राजस्थान के मंदिरों जैसा है. मंदिर का मुख्य स्थल 80 x 40 फुट का है. गर्भगृह बेहद ही सुन्दर है. इसकी शीशे की नक्काशी लोगों को चकाचौंध कर देती है. मंदिर की बाहरी दीवारें केसरियां रंग की है तो मंदिर वर्तमान स्वरुप में क्रीम रंग की टाइल्स से सुसज्जित है. मंदिर चारों तरफ से चार फुट की दीवार से घिरा हुआ है. बताया जाता है कि हुमायूं भी यहाँ आ चुका है. इसकी मंदिर की सबसे अनूठी बात तो ये है कि लोगों का मानना है इसके शिवलिंग का आकार बढ़ता रहता हैं.
इस मंदिर के पीछे एक दुर्गा मंदिर भी है. साथ इस मंदिर में भी दुर्गा जी की प्रतिमा लगी हुई है. यहाँ के प्रमुख महंतों में हरि, चंदूमल, भगत पंजूमल और भगत विंजराज स्वामी रहे हैं. भगत विंजराज स्वामी थार के सबसे प्रमुख साधुओं में रहे हैं और वो बहुत लोकप्रिय भी थे. 1979 में नवरात्र के तीसरे दिन उनकी हत्या कर दी गयी थी. विंजराज स्वामी जी अपनी आध्यात्मिक उपचार की शक्तियों के चलते बहुत प्रसिद्ध थे. विंजराज स्वामी महाराज पलकर बाबा के उत्तराधिकारी थे, जो यहाँ 1930 से लेकर 1965 तक मुख्य पुजारी थी. उन्होंने अपने गुरु के आदेश की पालन किया था और नेपाल से यहाँ आये थे. यहाँ के पुजारी महाराज ज्ञान पुरी बताते हैं कि एक ज़माने में इस इस इलाके को शिव मंदिर गाँव कहाँ जाता था. उस समय छोर्वा नदी इस टीले के चारो ओर बहती थी. यहाँ असाध्य रोगों की मुक्ति की और संतान की चाह में मुसलमान भी आते हैं. यहाँ काम करने वाले कई मुसलमान भी हैं. अक्सर यहाँ पाकिस्तानी सेना के अफसरों के बच्चे भी दर्शन करने आते हैं. पुराने पाकिस्तान सैन्य अफसरों की आस्था इस मंदिर की ओर तब हुई कि जब 1965 की लड़ाई के दौरान पाक सैनिक इस मंदिर को ध्वस्त करने की मंशा से यहाँ आये लेकिन उस समय न जाने कहाँ से यहाँ भारी संख्या में सांप आ गए और उन सबको वापस लौटना पड़ा.