भीमाशंकर मोटेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग मंदिर काशीपुर उत्तराखंड | Bhimashankar Moteshwar Mahadev Jyotirlinga Kashipur Uttarakhand

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(भारतवर्ष में प्रकट हुए भगवान शंकर के बारह ज्योतिर्लिंग में श्री भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का छठा स्थान हैं। इस ज्योतिर्लिंग में कुछ मतभेद हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में ‘डाकिन्यां भीमशंकरम्’ लिखा है, जिसमें ‘डाकिनी’ शब्द से स्थान का स्पष्ट उल्लेख नहीं हो पाता है। तीन मंदिरों को भीमशंकर ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इनमें से एक मुम्बई से पूरब और पुणे से उत्तर भीमा नदी के तट पर अवस्थित है। इसके अलावा शिव पुराण के अनुसार भीमशंकर ज्योतिर्लिंग असम प्रान्त के कामरूप जनपद में गुवाहाटी के पास ब्रह्मरूप पहाड़ी पर स्थित है। कुछ लोग उत्तराखंड प्रदेश के उधमसिंह नगर ज़िले के काशीपुर में ‘उज्जनक’ स्थान पर स्थित भगवान शिव के विशाल मन्दिर को भी भीमशंकर ज्योतिर्लिंग कहते हैं। हालांकि सर्वमान्य मंदिर पुणे के निकट वाले को माना जाता है।)

महाभारत कालीन महादेव मंदिर का शिवलिंग 12वां उप ज्योतिर्लिंग है। शिवलिंग की मोटाई अधिक होने के कारण यह मोटेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात है। स्कंद पुराण में भगवान शिव ने कहा कि जो भक्त कांवड़ कंधे पर रखकर हरिद्वार से गंगा जल लाकर यहां चढ़ाएगा, उसे मोक्ष मिलेगा। इसी मान्यता के चलते मन्नत पूरी होने पर यहा लोग कांवड़ चढ़ाते हैं।
अमर उजाला ने एक लेख में लिखा कि चैती मैदान में महादेव नगर के किनारे मोटेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। यहां रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु पूजा करने आते हैं। हर साल महाशिवरात्रि पर्व पर यहां भव्य मेला लगता है। यह शिवलिंग स्थापित नहीं बल्कि जमीन से टिका है। कई लोगों ने इसकी गहराई नापने की कोशिश की लेकिन नहीं नाप सके। लोगों का अनुमान है कि शिवलिंग की गहराई लगभग 30 फुट है। 1942-43 में मंदिर के भूतल में भगदड़ मचने से तीन-चार लोगों की मौत हो गई थी। तब से भूतल बंद कर दिया गया। अब ऊपरी मंजिल पर मंदिर है। पुजारी राघवेंद्र नागर ने बताया यह मंदिर महाभारत कालीन हैं। मान्यता है कि गुरु द्रोणाचार्य गोविषाण में कौरव-पांडवों को शिक्षा दे रहे थे, तभी द्रोणाचार्य को शिवलिंग दिखाई दिया। तब भीम ने वहां पर मंदिर बनाकर द्रोणाचार्य को गुरुदक्षिणा में दिया। एक समय में इस मंदिर के चारों ओर 120 शिव मंदिर थे। गुजराती ब्राह्मण नागर परिवार नौ पीढ़ियों से मंदिर की सेवा कर रहे हैं। बुक्शा जनजाति के लोगों का महादेव कुल देवता हैं। पहले मंदिर का फर्श पीतल का था। एक श्रद्धालु ने इसे गलाकर उसका घंटा बनाया। उसके स्थान पर जयपुर से बैलगाड़ियों से मार्बल का पत्थर मंगाकर लगाया है। शायद यह पहला मंदिर है, जिसकी दीवारें अंदर से कई कोणों में है। श्रद्धालुओं ने कई बार मंदिर का जीर्णोद्धार किया। 1980 में सेठ मूलप्रकाश की मन्नत पूरी होने पर उन्होंने संपूर्ण मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया।
कहा जाता है कि कुंभकर्ण के एक पुत्र का नाम भीम था। कुंभकर्ण को कर्कटी नाम की एक महिला पर्वत पर मिली थी। उसे देखकर कुंभकर्ण उस पर मोहित हो गया और उससे विवाह कर लिया। विवाह के बाद कुंभकर्ण लंका लौट आया, लेकिन कर्कटी पर्वत पर ही रही। कुछ समय बाद कर्कटी को भीम नाम का पुत्र हुआ। जब श्रीराम ने कुंभकर्ण का वध कर दिया तो कर्कटी ने अपने पुत्र को देवताओं के छल से दूर रखने का फैसला किया। बड़े होने पर जब भीम को अपने पिता की मृत्यु का कारण पता चला तो उसने देवताओं से बदला लेने का निश्चय कर लिया।
भीम ने ब्रह्मा जी की तपस्या करके उनसे बहुत ताकतवर होने का वरदान प्राप्त कर लिया। कामरूपेश्वप नाम के राजा भगवान शिव के भक्त थे। एक दिन भीम ने राजा को शिवलिंग की पूजा करते हुए देख लिया। भीम ने राजा को भगवान की पूजा छोड़ उसकी पूजा करने को कहा। राजा के बात न मानने पर भीम ने उन्हें बंदी बना लिया। राजा ने कारागार में ही शिवलिंग बना कर उनकी पूजा करने लगा। जब भीम ने यह देखा तो उसने अपनी तलवार से राजा के बनाए शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया।
ऐसा करने पर शिवलिंग में से स्वयं भगवान शिव प्रकट हो गए। भगवान शिव और भीम के बीच घोर युद्ध हुआ, जिसमें भीम की मृत्यु हो गई। फिर देवताओं ने भगवान शिव से हमेशा के लिए उसी स्थान पर रहने की प्रार्थना की। देवताओं के कहने पर शिव लिंग के रूप में उसी स्थान पर स्थापित हो गए। इस स्थान पर भीम से युद्ध करने की वजह से इस ज्योतिर्लिंग का नाम भीमशंकर पड़ गया।

Address:
Bhimashankar Moteshwar Mahadev Jyotirlinga
Arya Nagar, Kashipur,
PIN- 244713
Uttarakhand, India

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