माँ कामाख्या देवी शक्तिपीठ गुवाहाटी असम | Maa Kamakhya Devi Shakti Peeth Temple Guwahati Assam

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(हिंदी में पढ़ने के लिए नीचे देखें.)
(Kaamaakhyaa shaktipeeṭh guvaahaaṭee asam ke pashchim men 8 kilomeeṭar door neelaanchal parvat par sthit hai. Maataa ke sabhee shaktipeeṭhon men se kaamaakhyaa shaktipeeṭh ko sarvottam kahaa jaataa hai. Kahaa jaataa hai ki yahaan par maataa satee kaa yoni bhaag giraa thaa, usee se kaamaakhyaa mahaapeeṭh kee utpatti huii. Kahaa jaataa hai yahaan devee kaa yoni bhaag hone kee vajah se yahaan maataa rajasvalaa hotee hain.)
कामाख्या शक्तिपीठ गुवाहाटी असम के पश्चिम में 8 किलोमीटर दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है. माता के सभी शक्तिपीठों में से कामाख्या शक्तिपीठ को सर्वोत्तम कहा जाता है. कहा जाता है कि यहां पर माता सती का गुह्वा मतलब योनि भाग गिरा था, उसी से कामाख्या महापीठ की उत्पत्ति हुई. कहा जाता है यहां देवी का योनि भाग होने की वजह से यहां माता रजस्वला होती हैं.
इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है, यहां पर देवी के योनि भाग की ही पूजा की जाती है. मंदिर में एक कुंड सा है, जो हमेशा फूलों से ढका रहता है. इस जगह के पास में ही एक मंदिर है जहां पर देवी की मूर्ति स्थापित है. यह पीठ माता के सभी पीठों में से महापीठ माना जाता है. इस पीठ के बारे में एक बहुत ही रोचक कथा प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि इस जगह पर मां का योनि भाग गिरा था, जिस वजह से यहां पर माता हर साल तीन दिनों के लिए रजस्वला होती हैं. इस दौरान मंदिर को बंद कर दिया जाता है. तीन दिनों के बाद मंदिर को बहुत ही उत्साह के साथ खोला जाता है. कामाख्‍या मंदिर तंत्र विद्या का सबसे बढ़ा केंद्र माना जाता है और हर साल जून महीने में यहां पर अंबुवासी मेला लगता है. देश के हर कोने से साधु-संत और तांत्रिक यहां पर इकट्ठे होते हैं और तंत्र साधना करते हैं. माना जाता है कि इस दौरान मां के रजस्‍वला होने का पर्व मनाया जाता है और इस समय ब्रह्मपुत्र नदी का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है.
यहां पर भक्तों को प्रसाद के रूप में एक गीला कपड़ा दिया जाता है, जिसे अम्बुवाची वस्त्र कहते हैं. कहा जाता है कि देवी के रजस्वला होने के दौरान प्रतिमा के आस-पास सफेद कपड़ा बिछा दिया जाता है. तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्र माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है. बाद में इसी वस्त्र को भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. कथा के अनुसार, एक समय पर नरक नाम का एक असुर था. नरक ने कामाख्या देवी के सामने विवाह करने का प्रस्ताव रखा. देवी उससे विवाह नहीं करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने नरक के सामने एक शर्त रखी. शर्त यह थी कि अगर नरक एक रात में ही इस जगह पर मार्ग, घाट, मंदिर आदि सब बनवा दे, तो देवी उससे विवाह कर लेंगी. नरक ने शर्त पूरी करने के लिए भगवान विश्वकर्मा को बुलाया और काम शुरू कर दिया.
काम पूरा होता देख देवी ने रात खत्म होने से पहले ही मुर्गे के द्वारा सुबह होने की सूचना दिलवा दी और विवाह नहीं हो पाया. आज भी पर्वत के नीचे से ऊपर जाने वाले मार्ग को नरकासुर मार्ग के नाम से जाना जाता है और जिस मंदिर में माता की मूर्ति स्थापित है, उसे कामादेव मंदिर कहा जाता है. मंदिर के संबंध में कहा जाता है कि नरकासुर के अत्याचारों से कामाख्या के दर्शन में कई परेशानियां उत्पन्न होने लगी थीं, जिस बात से क्रोधित होकर महर्षि वशिष्ट ने इस जगह को श्राप दे दिया. कहा जाता है कि श्राप के कारण समय के साथ कामाख्या पीठ लुप्त हो गया.
मान्यताओं के अनुसार, कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में कामरूप प्रदेश के राज्यों में युद्ध होने लगे, जिसमें कूचविहार रियासत के राजा विश्वसिंह जीत गए. युद्ध में विश्व सिंह के भाई खो गए थे और अपने भाई को ढूंढने के लिए वे घूमत-घूमते नीलांचल पर्वत पर पहुंच गए. वहां उन्हें एक वृद्ध महिला दिखाई दी. उस महिला ने राजा को इस जगह के महत्व और यहां कामाख्या पीठ होने के बारे में बताया. यह बात जानकर राजा ने इस जगह की खुदाई शुरु करवाई. खुदाई करने पर कामदेव का बनवाए हुए मूल मंदिर का निचला हिस्सा बाहर निकला. राजा ने उसी मंदिर के ऊपर नया मंदिर बनवाया. कहा जाता है कि 1564 में मुस्लिम आक्रमणकारियों ने मंदिर को तोड़ दिया था. जिसे अगले साल राजा विश्वसिंह के पुत्र नरनारायण ने फिर से बनवाया.
कामाख्या मंदिर से कुछ दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर है, उमानंद भैरव ही इस शक्तिपीठ के भैरव हैं. यह मंदिर ब्रह्मपुत्र नदी के बीच में है. कहा जाता है कि इनके दर्शन के बिना कामाख्या देवी की यात्रा अधूरी मानी जाती है. कामाख्या मंदिर की यात्रा को पूरा करने के लिए और अपनी सारी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए कामाख्या देवी के बाद उमानंद भैरव के दर्शन करना अनिवार्य  है.

दर्शन का समय :
स्नान – 5:30 AM
नित्य पूजा – 6:00 AM
भक्तों के लिए मंदिर खुलने का समय – 8:00 AM
मंदिर पट बंद व प्रसाद वितरण- 1:00 PM
दोपहर दर्शन- 2:30 PM
मंदिर पट बंद- 5:15 PM
संध्या आरती- 7:30 PM

(आधिकारिक वेबसाईट के लिए नीचे क्लिक करें।)
Address:
The Doloi,
Maa Kamakhya Devalaya,
Guwahati, Assam, India.
Pin-781010
Phone:
0361-2734654
0361-2734655
Email:
info@maakamakhyadevalaya.org
maakamakhyadevalaya@gmail.com

(नक्शा और मार्ग जानने के लिए नीचे दिए चित्र को क्लिक करें।)

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