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(Sarovar nagaree naineetaal ke uttaree kinaare par sthit maan nayanaa devee mndir bhaarat ke 51 shaktipeeṭhon men se ek hai. Maanyataa hai ki maan satee ke nayan nainee jheel men girane ke baad maan satee ke shaktiroop kee poojaa ke uddeshy se hee nayanaa devee mndir kee sthaapanaa huii. Is mndir ke vaastu men nepaal kee paigoḍaa aur gauthik shailee kaa samaavesh hai.)
सरोवर नगरी नैनीताल के उत्तरी किनारे पर स्थित मां नयना देवी मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि मां सती के नयन नैनी झील में गिरने के बाद मां सती के शक्तिरूप की पूजा के उद्देश्य से ही नयना देवी मंदिर की स्थापना हुई। इस मंदिर के वास्तु में नेपाल की पैगोडा और गौथिक शैली का समावेश है। इस मंदिर की बहुत मान्यता है, यहाँ जो भी देशी-विदेशी सैलानी नैनीताल घूमने आता है मां के दर्शन किए बिना नहीं लौटता। माना जाता है कि सती मां की बांयी आंख नैनीताल के नैनीझील में गिरी थी। हालांकि नैना देवी शक्तिपीठ के रूप में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर के नैना देवी मंदिर की ज़्यादा मान्यता है।
नैनीताल में बोट हाउस क्लब और पंत पार्क के निकट मंदिर की स्थापना हुई थी। 1880 में शहर में आए भयंकर भूस्खलन से मंदिर ध्वस्त हो गया। बताया जाता है कि श्री मां नयना देवी मंदिर ने नगर के प्रमुख व्यवसायी मोती राम साह के पुत्र अमर नाथ साह को स्वप्न में उस स्थान का पता बताया, जहां उनकी मूर्ति दबी पड़ी थी। अमरनाथ शाह ने अपने मित्रों की मदद से देवी की मूर्ति का उद्धार किया और नए सिरे से मंदिर का निर्माण किया। बाद में यह मंदिर 1883 में बनकर तैयार हो गया।
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