शुचींद्रम शक्तिपीठ सुचिन्द्रम कन्याकुमारी तमिलनाडु | Suchindram Shakti Peeth Kanyakumari Tamil Nadu

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शुचींद्रम शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। तमिलनाडु के कन्याकुमारी के ‘त्रिसागर’ संगम स्थल से 13 किलोमीटर की दूरी पर शुचींद्रम में स्थित स्थाणु-शिव के मंदिर में ही शुचि शक्तिपीठ स्थापित है। यहाँ पर माता की ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। मान्यता है कि यहाँ देवी अब तक तपस्यारत हैं। यहाँ की शक्ति ‘नारायणी’ तथा भैरव ‘संहार या ‘संकूर’ हैं। सुचिंद्रम में ‘सुची’ शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘शुद्ध’ होना। सुचीन्द्रम शक्ति पीठ को ठाँउमालयन या स्तानुमालय मंदिर भी कहा जाता है।
यह मंदिर सात मंजिला है, जिसका सफेद गोपुरम काफी दूर से दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ, मंदिर में बनी हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का प्रवेश द्वार लगभग 24 फीट उंचा है, जिसके दरवाजे पर सुंदर नक्काशी की गई है। यह मंदिर बड़ी संख्या में वैष्णव और सैवियों दोनों को आकर्षित करता है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के लिए लगभग 30 मंदिर हैं, जिसमें पवित्र स्थान में बड़ा लिंगम, आसन्न मंदिर में विष्णु की मूर्ति और उत्तरी गलियारे के पूर्वी छोर पर हनुमान की एक बड़ी मूर्ति है। यह मंदिर हिंदू धर्म के लगभग सभी देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है।

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मंदिर के मुख्य देवता भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा को एक ही रूप में स्तरनुमल्याम कहा जाता है। स्तरनुमल्याम तीन देवताओं को दर्शाता है, जिसमें ‘स्तानु’ का अर्थ ‘शिव’ है, ‘माल’ का अर्थ ‘विष्णु’ है और ‘आयन’ का अर्थ ‘ब्रह्मा’ है। भारत के उन मंदिरों में से एक है जिसमें त्रीमूर्ति व तीनों देवताओं की पूजा एक मंदिर में की जाती है।
इस मंदिर में शक्ति को नारायणी के रूप पूजा जाता है और भैरव को संहार भैरव के रूप में पूजा जाता है।सुचीन्द्रम शक्तिपीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर शिवरात्रि, दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। लेकिन दो प्रमुख त्यौहार है, जो इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं, ‘सुचंद्रम मर्गली त्यौहार’ और ‘रथ यात्रा’ हैं। इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है। शुचींद्रम क्षेत्र को ज्ञानवनम् क्षेत्र भी कहते हैं। महर्षि गौतम के शाप से इंद्र को यहीं मुक्ति मिली थी, वह शुचिता (पवित्रता) को प्राप्त हुए, इसीलिए इसका नाम शुचींद्रम पड़ा।
मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवती देवी ने महाराक्षस बाणासुर का वध किया था और यहीं पर देवराज इन्द्र को महर्षि गौतम के शाप से मुक्ति मिली थी। यहां के मंदिर में नारायणी माँ की भव्य एवं भावोत्पादक प्रतिमा है और उनके हाथ में एक माला है। निज मंदिर में भद्रकाली जी का मंदिर भी है। ये भगवती देवी की सखी मानी जाती हैं।

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