सुगंधा (सुनंदा) शक्तिपीठ शिकारपुर बांग्लादेश | Sugandha (Sunanda) Shakti Peeth Shikarpur Bangladesh

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(हिंदी में पढ़ने के लिए नीचे देखें.)
(Sungadhaa shaktipeeṭh 51 shaktipeeṭhon men se ek hai. Yah shaktipeeṭh bhaarat ke padosee desh baanglaadesh men sthit hai. Bareesaal se 21 kilomeeṭar kee dooree par uttarmen shikaarapur naamak graam men sungadhaa (sunandaa) nadee ke taṭ par sthit ugrataaraa devee kaa mandir hee shaktipeeṭh maanaa jaataa hai. Is sthaan par satee kee naak kaa ang gira tha.)
सुंगधा शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है. यह शक्तिपीठ भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में स्थित है. बरीसाल से 21 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर में शिकारपुर नामक ग्राम में सुंगधा (सुनंदा) नदी के तट पर स्थित उग्रतारा देवी का मंदिर ही शक्तिपीठ माना जाता है. इस स्थान पर सती की नासिका (नाक) का निपात हुआ था. यहाँ की देवी ‘सुनंदा’ और शिव ‘त्र्यम्बक’ हैं. यह मंदिर पत्थर का बना हुआ है. मंदिर की पत्थर की दीवारों पर भी देवी-देवताओं की तस्वीर ख़ूबसूरती से उत्कीर्ण हैं.  शिव चतुर्दशी पर यहाँ मेला लगता है. इसके अलावा नवरात्र पर भी श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. हालांकि इस मंदिर का इतिहास उपलब्ध नहीं हो पाया है लेकिन मंदिर के परिसर को देख कर समझा जा सकता है कि मंदिर बहुत प्राचीन है. शक्तिपीठ का नाम भरतचंद्र की बांग्ला कविता ‘अन्नादामंगल’ में मिलता है. यहाँ पर स्थापित जो पुरानी मूर्ति थी, वो अब चोरी हो चुकी है. अब उसके स्थान पर नई मूर्ति स्थापित की गयी है. किसी को नहीं पता कि यहाँ से जो मूर्ति गायब हुईं, वो अब कहाँ हैं. वर्तमान में देवी उग्रतारा की मूर्ति है। उन्हें सुगंध की देवी के रूप में पूजा जाता है। देवी के पास तलवार, खेकड़ा, नीलपाद, और नरमुंड की माला है। कार्तिक, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश उनके ऊपर स्थापित हैं. यह मूर्ति बौद्ध तंत्र से सम्बंधित मानी जाती है. प्राचीन काल से बंगाल में तंत्र साधना का व्यापक प्रचार-प्रसार था. बंगाल में कई प्राचीन काली मंदिर और देवी मंदिर देखे जा सकते हैं.
मंदिर के बारे में कुछ लोककथाएं प्रचलित हैं. एक कहानीके अनुसार, एक बार की बात है एक घना जंगल था। वहां लोग दिन में भी जाने से डरते थे. उस समय शिकारपुर में एक बड़े जमींदार श्रीराम रॉय के सपने में शंकर भगवान आये और उनसे कहा कि मैं तुम्हारे सामरेल के जंगल में एक गड्ढे में रह रहा हूं. तुम मुझे वहाँ से निकालों तो फिर तुम ठीक हो जाओगे. सुबह राम रॉय बहुत सारे लोगों के साथ जंगल में  खोज करने गए. उस समय जंगल में कुछ चरवाहे गायों को चरा रहे थे। जब चरवाहे ने जमींदार और अन्य लोगों को देखा तो वह डर के भागने लगा. जमींदार ने उससे कहा कि मुझे देख के डर से भागने की जरूरत नहीं है, मैं यहां जंगल में केवल एक चमत्कार की तलाश में हूं. चरवाहा चमत्कार के बारे में जानता था. उसने जमींदार को कहानी सुनायी. उसने बताया कि एक ऐसा समय था कि गायें दूध नहीं दे रहीं थी. मवेशी मालिक को लगा कि चरवाहे दूध चुरा ले रहे हैं और आकर बताते हैं कि गायें दूध नहीं दे रही हैं. फिर उसने चरवाहों का पीछा किया. मालिक छुप के देख रहा था कि गायें चर रही हैं. उसने गायों को जंगल जाते देखा. फिर देखा कि गायें एक ऊंचे टीले पर दूध दे रही हैं. मालिक सोचने लगा कि आखिर गायें ऐसा क्यों कर रही हैं. वहां ऐसा क्या है. ये जानने के लिए उसने जंगल की सूखी लकड़ी इकठ्ठा की और वहां आग लगवा दी. जब वहां आग की लौ ख़त्म हो रही थी तो मालिक को टीले से एक काले रंग की कन्या भागती दिखी, जो पानी में समा गयी. यह सुनकर, राम राय ने वहां खुदाई का आदेश दिया. खुदाई करने पर वहां से एक लिंग निकला. राम रॉय ने सोचा कि वह इस लिंग को मंदिर में स्थापित करेंगे और उसकी सेवा करेंगे। लेकिन सब लोग आश्चर्य में तब पड़ गए कि जब सैकड़ों लोग उस लिंग को नहीं उठा सके. उस रात, शंकर भगवान् ने उसे फिर दर्शन दिए और कहा कि मुझे उसी स्थान पर स्थापित करो. इस प्रकार वहां मंदिर स्थापित हुआ.
एक दूसरी कहानी है. शिकारपुर गाँव में पंचानन चक्रवर्ती नाम का एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण रहता था. वह एक ईमानदार, धर्मात्मा, मानव प्रेमी था. एक बार उसके सपने में, मां काली ने उसे दर्शन दिए और कहा कि मैं सुगंधा के गर्भ में शिलारूप में हूँ, तुम मुझे वहां से निकाल कर ले आओ और मेरी पूजा करो. पंचानन चक्रवर्ती ने ऐसा ही किया. वो सपने में आये स्थान पर गया, वहां से मूर्ति लाकर स्थापित की और पूजा करना शुरू कर दिया. इसके बाद वहां के स्थानीय लोग भी आने लगे और मां की पूजा करने लगे. इस तरह से ये पवित्र स्थान लोकप्रिय हुआ.
खुलना से स्टीमर से बरीसाल पहुँचा जाता है तथा वहाँ से सड़क मार्ग से शिकारपुर ग्राम पहँचा जा सकता है.यहाँ का निकटतम रेलवे स्टेशन झलकटी है, यहाँ से मंदिर 8 किलोमीटर की दूरी पर है.निकटतम एयरपोर्ट बारीसाल में हैं.

दर्शन का समय :
सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक

(नक्शा और मार्ग जानने के लिए नीचे दिए चित्र को क्लिक करें।)

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