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कपालीश्वर मंदिर मायलापुर चेन्नई तमिलनाडु | Kapaleeshwarar temple Mylapore Chennai Tamil Nadu

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तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के मायलापुर में प्रसिद्ध कपालीश्वर मंदिर है। भगवान शिव के इस मंदिर को मूलतः पल्लव राजाओं ने बनवाया था। लेकिन जब पुर्तगाली आए तो उन्होंने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। सोलहवीं शताब्दी में इस मंदिर को राजा विजयनगर ने फिर बनवाया। दक्षिण भारत की धार्मिक आस्था का अनुभव करने के लिए यह एक बहुत पवित्र स्थल है। अद्भुद वास्तुकला वाले इस मंदिर में आपको द्रविड़ और विजयनगरी शैली दोनों का मिलाजुला अनुभव होगा। इस मंदिर के पश्चिमी क्षेत्र में खूबसूरत ताल भी है।

शिव प्रतिमा अजिमाला मंदिर तिरुवनंतपुरम केरल | Tallest Shiva Statue Ajimala Temple Thiruvananthapuram Kerala

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केरल की सबसे ऊंची शिव प्रतिमा तिरुवनंतपुरम में कोवलम के पास अजिमाला मंदिर के पास बनकर तैयार हो गयी और अब श्रद्धालुओं के लिए खोल भी दी गयी है। इस प्रतिमा की ऊंचाई 58 फुट है और इसको बनाने में 6 साल लगे। 29 साल के देवदाधन ने गंगाधर रूप की इस प्रतिमा को बनाया है। वह जब 23 साल के थे, तब उन्होंने इस मूर्ति का निर्माण शुरू किया था, इसके साथ ही वह स्नातक की पढ़ाई भी कर रहे थे।

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उनका कहना है कि उन्हें इस बात का अच्छी तरह से ख्याल था कि यह मूर्ति समुद्र की किनारे बन रही है और इसमें पानी और नमक को झेलने की क्षमता होनी चाहिए। इसी का ध्यान रखते हुए सीमेंट में कुछ केमिकल मिलाए गए हैं।

सोमसुंदरेश्वर मंदिर कैलायापुरम मटियामपट्टी तमिलनाडु | Somasundareshwarar Temple Kailayapuram Mattiampatti Tamil Nadu

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यह तस्वीर है तमिलनाडु के कैलायापुरम के पास सोमसुंदरेश्वर मंदिर की। यह मंदिर कैलाया विनयागर मंदिर के पास है। मंदिर कैलायापुरम की पहाड़ी पर स्थित है और 10 मिनट पैदल चलकर यहां पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर गजप्रस्थ शैली में बना हुआ है। यहां भगवान सोमसुंदरेश्वर मां देवी उमा के साथ स्थापित हैं।
दुःखद है कि मंदिर को तोड़ा गया है और मूर्तियों को खंडित कर दिया गया है। भगवान शंकर के चारों हाथ को तोड़ दिया गया है।

अब मंदिर में रोज़ पूजा नही होती है लेकिन पूर्णिमा के दिन पूजा होती है। भगवान शंकर की यह मानव रूप में एक दुर्लभ मूर्ति है। मंदिर जिस स्थान पर है, वह बहुत सुंदर है।

रास्ते के लिए यहां क्लिक करें

Address:
Vinayagar Temple Kailayapuram
Unnamed Road, Mattiyampatti, Tamil Nadu 636902

दुनिया की सबसे बड़ी, ऊंची दुर्गा प्रतिमा मॉरीशस | World’s Biggest Durga Statue  Ganga Talao Mauritius

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दुनिया माँ दुर्गा की सबसे बड़ी मूर्ति मॉरीशस के गंगा तलाव क्षेत्र में स्थापित की गयी है. मां दुर्गा की या प्रतिमा 108 फीट ऊंची है. इस मूर्ति की निर्माण 2011 में शुरू हुआ और 2017 के अंत में इस मूर्ति का निर्माण पूरा हुआ. यह मूर्ति मंगल महादेव की मूर्ति के पास स्थापित है. मूर्ति स्थापना के समय दुर्गा पूजा का एक बड़ा महोत्सव आयोजित किया गया. मूर्ति के निर्माण में 400 टन लोहे का और दो हजार मीट्रिक टन कंक्रीट का इस्तेमाल हुआ.
भारतीय सनातन धर्म संस्कृति के प्रचार-प्रसार और उसके अनुसरण को लेकर मॉरीसस में संस्था वॉयस ऑफ हिंदू, शक्ति स्वरूपा ट्रस्ट और श्रीराधादामोदर के संयुक्त तत्वावधान में श्रीकृष्ण मंदिर के बाद इतनी इस सबसे विराट प्रतिमा का अनावरण हुआ था. गंगा तलाओ की खोज एक पंडित ने 1887 में की थी, जिनको एक बार सपना आया था कि मॉरीशस में एक झील है जो भारत में स्थित पवित्र गंगा से से जुड़ी है. गंगा तलाव को ग्रैंड बेसिन भी कहा जाता है. यह मॉरीशस में एक क्रेटर (शांत ज्वालामुखी पर स्थित) में बना जलाशय है. यह सतह से 1800 फ़ीट ऊपर स्थित है और सवान्ने जिला के पहाड़ी इलाके में स्थित है. यह स्थल मॉरिशस में बसे हिन्दू लोगों के लिए पवित्रतम स्थान है. गंगा तलाव के तट पर ही हिन्दू भगवान शिव, हनुमान और लक्ष्मी देवी का एक भव्य मंदिर भी स्थित है. महाशिवरात्रि के पर्व पर सभी तीर्थयात्री अपने घर से इस तलाव तक नंगे पैर चल कर जाते हैं.

मंगल महादेव
यहाँ मंगल महादेव 108 फीट लम्बी मूर्ति पहले से विद्यमान हैं. यहाँ शिव की अपने त्रिशूल के साथ प्रतिमा है, जो गंण्गा तलाव के प्रवेश द्वार पर स्थापित है. इस प्रतिमा का उद्घाटन 2007 में हुआ था. यह प्रतिमा वडोदरा गुजरात स्थित सुरसागर झील की नकल है.

लाड खान मंदिर ऐहोल बागलकोट कर्नाटक | Lad Khan Temple Aihole Bagalkot Karnataka | Gaudara Gudi Temple | गौडर गुडी मंदिर

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आपने भारत में किसी ऐसे हिन्दू मंदिर का नाम सुना है, जो किसी मुस्लिम के नाम पर हो… हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं. लाड खान या लाद खान मंदिर कर्नाटक में बागलकोट के ऐहोल में है. कुछ इतिहासकार इसे 450 ईस्वी का मंदिर मानते हैं जबकि कुछ इसे सातवीं सदी का मन्दिर मानते हैं. अगर ये 450 ईस्वी का मंदिर है तो इस क्षेत्र का सबसे पुराना मंदिर है. मंदिर वर्गाकार है. छत नीची और सपाट है. मंदिर वर्गाकार है और इसकी प्रत्येक दीवार 50 फुट लम्बी है. मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर है और दो हिस्से बंटा हुआ है. मंदिर के स्तंभ विशेष दर्शनीय हैं. मंदिर के सामने एक मंडप है.
मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. मंदिर के मुख्य स्थान पर शिवलिंग है और उसी के सामने नंदी विराजमान है. इस मंदिर का निर्माण चालुक्य काल के दौरान कुछ अलग ही शैली में किया गया था. कुछ विशेषज्ञ यहाँ की वास्तुकला को पंचायतन शैली का मानते हैं. उस काल में बने बाकी मंदिरों की तुलना में इस मंदिर की वास्तुकला काफी भिन्न है. देखने में भले ही यह भव्य न हो पर पत्थर को काटकर बनाई गई आकृतियाँ अद्भुद हैं. यह मन्दिर अपनी रचना की सरलता, नक्शे की वास्तुकला के विवरण आदि के आधार पर गुफा मन्दिरों से मिलता-जुलता है.

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12 सुन्दर तराशे हुए स्तंभों वाले मंडप के मुख के सामने शिवलिंग वाला स्थान है. सभा मंडप से महा मंडप में प्रवेश का रास्ता है. जहां दो वर्गाकार संकेंद्रित रूप में स्तंभों को व्यवस्थित कर स्थापित किया गया है. दीवार फूलों के पैटर्न पर आधारित है और खिड़किया उत्तरी भारत की शैली वाली जालीदार हैं. मुख्य गृह के सामने एक छोटा गृह भी है. मंदिर की बाहरी दीवारों और आन्तरिक दीवारों पर पौराणिक कथाओं को दर्शाने वाली नक्काशी है. लाड खान मंदिर की एक और खासियत है कि इस मंदिर में शिखर (गोपुरम) नहीं है. यह दर्शाते हैं कि यह मंदिर गुफा मंदिर की तरह बने हुए हैं.
जो वजह आपको आश्चर्य में डाल रही है. आइये उसके बारे में भी आपको बताते हैं यानी कि इस शिव मंदिर के मुस्लिम नाम के बारे में. अगर आपको लग रहा है कि इस मंदिर के निर्माण में किसी मुस्लिम ने कोई योगदान किया है तो ऐसा कुछ भी नहीं है. वैसे जिस समय यह मंदिर बना था, उस समय मुस्लिम आक्रमणकारियों का भारत में नामोनिशान नहीं था. बीजापुर सल्तनत के आदिल शाह सुल्तान के एक सेनापति लाड खान ने ऐहोल को अपनी रहने की जगह बनायी. दुर्ग मंदिर को उसने अपनी सैन्य छावनी बना लिया था. शिव मंदिर पर कब्जा कर उसमें खुद रहता था. सीधे शब्दों में कहें तो उसने इसे अपना घर बना लिया था. कुछ समय तक वह इस मंदिर में ही रहा. उस समय से ही इस शिव मंदिर को लाड खान मंदिर पुकारा जाने लगा. तबसे लेकर आजतक इस मंदिर को लोग लाड खान मंदिर कहते हैं.

माना जाता है कि लाड खान मंदिर पुलकेशियन के जमाने में वह स्थान जहाँ राजा घोड़े की बली देता था. उसके बाद इस जगह का उपयोग धार्मिक कार्यक्रमों के लिए किया जाने लगा. फिर यह स्थान एक सूर्य मंदिर के रूप में और उसके बाद शिवालय बना दिया गया.

Gaudara Gudi Temple | गौडर गुडी मंदिर
पास में ही गौडर गुडी मंदिर है. इस मंदिर को ऐहोल के सौ से भी ज्यादा मंदिरों में से सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है. माना जाता है कि यह पांचवीं सदी का मंदिर है. यह महालक्ष्मी या मां भगवती का मंदिर था. इस मंदिर के पीछे के कस्बे का नाम भी इसी आधार पर भगवती कोल्ला है. गौडर गुडी मंदिर सबसे छोटा है लेकिन बिलकुल लाड खान मंदिर जैसा है. इस मंदिर का नाम गौडर गुडी इसी लिए पड़ा क्योंकि बाद में गाँव का मुखिया इस मंदिर का इस्तेमाल अपने घर के रूप में करने लगा.

मंदिर का समय :
9 AM to 5 PM

दुर्ग मंदिर ऐहोल बागलकोट कर्नाटक | Durg Temple Aihole Bagalkot Karnataka

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ऐहोल कर्नाटक में मलप्रभा नदी के तट पर स्थित मध्यकालीन भारतीय कला और वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण केंद्र है. ऐहोल कुछ समय तक चालुक्यों की राजधानी भी था. यहां सैकड़ों छोटे-बड़े मंदिर हैं. ऐहोल में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला स्थान दुर्ग मंदिर है, जो द्रविड़ वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है।

अलग अलग ऐतिहासिक पुस्तकें और विद्वान ऐहोल का प्राचीन नाम अय्यावोल, आर्यपुर, ऐवल्ली और अहिवोला बताते हैं. कहा जाता है कि क्षत्रियों का वध करने के बाद यहाँ मालप्रभा नदी में परशुराम ने कुल्हाड़ी धोयी तो नदी का रंग लाल हो गया. जिसे स्थानीय लोग ‘आई होली’ (आह नदी) बोला. तबसे इस इलाके का नाम ऐहोल हो गया. एहोल बीजापुर में स्थित, बादामी के निकट स्थान है. वर्तमान में इसे लोग एहोड़ और आइहोल भी पुकारते हैं. यहाँ से चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय का 634 ई. का एक अभिलेख प्राप्त हुआ है. यह प्रशस्ति के रूप में है और संस्कृत काव्य परम्परा में लिखा गया है. इसका रचयिता जैन कवि रविकीर्ति थे. इस अभिलेख में पुलकेशियन द्वितीय की विजयों का वर्णन है. अभिलेख में पुलकेशियन द्वितीय के हाथों हर्षवर्धन की पराजय का भी वर्णन है.

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एहोल में में गुप्तकालीन कई मंदिरों के भग्नावशेष हैं. दुर्ग मंदिर में पांचवी शती ई. की नटराज शिव की मूर्ति है. 450 ई. के चार मंदिरों के अवशेष भारत के सर्वप्राचीन मंदिरों के अवशेषों में से हैं. इन पर शिखर नहीं हैं. इनमें से स्तम्भ तीन वर्गों में, जो एक-दूसरे के भीतर बने हैं. केंद्रीय चार स्तम्भों के ऊपर सपाट छत अपने चारों तरफ ढाल वाली छत के ऊपर शिखर के ऊपर निकली हुई है, जो सबसे बाहर के वर्ग पर छायी हुई है. मंदिर के एक किनारे पर एक मंडप है और इससे दूसरे किनारे पर मूर्ति-स्थान है.
यहाँ हमें 70 मन्दिरों के अवशेष मिलते हैं. एहोल को भारतीय मन्दिर वास्तुकला का स्कूल भी कहा जाता है. एहोल के मन्दिरों से दक्षिण भारत के हिन्दू मन्दिर वास्तुकला के इतिहास को समझने में सहायता मिलती है. यहाँ के प्रमुख मंदिर समूहों में निम्न हैं-
हुच्चमल्ली मंदिर
चिकी मंदिर
अम्बीगर
दुर्ग मंदिर
गौदर, लाद खान और सूर्य नारायण मंदिर परिसर
चकरगुडी और बादीगर मंदिर
राची मंदिर
एनियार मंदिर परिसर
हच्चपप्या मठ परिसर
कुंती मंदिर परिसर
चरंती मठ परिसर
त्रयम्बकेश्वर समूह
गौरी मंदिर
गाँव का जैन मंदिर
मल्लिकार्जुन मंदिर परिसर
पहाड़ी पर जैन मंदिर,
मेगुती मंदिर
ज्योतिर्लिंग समूह
रावण पहाड़ी (रॉक-कट गुफा)
हच्चपप्या मंदिर
गलगनाथ मंदिर परिसर
रामलिंगा समूह

दुर्ग मंदिर
इन मंदिरों में एक प्रमुख मंदिर दुर्ग मंदिर है, जिसे अंग्रेज़ी में Durga लिखने के चलते बहुत से लोगों को दुर्गा मंदिर का भ्रम हुआ है. लेकिन यह दुर्गा मंदिर न होकर विष्णु मंदिर है. इस मंदिर को 550 ईसवी का बताया जाता है. यह मंदिर आज भी अपनी मजबूत संरचना के साथ खड़ा है. माता दुर्गा को समर्पित इस मंदिर का निर्माण द्रविड़ शैली में किया गया था. इस मंदिर के नाम को लेकर लोगो का मानना है कि किसी समय में इसका उपयोग सैन्य चौकी (दुर्ग या किले) के रूप में होने के चलते इस मंदिर को दुर्ग मंदिर कहा जाने लगा. बेलनाकार आकृति की यह संरचना अपने स्तंभों के साथ काफी आकर्षक नजर आती है. मंदिर की छत के ऊपर एक अपूर्ण टावर है. शिखर उत्तर भारतीय मंदिर से प्रेरित है. यह मंदिर चालुक्य काल और द्रविड़ शैली को समेटे हुए हैं. द्वार के ललाटबिंबा पर छह नागाओं को रखने वाला गरुड़ इस बात का प्रमाण है कि यह विष्णु मंदिर है.
इस मंदिर में शिव, नरसिंह, गरुड़ विष्णु, वराह के साथ-साथ उत्कृष्ट जाली खिड़कियाँ हैं. दुर्ग मंदिर अर्द्धवृत्‍ताकार है जिसमें वास्‍तुकार ने अपने विगत प्रयासों की अपेक्षाकृत अनेक परिवर्तन किए हैं. इस मंदिर में एक ऊँचा मंच है और लड़खन मंदिर की तरह एक अंधेरे प्रदक्षिणा पथ के स्‍थान पर यहां पर स्‍तंभों पर टिका एक खुला बरामदा है, जो कि प्रदक्षिणा पथ का काम करता है. छिद्रित जालियों के स्‍थान पर यहां मंदिर के इर्द-गिर्द स्‍तंभों वाला बरामदा है, जो खुला, हवादार और रोशन है. विशाल प्रवेशद्वार की सीढ़ियां ऊँचे आधार तक जाती हैं. छत की ऊँचाई लगभग दुगुनी है. स्तंभों में शिल्‍पकारों ने सुंदर प्रतिमाएं उकेरी गयी हैं. स्‍तंभों की पंक्ति के नीचे भी नक्‍काशी की गई है. मंदिर के चौड़े प्रवेश के पार शहतीर को सहारा देने वाले ब्रैकेट हैं.
विजयपुर से आइहोल पहुंचने में लगभग ढाई घंटे का समय लगता है.
मंदिर परिसर का समय- 9 AM to 5 PM

श्री शक्ति मंदिर बुकिट रोटन कुआला सेलांगोर मलेशिया | Sri Shakti Temple Bukit Rotan Kuala Selangor Malaysia

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क्या आपको पता है कि दुनिया में एक ऐसा मंदिर भी है, जहाँ आप सभी 51 शक्तिपीठों के एक साथ दर्शन कर सकते हैं. हम जिस मंदिर का जिक्र कर रहे हैं, इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आपको मलेशिया जाना पड़ेगा. यह मंदिर मलेशिया के कुआला सेलांगोर के बुकिट रोटन में हैं. यह मलेशिया के खूबसूरत हिन्दू मंदिरों में से एक है. साथ ही एक प्रमुख टूरिस्ट स्पॉट के रूप में प्रसिद्ध भी हो रहा है.
मलेशिया में यह कोई सैकड़ों साल पुराना मंदिर नहीं है बल्कि 25 अप्रैल 2013 में इसका निर्माण पूरा हुआ. इस मंदिर को बनने में चार साल का समय लगा जबकि वेद और शास्त्रोक्त तरीके से इस मंदिर के निर्माण की योजना में 11 साल लगा. दो संतों ने सभी 51 शक्तिपीठों वाले स्थान की यात्रा की. वहां से इन्होंने मिट्टी और पांच धातुओं से बना चक्र एकत्र किया. जिन्हें इस मंदिर में समर्पित किया गया. मंदिर के दुर्लभ होने की सबसे बड़ी वजह यह है कि 51 शक्तिपीठों की देवियाँ यहाँ स्थापित हैं. जैसा कि आप जानते हैं 51 शक्तिपीठ भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न स्थानों पर स्थापित हैं. वर्तमान समय में 44 स्थान भारत में है जबकि एक बांग्लादेश, तीन नेपाल, एक पाकिस्तान, एक तिब्बत और एक श्रीलंका में है.

जानिए किन चार शक्तिपीठों को महाशक्तिपीठ कहा जाता है
मंदिर 96 नक्काशीदार स्तंभों के आधार पर बना, जो हिंदुत्व के 96 सार्वभौमिक सिद्धातों का प्रतिनिधित्व करते हैं. ये एक खूबसूरत दीवार से घिरे हुए हैं. मंदिर का राज गोपुरम 74 फुट ऊंचा है. मंदिर का मुख्य द्वार ग्रेनाइड पत्थर का 18 फुट ऊंचा नक्काशीदार बना हुआ है. इसका वजन 4 टन का है और इसे भारत के प्राचीन शहर महाबलिपुरम के कुशल कारीगरों ने बनाया है. ग्रेनाइड की अन्य खूबसूरत निर्माण में से एक केवल पत्थर से बनाया गया शेर है, जिसके मुंह के अन्दर पत्थर की स्वतंत्र गेंद है, जिसे मुंह के अन्दर आसानी से घुमाया जा सकता है लेकिन शेर के मुंह से उस गेंद को निकाला नहीं जा सकता. हाथी के बच्चों की खूबसूरत मूर्तियाँ यहाँ बनी हुई हैं, इनके साथ पौराणिक जीव व्याल या याली भी बने हुए हैं. इस मंदिर की वास्तुकला भारतीयता का उत्कृष्ट उदाहरण है. साथ ही इस बात का परिचायक भी कि अब पत्थरों को खूबसूरत कला के रूप ढालने वाले कलाकार आज भी भारत में मौजूद हैं.
समय :
सुबह 5.30 AM – 12.30 PM (प्रतिदिन)
शाम 4:30 PM – 9.30 PM (प्रतिदिन)
शाम की प्रार्थना शाम 7 बजे शुरू होती है. शुक्रवार, शनिवार और रविवार को दिन का खाना भी होता है.

श्री रंगनाथस्वामी मंदिर श्रीरंगम तिरुचिरापल्ली तमिलनाडु | Sri Ranganathaswamy Temple Srirangam Tiruchirappalli Tamil Nadu

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क्या आपको पता है कि भारत का सबसे बड़ा मंदिर कौन सा है? क्या आप जानते हैं दुनिया का सबसे क्रियाशील मंदिर ( यानी की जहां पूजा भी होती है) कौन सा है? तो ये यह मंदिर है श्रीरंगम श्री रंगनाथस्वामी मंदिर है. इसका क्षेत्रफल लगभग 6,31,000 वर्ग मी (156 एकड़) है. श्रीरंगम सबसे बड़ा क्रियाशील मंदिर माना जाता है क्योंकि अंगकोर वाट दुनिया का सबसे बड़ा लेकिन गैर-क्रियाशील हिन्दू मंदिर है.
श्रीरंगम का यह मन्दिर श्री रंगनाथ स्वामी (विष्णुजी) को समर्पित है, जहां विष्णुजी शेषनाग शैय्या पर विराजे हुए हैं. यह द्रविण शैली में निर्मित है. श्रीरंगम मंदिर का परिसर 7 संकेंद्रित दीवारी अनुभागों और 21 गोपुरम से बना है. मंदिर के गोपुरम को राजगोपुरम कहा जाता है और यह 236 फीट (72 मी) है, जो एशिया में सबसे लम्बा है. मंदिर का गठन सात उन्नत घेरों से हुआ है, जिसका गोपुरम अक्षीय पथ से जुड़ा हुआ है, जो सबसे बाहरी प्रकार की तरफ सबसे ऊंचा और एकदम अन्दर की तरफ सबसे नीचा है. यह मंदिर तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में कावेरी नदी के तट पर स्थित है. यहाँ तीन प्रमुख मंदिर हैं- आदि रंगा (श्रीरंगापट्टना का रंगनाथस्वामी मंदिर), मध्य रंगा (शिवानासमुद्र का रंगनाथस्वामी मंदिर) और अंत्य रंग (श्रीरंगम का रंगनाथस्वामी मंदिर).

दुनिया के सबसे बड़े मंदिर को जानने के लिए यहाँ क्लिक करें.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, वैदिक काल में गोदावरी नदी के तट पर गौतम ऋषि का आश्रम था. उस समय अन्य क्षेत्रों में जल की काफी कमी थी. एक दिन जल की तलाश में कुछ ऋषि गौतम के आश्रम जा पहुंचे. अपने यथाशक्ति अनुसार गौतम ऋषि ने उनका आदर सत्कार कर उन्हें भोजन कराया. परंतु ऋषियों को उनसे ईर्ष्या होने लगी. उर्वर भूमि की लालच में ऋषियों ने मिलकर छल द्वारा गौतम ऋषि पर गोहत्या का आरोप लगा दिया. साथ उनकी सम्पूर्ण भूमि हथिया ली. इसके बाद गौतम ऋषि ने श्रीरंगम जाकर श्री रंगनाथ विष्णुजी की आराधना और सेवा की. गौतम ऋषि के सेवा से प्रसन्न होकर श्री रंगनाथ ने उन्हें दर्शन दिया और पूरा क्षेत्र उनके नाम कर दिया. गौतम ऋषि के आग्रह पर स्वयं ब्रह्माजी ने इस भव्य मंदिर का निर्माण किया. कहा जाता है कि भगवान श्रीराम के वनवास काल में इस मंदिर में पूजा करते थे. रावण पर श्री राम की विजय के बाद मंदिर परिसर को राजा विभीषण को सौंप दिया गया. भगवान विष्णु ने रंगनाथ के रूप में निवास करने की अपनी इच्छा को व्यक्त की. कहा जाता है कि तबसे भगवान् विष्णु श्री रंगनाथस्वामी के रूप में यहां वास करते हैं.
मंदिर में एक 1000 साल पुरानी ममी भी संरक्षित है. मंदिर की भव्यता और विष्णु के रंगनाथ रूप के दर्शन के लिए भारत से ही नहीं, बल्कि विश्वभर से लाखों की संख्या में सैलानी आते हैं. जितना खूबसूरत इस मंदिर दिखने में है, उतना ही दिलचस्प इसका इतिहास और निर्माण गाथा भी है. वैष्णव संस्कृति के दार्शनिक गुरु रामानुजाचार्य से भी इस मंदिर का एक गहरा और खास संबंध है. श्री रामानुजाचार्य अपनी वृद्धावस्था में यहां आ गए थे. करीब 120 वर्ष की आयु तक श्रीरंगम में रहे थे. कुछ समय बाद भगवान श्री रंगनाथ से देहत्याग की अनुमति ली, तदोपरांत अपने शिष्यों के सामने देहावसान की घोषणा कर दी. माना जाता है कि भगवान रंगनाथ स्वामी की आज्ञा के अनुसार ही उनके मूल शरीर को मंदिर में दक्षिण पश्चिम दिशा के एक कोने में रखा गया है. यह मंदिर दुनिया में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां एक वास्तविक मृत शरीर को हिंदू मंदिर के अंदर कई वर्षों से रखकर पूजा जाता है. मंदिर में रामानुजाचार्य के 1000 वर्ष पूर्व के मूल शरीर को संभाल कर रखा गया है.
आमतौर पर ममी निद्रा रूप में होती हैं लेकिन रामानुजाचार्य की ममी सामान्य बैठने की स्थिति यानी उपदेश मुद्रा में प्रतीत होती है. मंदिर में उनकी मूर्ति के पीछे उनकी ममी को रखा गया है. इस ममी पर केवल चंदन और केसर का लेप लगाया जाता है. इसके अलावा किसी अन्य रासायनिक पदार्थ का उपयोग इस ममी को संरक्षित करने के लिए नहीं किया जाता है. पिछले 878 वर्षों से केवल कपूर, चंदन और केसर के मिश्रण को दो साल में एक बार रामानुजाचार्य की ममी पर लगाया जाता है. इस लेप के कारण शरीर केसरिया रंग में परिवर्तित हो चुका है.
तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में स्थित होने के कारण श्रीरंगम मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है. मंदिर की खास बात यह भी है कि यह गोदावरी और कावेरी नदी के मध्य बना हुआ है. हर मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को यहां रंग जयंती उत्सव का आयोजन होता है, जो कि आठ दिन तक चलता है. मान्यता है कि कृष्ण दशमी के दिन कावेरी नदी में स्नान करने से आठ तीर्थ में नहाने के समान फल प्राप्त होता है. मंदिर को धरती के बैकुंठ के नाम से भी जाना जाता है.
भगवान यहां सर्वप्रिय मुद्रा यानि शयन की मुद्रा में है. यह मंदिर भगवान विष्णु के 108 मुख्य मंदिरों में से एक है. यह इकलौता मंदिर है, जिसकी प्रशंसा तमिल भक्ति आंदोलन के सभी संतों के गीतों में मिलती है. यहां पर प्रत्येक दिन 200 भक्तों को मुफ्त में भोजन कराने की रीति है. आनंदम योजना के अंतर्गत यहां भोजन परोसा जाता है. फ्रांसीसी सैनिकों द्वारा कर्नाटक युद्ध के दौरान मुख्य देवता की मूर्ति की आंख से हीरा चोरी हो गया था. 189.62 कैरेट (37.924 ग्रा) का ऑरलोव हीरा मॉस्को क्रेमलिन के डायमंड फंड में आज भी संरक्षित है.
इस मंदिर का निर्माण किसने कराया इस बारे में कोई सटीक तथ्य तो नहीं मिले हैं. फिर भी एक कथा के अनुसार, चोल वंश के एक राजा को यहां भगवान विष्णु की मूर्ति घने जंगल में एक तोते का पीछा करते हुए मिली थी. फिर उसी राजा ने ही इसका निर्माण कराया था. वहीं दूसरी ओर मंदिर में मौजूद शिलालेखों में चोल, पांड्य, होयसल और विजयनगर राजवंशों के समय का प्रभाव दिखाई देता है. इसलिए माना जाता है कि दक्षिण भारत में शासन करने वाले अधिकांश राजवंशों द्वारा इस मंदिर का निर्माण और विस्तार कराया गया होगा.
यह मंदिर वास्तुकला की तमिल शैली में बनाया गया है. वैसे तो मंदिर ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है लेकिन मंदिर में मुख्य देवता की मूर्ति स्टुको से बनी हुई है. इसके अलावा यहां अन्य देवी-देवताओं को समर्पित देवालय भी दिखते हैं. वास्तुकला के लिहाज से यहां तमिल शैली की बहुलता देखने को मिलती है. मंदिर का जिक्र संगम युग ( 1000 ई. से 250 ई.) के तमिल साहित्य और शिलप्पादिकारम (तमिल साहित्य के पांच श्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक) में भी मिलता है. 3 नंवबर, 2017 को इस मंदिर को बड़े पैमाने पर पुननिर्माण के बाद सांस्कृतिक विरासत संरक्षण हेतु ‘यूनेस्को एशिया प्रशांत पुरस्कार मेरिट, 2017’ भी मिला था.
(लेख इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर है.)

आधिकारिक वेबसाइट के लिए यहाँ क्लिक करें

Address :
Sri Ranganathar Swamy Temple,
Srirangam, Tiruchirappalli – 620 006.
Tamil Nadu, India.
Phone: +91 431 -2432246
Email: srirangam@tnhrce.com
Email: srirangamtemple@gmail.com

मौली देवी मंदिर कंकुम्बी बेलगाम कर्नाटक | Mauli Devi Temple Kankumbi Belgaum Karnataka

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कर्नाटक के बेलगाम जिले के कंकुम्बी में श्री मौली देवी मंदिर स्थित है। यह कोकड़ी शैली में बना एक दो मंजिला मंदिर है। मंदिर की इमारत खंभों पर टिकी है। मंदिर के पास ही एक प्राचीन कुंआ है। माना जाता है कि मालप्रभा नदी का उद्गम स्थल यही कुआं है। मालप्रभा नदी पूर्व की ओर बहती हुई कुंडलसंगम पर कृष्णा नदी से मिलती है।
किवदंती है कि यहां संत निवास किया करते थे। उनमें से एक संत थे कलकमुनि। उन्होंने यहां घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए। शंकर जी ने प्रसन्न होकर उन्हें यहां स्थापित करने के लिए एक शिवलिंग दिया। साथ ही मालप्रभा नदी की उत्पत्ति की। इन्ही संत के नाम पर इस इलाके का नाम कुलकम्बी या कंकुम्बी पड़ा।

जानिये न्यू जर्सी के अक्षरधाम मंदिर के बारे में
इसी के पड़ोस में एक छोटा सा मंदिर है, जहां चांदी की एक प्रतिमा स्थापित है। इसके बारे में एक कथा सुनाई जाती है कि आश्रम में मल्ली नाम की एक कन्या रहती थी। एक बार वह जंगल गयी तो एक राक्षस ने उस पर आक्रमण कर दिया। राक्षस से बचने के लिए कन्या नदी में कूद गई। जब वह आश्रम नही पहुंची तो साधुओं ने उसे ढूंढ़ना प्रारंभ किया। कन्या ने नदी से हाथ हिलाकर संकेत दिया कि वह अभी जीवित है। उसके बाद साधुओं ने उसे नदी से बाहर निकाला।

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God of Kayastha Chitragupta Aarti | कायस्थों के भगवान् चित्रगुप्त जी की आरती

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ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामीजय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित,
फल को पूर्ण करे॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

विघ्न विनाशक मंगलकर्ता,
सन्तनसुखदायी ।
भक्तों के प्रतिपालक,
त्रिभुवनयश छायी ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत,
पीताम्बरराजै ।
मातु इरावती, दक्षिणा,
वामअंग साजै ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक,
प्रभुअंतर्यामी ।
सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन,
प्रकटभये स्वामी ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

कलम, दवात, शंख, पत्रिका,
कर में अति सोहै ।
वैजयन्ती वनमाला,
त्रिभुवनमन मोहै ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

विश्व न्याय का कार्य सम्भाला,
ब्रम्हाहर्षाये ।
कोटि कोटि देवता तुम्हारे,
चरणन में धाये ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

नृप सुदास अरू भीष्म पितामह,
याद तुम्हें कीन्हा ।
वेग, विलम्ब न कीन्हौं,
इच्छितफल दीन्हा ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

दारा, सुत, भगिनी,
सब अपने स्वास्थ के कर्ता ।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी,
तुमतज मैं भर्ता ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

बन्धु, पिता तुम स्वामी,
शरणगहूँ किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
आस करूँ जिसकी ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती,
प्रेम सहित गावैं ।
चौरासी से निश्चित छूटैं,
इच्छित फल पावैं ॥
॥ ॐ जय चित्रगुप्त हरे…॥

न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी,
पापपुण्य लिखते ।
‘नानक’ शरण तिहारे,
आसन दूजी करते ॥

ॐ जय चित्रगुप्त हरे,
स्वामी जय चित्रगुप्त हरे ।
भक्तजनों के इच्छित,
फलको पूर्ण करे ॥

Om jay chitragupt hare,
svaameejay chitragupt hare .

Bhaktajanon ke ichchhit,
fal ko poorṇa kare॥
॥ om jay chitragupt hare…॥
vighn vinaashak mngalakartaa,
santanasukhadaayee .

Bhakton ke pratipaalak,
tribhuvanayash chhaayee ॥
॥ om jay chitragupt hare…॥
roop chaturbhuj, shyaamal moorat,
peetaambararaajai .

Maatu iraavatee, dakṣiṇaa,
vaama_ang saajai ॥
॥ om jay chitragupt hare…॥
kaṣṭ nivaarak, duṣṭ snhaarak,
prabhuantaryaamee .

Sriṣṭi samhaaran, jan duahkh haaran,
prakaṭabhaye svaamee ॥
॥ om jay chitragupt hare…॥
kalam, davaat, shnkh, patrikaa,
kar men ati sohai .

aijayantee vanamaalaa,
tribhuvanaman mohai ॥
॥ om jay chitragupt hare…॥
vishv nyaay kaa kaary sambhaalaa,
bramhaaharṣaaye .

Koṭi koṭi devataa tumhaare,
charaṇaan men dhaaye ॥
॥ om jay chitragupt hare…॥
nrip sudaas aroo bheeṣm pitaamah,
yaad tumhen keenhaa .

Veg, vilamb n keenhaun,
ichchhitafal deenhaa ॥
॥ om jay chitragupt hare…॥
daaraa, sut, bhaginee,
sab apane svaasth ke kartaa .

Jaa_oon kahaan sharaṇa men kisakee,
tumataj main bhartaa ॥
॥ om jay chitragupt hare…॥
bandhu, pitaa tum svaamee,
sharaṇaagahoon kisakee .

Tum bin aur n doojaa,
aas karoon jisakee ॥
॥ om jay chitragupt hare…॥
jo jan chitragupt jee kee aaratee,
prem sahit gaavain .

Chauraasee se nishchit chhooṭain,
ichchhit fal paavain ॥
॥ om jay chitragupt hare…॥
nyaayaadheesh bainkunṭh nivaasee,
paapapuṇay likhate .
‘naanak’ sharaṇa tihaare,
aasan doojee karate ॥
om jay chitragupt hare,
svaamee jay chitragupt hare .

Bhaktajanon ke ichchhit,
falako poorṇa kare ॥