Guru Gorakhnath Temple Peshawar Pakistan | गोरखनाथ मंदिर पेशावर पाकिस्तान इतिहास | Story | History

0
10

नवल कान्त सिन्हा

गोरखनाथ मंदिर… ये नाम लेते ही आपके मस्तिष्क में गोरखपुर शहर आ गया होगा लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं पाकिस्तान के पेशावर शहर के गोरखनाथ मंदिर की। अपनी स्थापना से लेकर अब तक यह मंदिर कई बार नष्ट किया और उसके बाद फिर स्थापित हुआ। इस समय भी पाकिस्तान में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हिन्दुओं की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है।
बात शुरू करते हैं पुरुषपुर से। अगर इस शहर के नाम से आप अनजान हैं तो आपको बता दें कि ये अविभाज्य भारत का ये एक प्रमुख शहर था। पाकिस्तान के इस शहर को लोग पेशावर के नाम से जानते हैं। यह शहर पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रान्त की राजधानी है और दुनिया के अब तक कायम प्राचीन शहरों में से एक है। ये शहर ढाई हज़ार साल का लिखित इतिहास समेटे हैं।

अफगानिस्तान से सटे इस शहर का उल्लिखित इतिहास 539 ईसापूर्व से मिलता है। एक ज़माने में पेशावर कुशाण वंश की राजधानी हुआ करता था। उस दौर में ये शहर गाँधार मूर्तिकला का एक मुख्य और ख्यातिप्राप्त केन्द्र था। माना जाता है कि राजा पुरुष ने पेशावर की स्थापना की थी, इसी वजह से इसका नाम पुरुषपुर पड़ा था। जो कि बाद में पेशावर हो गया। खरोष्ठी लिपि में पाए गए अभिलेखों में इसका नाम पुष्पुरा भी मिलता है, जिसका मतलब है फूलों का शहर।
पेशावर पाकिस्तान का पांचवा सबसे बड़ा शहर है। चीनी यात्री ह्वेन त्सांग और फाह्यान ने भी इस शहर का उल्लेख किया है। अरबी इतिहासकार अल मसूदी के अनुसार दसवी शताब्दी के मध्य में इस शहर को परशावर पुकारा जाता था। अलबरूनी ने इस शहर को पुरुषावर कहा। अकबर के शासनकाल में इसे पेशावर कहा जाने लगा। पेशावर में हिन्दुओं के चार प्रमुख स्थल हैं। ये हैं पंजतीर्थ, गुरु गोरखनाथ मंदिर, आसामाई मंदिर और कुशालबाग। दरअसल इतिहास से लेकर आज तक इस शहर की वास्तविक पहचान है गोरखत्री क्षेत्र। गोरखत्री वही इलाका है, जहाँ गोरखनाथ मंदिर है। एक ज़माने में पूरा गोरखत्री क्षेत्र गोरखनाथ मंदिर परिसर का हिस्सा था। पंजतीर्थ पांच पवित्र तालों के लिए प्रसिद्ध था। अब इसकी आधिकारिक पहचान खुशालबाग़ के रूप में है। इसका नाम अफगानी योद्धा और कवि खुशाल खां खट्टक के नाम पर रखा गया है लेकिन कहते हैं न कि किसी की असल पहचान को मिटाना इतना आसान काम नहीं होता। आज भी लोग इसे गोरख डेगी या गोरख ताल के नाम से ज़्यादा जानते हैं। हालांकि गोरख डेगी में जो पवित्र ताल था, अब वहां स्वीमिंग पूल बना दिया गया है। कहा जाता है कि बाबा गोरखनाथ यहाँ मंदिर के कूएं में छलांग लगाते थे और फिर यहाँ से मीलों दूर गोरख डेगी से निकलते थे। इसी वजह से दोनों स्थल हिन्दुओं के लिए बहुत पवित्र हैं। दरअसल स्वतंत्रता, भारत में सचमुच आज़ादी लेकर आयी तो पाकिस्तान बनने के साथ वहां हिन्दुओं की ज़िन्दगी बद से बदतर हो गयी। पेशावर में गोरख डेगी सहित हिन्दुओं के अन्य स्थलों और मंदिरों को 1947 में बंटवारे के बाद पूजा के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया। फिर दशकों बाद पेशावर हाईकोर्ट के आदेश पर नवंबर 2011 में इस मंदिर को खोला गया है। वर्तमान मंदिर 160 साल पुराना है। लेकिन यहाँ की भव्यता इस्लाम की असहिष्णुता की भेंट चढ़ गयी। इस्लाम नाम पर मूर्तियाँ, गहने और अन्य कीमती सामान लूट लिए गए। पंज तीर्थ अब चाचा युनुस पार्क बन चुका है।

सुखद यह है कि इन विपरीत परिस्थितियों के बावजूद गोरखनाथ मंदिर अब हिन्दुओं को पूजा के लिए उपलब्ध है। भारत के विभाजन से पहले, ये मंदिर फूलमती परिवार की सुरक्षा में था। याचिकाकर्ता ने मंदिर को कब्जे में लेने के लिए पेशावर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। 15 सितंबर, 2011 के एक फैसले में, अदालत ने आखिरकार फूलमती और काकाम राम को मंदिर के ‘वास्तविक स्वामी’ के रूप में घोषित किया और पुरातत्व विभाग को इसकी मूल वारिसों को चाबी देने का आदेश दिया। 160 वर्ष पुराना यह मंदिर उससे पहले 60 वर्षों से पुरातत्व विभाग के कब्जे में था। अतीत में, मंदिर का उपयोग विस्फोटक गोदाम के रूप में किया जाता था। उसके बाद इसे पेशावर विकास प्राधिकरण को सौंप दिया गया था। स्थानीय हिंदू बताते हैं कि शिव मंदिर में पूजा की अनुमति के बाद, तीन स्थानों पर सात मंदिरों की पूजा शुरू की गयी। इनमें शिव मंदिर, हनुमान मंदिर, गणेश मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, नाथ मंदिर, शेरावाली मंदिर और गुरु गोरखनाथ मंदिर शामिल हैं। पाकिस्तान के हिन्दुओं का कहना है कि शिव मंदिर में सभी मूर्तियों को लूट लिया गया है और अतीत में दीवारों पर देवताओं की उकेरी गयी तस्वीरें और अन्य चित्र हटा दिए गए हैं।

पेशावर के लोगों का कहना है कि ईसापूर्व प्रथम शताब्दी में टिल्ला जोगियाँ में ‘कनफटा जोगी सम्प्रदाय’ के इस मंदिर का निर्माण किया गया था। 1851 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था। वर्तमान गोरखनाथ मंदिर बहुत छोटा सा है और नौ कमरों से घिरा हुआ है। मंदिर का बीच का हिस्सा सफ़ेद रंग का है और इसमें दो कमरे हैं, जहाँ भक्तों के लिए पूजा के लिए मूर्तियाँ रखी हुई हैं। दोनों कमरे एक तोरण और तीन गुम्बद से जुड़े हुए हैं। वर्तमान समय में इस मंदिर में उर्दू में ॐ नमः शिवाय लिखी शिवलिंग की श्रद्धालु पूजा करते हैं। यहाँ सालाना गोरख फेस्टिवल का आयोजन होता है, जो कि जुलाई-अगस्त के महीने में चालीस दिन के लिए आयोजित किया जाता है। यहाँ छत की नक्काशी और उस नक्काशी में उकेरी गयीं भगवान की तस्वीरों को देख कर इसकी भव्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इतने महान इतिहास वाले मंदिर में लोगों को छोटी मूर्तियों और पोस्टरों की पूजा करने की मजबूरी देख आप समझ सकते हैं कि
पाकिस्तान में हिन्दुओं की क्या स्थिति है।

एक ज़माने में पेशावर मूलतः शिवभक्तों का शहर हुआ करता था। पेशावर के संग्रहालय में रखी 6 भुजाओं वाली शिव प्रतिमा को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। गांधार कला की प्रतिमा 17.5 सेंटीमीटर ऊंची और  15.5 सेंटीमीटर चौड़ी है। इस संग्रहालय में अन्य बहुत सी मूर्तियाँ भी है लेकिन कौन असली है और कौन नकली, यह कहना मुश्किल है क्योंकि यहाँ बहुत सी मूर्तियों को चुराकर वहां नकली मूर्तियाँ रख दी गयी हैं। पंजतीर्थ के बारे में यहाँ के बुज़ुर्ग को अच्छी तरह से याद है कि वहां एक खूबसूरत ताल था। लोग वहां पूजा करने आते थे। वहां एक पंडित अवश्य रहते थे, जो लोगों को ताल की पवित्रता के बारे में बताते थे।
फिर अचानक 1970 में ताल को ख़त्म कर दिया गया। उसके बाद वहां पर सरहद चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज़ की बिल्डिंग का निर्माण होने लगा। इस तरह से पंज तीर्थ का अस्तित्व हमेशा के लिए समाप्त हो गया। लेडी रीडिंग अस्पताल के पास स्थित आसामाई मंदिर को खोलने नहीं दिया और न ही वहां पूजा करने की अनुमति कभी दी गयी। जबकि आसामाई के पूरी दुनिया में केवल दो ही ज्ञात मंदिर हैं, एक पेशावर में और दूसरा काबुल की कोह ए आसामाई की पहाड़ियों पर। जो हिंदू हैं और बाबा गोरखनाथ के भक्त हैं, वो इन मंदिरों और हिन्दुओं के हालात देख बंटवारे के दर्द को समझ सकते हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here